आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ (1900–1920) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्यिक जीवन परिचय
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के (बैसवारा) रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में 15 मई 1864 को हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। अत्यधिक रुग्ण होने से 21 दिसम्बर 1938 को रायबरेली में इनका स्वर्गवास हो गया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की रचनाएँ
- देवी स्तुति-शतक (1892 ई.)
- कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898 ई.)
- समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898 ई.)
- नागरी (1900 ई.)
- कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई.)
- काव्य मंजूषा (1903 ई.)
- सुमन (1923 ई.)
- द्विवेदी काव्य-माला (1940 ई.)
- कविता कलाप (1909 ई.) काजल तुम हो (1904 ई.)
पद्य (अनूदित)
- विनय विनोद (1889 ई.)- भर्तृहरि के ‘वैराग्यशतक’ का दोहों में अनुवाद
- विहार वाटिका (1890 ई.)- गीत गोविन्द का भावानुवाद
- स्नेह माला (1890 ई.)- भर्तृहरि के ‘शृंगार शतक’ का दोहों में अनुवाद
- श्री महिम्न स्तोत्र (1891 ई.)- संस्कृत के ‘महिम्न स्तोत्र’ का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद
- गंगा लहरी (1891 ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ की ‘गंगालहरी’ का सवैयों में अनुवाद
- ऋतुतरंगिणी (1891 ई.)- कालिदास के ‘ऋतुसंहार’ का छायानुवाद
- सोहागरात (अप्रकाशित)- बाइरन के ‘ब्राइडल नाइट’ का छायानुवाद
- कुमारसम्भवसार (1902 ई.)- कालिदास के ‘कुमारसम्भवम्’ के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश
मौलिक गद्य रचनाएँ
- नैषध चरित्र चर्चा (1899 ई.)
- तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
- हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1901 ई.)
- वैज्ञानिक कोश (1906ई.),
- नाट्यशास्त्र (1912ई.)
- विक्रमांकदेवचरितचर्चा (1907ई.)
- हिन्दी भाषा की उत्पत्ति (1907ई.)
- सम्पत्ति-शास्त्र (1907ई.)
- कौटिल्य कुठार (1907ई.)
- कालिदास की निरकुंशता (1912ई.)
- वनिता-विलाप (1918ई.)
- औद्यागिकी (1920ई.)
- रसज्ञ रंजन (1920ई.)
- कालिदास और उनकी कविता (1920ई.)
- सुकवि संकीर्तन (1924ई.)
- अतीत स्मृति (1924ई.)
- साहित्य सन्दर्भ (1928ई.)
- अदभुत आलाप (1924ई.)
- महिलामोद (1925ई.)
- आध्यात्मिकी (1928ई.)
- वैचित्र्य चित्रण (1926ई.)
- साहित्यालाप (1926ई.)
- विज्ञ विनोद (1926ई.)
- कोविद कीर्तन (1928ई.)
- विदेशी विद्वान (1928ई.)
- प्राचीन चिह्न (1929ई.)
- चरित चर्या (1930ई.)
- पुरावृत्त (1933ई.)
- दृश्य दर्शन (1928ई.)
- आलोचनांजलि (1928ई.)
- चरित्र चित्रण (1929ई.)
- पुरातत्त्व प्रसंग (1929ई.)
- साहित्य सीकर (1930ई.)
- विज्ञान वार्ता (1930ई.)
- वाग्विलास (1930ई.)
- संकलन (1931ई.)
- विचार-विमर्श (1931ई.) आपना विवेक
गद्य (अनूदित)
- भामिनी-विलास (1891ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के ‘भामिनी विलास’ का अनुवाद
- अमृत लहरी (1896ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के ‘यमुना स्तोत्र’ का भावानुवाद
- बेकन-विचार-रत्नावली (1901ई.)- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद
- शिक्षा (1906ई.)- हर्बर्ट स्पेंसर के ‘एजुकेशन’ का अनुवाद
- स्वाधीनता (1907ई.)- जॉन स्टुअर्ट मिल के ‘ऑन लिबर्टी’ का अनुवाद
- जल चिकित्सा (1907ई.)- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद
- हिन्दी महाभारत (1908ई.)-‘महाभारत’ की कथा का हिन्दी रूपान्तर
- रघुवंश (1912ई.)- कालिदास के ‘रघुवंशम्’ महाकाव्य का भाषानुवाद
- वेणी-संहार (1913ई.)- संस्कृत कवि भट्टनारायण के ‘वेणीसंहार’ नाटक का अनुवाद
- कुमार सम्भव (1915ई.)- कालिदास के ‘कुमार सम्भव’ का अनुवाद
- मेघदूत (1917ई.)- कालिदास के ‘मेघदूत’ का अनुवाद
- किरातार्जुनीय (1917ई.)- भारवि के ‘किरातार्जुनीयम्’ का अनुवाद
- प्राचीन पण्डित और कवि (1918ई.)- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय
- आख्यायिका सप्तक (1927ई.)- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का वर्ण्य विषय
हिंदी भाषा के प्रसार, पाठकों के रुचि परिष्कार और ज्ञानवर्धन के लिए द्विवेदी जी ने विविध विषयों पर अनेक निबंध लिखे। विषय की दृष्टि से द्विवेदी जी निबंध आठ भागों में विभाजित किए जा सकते हैं – साहित्य, जीवन चरित्र, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, उद्योग, शिल्प भाषा, अध्यात्म। द्विवेदी जी ने आलोचनात्मक निबंधों की भी रचना की। उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में संस्कृत टीकाकारों की भांति कृतियों का गुण-दोष विवेचन किया और खंडन-मंडन की शास्त्रार्थ पद्धति को अपनाया है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का लेखन कला
द्विवेदी जी सरल और सुबोध भाषा लिखने के पक्षपाती थे। उन्होंने स्वयं सरल और प्रचलित भाषा को अपनाया। उनकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है और न उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों की भरमार है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी साहित्य में स्थान
हिंदी साहित्य की सेवा करने वालों में द्विवेदी जी का विशेष स्थान है। द्विवेदी जी की अनुपम साहित्य-सेवाओं के कारण ही उनके समय को द्विवेदी युग के नाम से पुकारा जाता है।
- भारतेंदु युग में लेखकों की दृष्टि की शुद्धता की ओर नहीं रही। भाषा में व्याकरण के नियमों तथा विराम-चिह्नों आदि की कोई परवाह नहीं की जाती थी। भाषा में आशा किया, इच्छा किया जैसे प्रयोग दिखाई पड़ते थे। द्विवेदी जी ने भाषा के इस स्वरूप को देखा और शुध्द करने का संकल्प किया। उन्होंने इन अशुध्दियों की ओर आकर्षित किया और लेखकों को शुध्द तथा परिमार्जित भाषा लिखने की प्रेरणा दी।
- द्विवेदी जी ने खड़ी बोली को कविता के लिए विकास का कार्य किया। उन्होंने स्वयं भी खड़ी बोली में कविताएं लिखीं और अन्य कवियों को भी उत्साहित किया। श्री मैथिली शरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय जैसे खड़ी बोली के श्रेष्ठ कवि उन्हीं के प्रयत्नों के परिणाम हैं।
- द्विवेदी जी ने नये-नये विषयों से हिंदी साहित्य को संपन्न बनाया। उन्हीं के प्रयासों से हिंदी में अन्य भाषाओं के ग्रंथों के अनुवाद हुए तथा हिंदी-संस्कृत के कवियों पर आलोचनात्मक निबंध लिखे गए।