याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें
- छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध समाज सुधारक और सतनाम पंथ के जन्मदाता गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसम्बर, सन् 1756 में रायपुर जिले के
- 19वीं सदी को नव-जागरण काल कहा जाता है। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीति के क्षेत्र में नये विचारों का जन्म गिरौदपुरी नामक गाँव में हुआ था।
- समाज सुधार की शुरुआत बंगाल, पंजाब व महाराष्ट्र राज्य से हुई।
- बंगाल के राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है।
- राजा राममोहन राय ने सन् 1828 को ब्रह्म समाज की स्थापना की।
- पंजाब में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सन् 1875 में आर्य समाज की स्थापना की।
- दोनों ने ही मूर्तिपूजा, आडम्बरों, छुआ-छूत, अंधविश्वासों का विरोध और नारी सम्मान के लिए सतत् कार्य किया।
- 19 वीं सदी में बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा व सती प्रथा जैसी कुरीतियाँ फैली हुई थीं।
- सन् 1829 में गर्वनर जनरल विलियम बैंटिंग ने सतीप्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाया।
- इस काल में विधवा पुनर्विवाह और नारी शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया।
- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, पं. विष्णु शास्त्री व रामकृष्ण गोपाल भंडारकर के प्रयासों से सन् 1856 को विधवा पुनर्विवाह कानून लागू हुआ। सन् 1929 के शारदा एक्ट में विवाह के लिए लड़कों के लिए 18 व लड़कियों के लिए 14 वर्ष की आयु तय की गई जो बाद में।
- क्रमश: 21 व 18 वर्ष हो गई।
- ज्योतिबा फुलें और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने बालिका शिक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया था।
- बालिका शिक्षा व नारी सशक्तिकरण में रमाबाई का विशेष योगदान था।
- स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
- ज्योतिबा फुले ने जाति प्रथा मिटाने के लिए सन् 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
- महादेव गोविन्द रानाडे ने सन् 1865 में प्रार्थना समाज की स्थापना की।
- 20वीं शताब्दी में महात्मा गाँधी ने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान में छुआ-छूत को अपराध का दर्जा दिया और इसके खिलाफ कानून की व्यवस्था करवाई।
अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. खाली स्थान भरिए-
(1) शारदा एक्ट 1929 द्वारा ………पर रोक लगाई गई
(2) सती प्रथा को बंद करवाने वाले समाज सुधारक………. थे।
(3) आंध्र प्रदेश के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक…….. थे.
(4) ………ने अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
(5) छत्तीसगढ़ में दलितों की स्थिति सुधारने का कार्य……….. ने किया।
(6) गुरु घासीदास का जन्म बलौदा बाजार जिले के. …………. में हुआ था।
उत्तर- (1) बाल विवाह, (2) राजा राममोहन राय, (3) वीरेशलिंगम, (4) महात्मा गाँधी, (5) पं. सुन्दर लाल शर्मा, (6) गिरौदपुरी।
प्रश्न 2. उचित सम्बन्ध जोड़िए-
1. राजा राम मोहन राय | (क) सत्य शोधक समाज |
2. दयानंद सरस्वती | (ख) प्रार्थना समाज |
3. सर सैयद अहमद खाँ | (ग) ब्रह्म समाज |
4. महादेव गोविन्द रानाडे | (घ) आर्य समाज |
5. ज्योतिबा फुले | (ङ) अलीगढ़ आन्दोलन। |
उत्तर_1. (ग), 2. (घ), 3. (ङ), 4. (ख), 5. (क) ।
प्रश्न 3. प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) गुरूघासीदास की जयंती कब मनाई जाती है ?
उत्तर – गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसम्बर को मनाई जाती है।
(2) सती प्रथा निषेध कानून कब और किस गवर्नर जनरल ने लागू किया था ?
उत्तर- सती प्रथा निषेध कानून सन् 1829 में गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंग ने लागू किया था।
(3) विधवा पुनर्विवाह कानून कब और किसके नेतृत्व में में लागू किया था ?
उत्तर- विधवा पुनर्विवाह कानून सन् 1856 में ईश्वर चंद विद्या सागर के नेतृत्व में लागू किया गया था।
(4) बाल विवाह प्रथा कब और किस एक्ट द्वारा समाप्त हुई थी ?
उत्तर- बाल विवाह सन् 1929 में शारदा एक्ट द्वारा समाप्त हुई थी।
(5) प्रथम बालिका स्कूल कब और कहाँ खुला था ?
उत्तर- प्रथम बालिका स्कूल सन् 1849 में कलकत्ता में खुला था।
(6) अंग्रेजी शिक्षा से भारतीयों को किन-किन बातों की जानकारी मिली ?
उत्तर- अंग्रेजी शिक्षा से भारतीयों को निम्नलिखित बातों की जानकारी मिली- (1) अंग्रेजी भाषा के अध्ययन से पाश्चात्य साहित्य व संस्कृति को जानने का अवसर मिला। (2) स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, लोकतंत्र, तार्किकता तथा वैज्ञानिकता जैसे आधुनिक विचारों का परिचय मिला। (3) आडम्बर, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, जाति प्रथा जैसे दोषों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। (4) प्राचीन धर्म-ग्रंथों और दर्शनशास्त्रों के अध्ययन शुरू हुए। (5) आधुनिक भारत के निर्माण की आधारशिला रखने में सहायता मिली।
(7) सतनाम पंथ के दो प्रमुख सिद्धांतों को बताइये ।
उत्तर- सतनाम पंथ के जनक गुरु घासीदास थे। उन्होंने समाज सुधार के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए अनेक उपाय बताये, जिनमें प्रमुख दो बातें (सिद्धांत) निम्न हैं-
1. सत्य ही ईश्वर गुरु घासीदास ने सत्य को ही ईश्वर कहा है। सच्चे मन से सत्य का आचरण करने से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। शेष बाह्य आडम्बर हैं, जिससे मन भटकता है। सतपंथ में सत्यनाम का प्रतीक ‘श्वेत ध्वज’ यह संदेश देता है कि मनुष्य को सत्य मार्ग से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। सत्य हो ईश्वर है, सत्य का पालन ईश्वर की उपासना है।
2. सामाजिक व धार्मिक समानता गुरुपासी दास समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआ-छूत और धार्मिक संकीर्णता का विरोध करते हैं। उन्होंने लोगों को यह संदेश दिया कि मानव मात्र ईश्वर के संतान है, अतः उनमें भेद करना पाप है। मनुष्य का धर्म केवल मानव धर्म है। हमें सभी धर्मो का सम्मान व आदर करना चाहिए।।
(8) विधवा-पुनर्विवाह कैसे संभव हुआ था ?
उत्तर- 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में बाल विवाह प्रचलित था। कम उम्र की लड़कियों का विवाह अधिक उम्र के पुरुषों से कर दिया जाता था, जिसके कारण लड़कियाँ बचपन में हो विधवा हो जाती थीं। इन विधवाओं का जीवन अत्यन्त कष्टमय हुआ करता था। इसी समय बंगाल में ईश्वरचंद विद्यासागर नामक समाज सुधारक हुए। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाने के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया। उसने बंगाल में इसके लिए जोरदार आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन का व्यापक जनसमर्थन भी मिला महाराष्ट्र में भी पं. विष्णुशास्त्री स्वयं एक विधवा से | विवाह कर समाज में उदाहरण प्रस्तुत किया। रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने रूढ़िवादियों के विरोध के बावजूद अपनी विधवा बेटी का पुनर्विवाह कराया। महादेव गोविन्द रानाडे ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। आंध्रप्रदेश में भी वीरेशलिंगम द्वारा विधवा- पुनर्विवाह का समर्थन किया गया। परिणामस्वरूप सन् 1856 में विधवा-पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई।
(9) जाति प्रथा के विरोध में ज्योतिबा फुले के योगदान को बताइये।
उत्तर- ज्योतिबा फुले का जन्म माली जाति में हुआ था तब यह जाति अछूत जाति मानी जाती थी। अछूत जाति पर हो रहे अत्याचारों को ज्योतिबा फुले ने स्वयं भोगा था और इसलिए, उसने समाज के इस कलंक को मिटा देने का संकल्प लिया। ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन अछूत जाति के उद्धार में लगा दिया। अपने प्रयासों में तेजी लाने के लिए उन्होंने सन् 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य कार्य निम्न जाति के लोगों को समानता का अधिकार दिलाना था। इसने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क करने तथा दलित |जाति के पुरुष तथा महिला शिक्षकों की नियुक्ति किये जाने की माँग की। उन्होंने विभिन्न नाटकों एवं लेखों द्वारा भी जाति प्रथा के विरुद्ध जन जागरण लाने का निरन्तर प्रयास किया। ज्योतिबा फुले के द्वारा किया गया जातिवाद के खिलाफ इस संघर्ष ने ही समाज में निम्न जाति को सामाजिक समानता का अधिकार दिलाने में मील का पत्थर साबित हुआ।
(10) नारी शिक्षा हेतु विभिन्न प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- (1) नारी शिक्षा की दिशा में सबसे पहला प्रयास ईश्वर चन्द विद्यासागर ने किया। उनके द्वारा सन् 1849 में कलकत्ता का बेसन स्कूल खोला। यह बालिकाओं का पहला स्कूल था। इसके बाद उन्होंने कई अन्य विद्यालयों का भी संचालन किया। (2) उत्तर भारत में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से बालक-बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए कई स्कूलों व कालेजों की स्थापना की। (3) सर सैय्यद अहमद खाँ ने भी मुस्लिम समाज के विकास के लिए अलीगढ़ आन्दोलन चलाया तथा स्कूलों व कालेजों में आधुनिक शिक्षा की व्यवस्था की। (4) महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले व उनकी पत्नी सावित्री बाई ने पूना में बालिका स्कूल खोला। इसमें निम्न जाति की बालिकाओं को विशेष रूप से प्रवेश दिया जाता था। (5) रमाबाई ने विधवा महिलाओं को शिक्षित करने के लिए शारदा सदन नामक आश्रम व स्कूल खोला। वे स्वयं संस्कृत की विदुषी थी।
(11) जातिप्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के लिए आज भी समाज में किसकी आवश्यकता है।
उत्तर- जातिप्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए आज भी समाज में पर्याप्त जन-जागरण की आवश्यकता है।
(12) आपको लगता है कि बाल विवाह गलत और विधवा पुनर्विवाह सही है कैसे ? इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर- बाल विवाह पूर्णतः गलत है क्योंकि इसमें लड़के एवं लड़कियाँ शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर तथा पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होते। लड़कियों में कम उम्र में माँ बनने का बोझ आ जाता है। जिससे उनकी अनेक प्रकार की शारीरिक क्षति होती है। विधवा पुनर्विवाह इसलिए आवश्यक है क्योंकि अकेले ही पारिवारिक दायित्वों को निभाना बहुत ही कठिन होता है। समाज में अकेले रहना अत्यंत दुश्कर है अतः विधवा पुनर्विवाह आवश्यक है।
प्रश्न 4. टिप्पणी लिखिए- (अ) रमाबाई (ब) डॉ. भीमराव अम्बेडकर ।
उत्तर- (अ) रमाबाई रमाबाई का जन्म सन् 1856 में हुआ था। उनके पिता अनंतशास्त्री वेदपाठी ब्राह्मण थे। उन्होंने सामाजिक विरोध के बावजूद अपनी पत्नी को संस्कृत पढ़ाना प्रारंभ कर दिया, जिसके कारण उन्हें गाँव से निकाल दिया गया। मात्र 14 वर्ष की आयु में रमाबाई के माता-पिता रमाबाई व उनके भाई को छोड़ स्वर्ग सिधार गए। रमाबाई की शिक्षा उसके लिए अभिशाप बन गई, उन्हें किसी ने सहारा नहीं दिया। रमाबाई जब कलकत्ता पहुँची तो उनका सम्पर्क राजा राम मोहन राय, ईश्वरचन्द विद्यासागर जैसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों से हुआ। कलकत्ता के लोगों ने उन्हें पंडिता व ‘सरस्वती’ की उपाधि देकर सम्मानित किया। उन्होंने विधवा स्त्रियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इसके लिए उन्होंने शारदा सदन की स्थापना की, जिसमें महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई व अन्य प्रशिक्षणों के साथ निःशुल्क शिक्षा की भी व्यवस्था की। वे चाहती थीं कि महिलाएँ भी पुरुषों के समान सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में खुलकर सामने आएँ और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया।
(ब) डॉ. भीमराव अम्बेडकर- डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। बचपन में ही इन्हें माता-पिता का वियोग झेलना पड़ा। अछूत जाति के होने के कारण विद्यालय में इन्हें अलग कोने में बिठा दिया जाता था। दृढ संकल्पी और कठोर परिश्रमी भीमा ने धैर्यपूर्वक विपरीत परिस्थितियों का सामना किया और श्रेष्ठतम परिणामों के कारण उन्हें सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड जाने का अवसर मिला। कानून विद् बनकर लौटे अम्बेडकर ने अपना सारा जीवन दलितों के उद्धार में समर्पित कर दिया। उनकी असाधारण प्रतिभा के कारण ही उन्हें भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्हीं के प्रयासों से भारतीय संविधान में छुआ-छूत का अंत (अनुच्छेद-17) करने को कानूनी मान्यता दी गई। वर्तमान में सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक स्थलों व सेवाओं के उपयोग का अधिकार है- यह बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों का ही सुफल है।