मीराबाई – संक्षिप्त विवरण (Short Notes):
- जन्म: 1516 ई., मेड़ता (मेड़तिया) के राठौर रत्नसिंह के घर
- वैवाहिक जीवन: महाराणा सांगा की पुत्रवधू व महाराज भोजराज की पत्नी
- भक्ति जीवन:
- बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्ति में लीन
- पति की मृत्यु के बाद साधु-संतों के साथ भजन-कीर्तन
- राजपरिवार के विरोध के कारण लोकलाज त्यागकर घर-परिवार छोड़ दिया
- मृत्यु: 1546 ई. में द्वारका में
- भक्ति भावना:
- माधुर्य भाव से श्रीकृष्ण को प्रियतम व पति मानकर भक्ति
- लोकलाज को त्यागकर भक्ति का मार्ग अपनाया
- काव्य विशेषताएँ:
- कृष्ण का मोहक, सचेष्ट चित्रण (मुरली बजाते, मुस्काते, गली में आते हुए)
- मीरा की कविताओं में विरह प्रधान, मिलन स्वप्नवत
- विरह-वेदना का सजीव चित्रण:
- वास्तविकता का प्रतीक: “अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोई”
- स्वप्न का प्रतीक: “सावन माँ उमरयो म्हारो हियरा, भणक सुण्या हरि आवण री”
- भाव एवं भाषा:
- सरल, मधुर, भावनाप्रवण
- स्त्री के आत्मसंघर्ष और सामाजिक बंधनों से मुक्ति का चित्रण
- ध्वनि, रूप-रस और संवेदना से भरी अभिव्यक्ति
- प्रसिद्ध पद (उदाहरण):
“जोगी मत जा मत जा मत जा, पाँई परूँ मैं तेरी चेरी हौं।
प्रेम भगति को पैड़ों ही न्यारो, हमकूँ गैल बता जा।
अगर चंदन की चिता रचाऊँ, अपने हाथ जला जा।
जल बल भई भस्म की ढेरी, अपने अंग लगा जा।
मीराँ कहै गिरधर नागर, जोत में जोत मिला जा।।”
➡️ मीराबाई हिन्दी भक्ति काव्य परंपरा की अत्यंत महत्वपूर्ण कवयित्री हैं, जिनकी कविताएँ प्रेम, भक्ति और विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति हैं।