मलूकदास (1574–1682 ई.) – संक्षिप्त नोट्स
- जन्म: 1574 ई., कड़ा (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश)
- पिता का नाम: सुंदरदास खत्री
- मृत्यु: 1682 ई. (उम्र 106 वर्ष), औरंगजेब के शासनकाल में
- मत: निर्गुण भक्ति परंपरा के संत
🔆 महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
- मलूकदास ने हिंदू-मुस्लिम एकता, वैराग्य, आत्मबोध और ईश्वर के निर्गुण स्वरूप की शिक्षा दी।
- इनके चमत्कारों की कई लोककथाएँ प्रसिद्ध हैं (जैसे शाही जहाज को बचाना, रुपए का तोड़ा गंगा में तैराना)।
- इनकी गद्दियाँ कड़ा, जयपुर, पटना, काबुल, नेपाल, गुजरात, मुलतान आदि में स्थापित हुईं।
🧘♂️ गुरु के विषय में मतभेद:
- कुछ इन्हें कील का शिष्य मानते हैं।
- कुछ के अनुसार द्राविड़ विट्ठल इनके गुरु थे।
- मलूकदास ने स्वयं गुरु पुरुषोत्तम (देवनाथ के पुत्र) का उल्लेख किया है।
📚 प्रमुख रचनाएँ:
- ज्ञानबोध (प्रसिद्ध)
- रत्नखान (प्रसिद्ध)
- रामअवतारलीला
- भक्तिविवेक
- सुखसागर
- ब्रजलीला
- ध्रुवचरित
- ज्ञानपरोछि
✍️ कविता की विशेषताएँ:
- आख्यान शैली का प्रयोग
- कथाओं और दृष्टांतों के माध्यम से उपदेश
- विषय: ब्रह्मोपासना, इन्द्रियनिग्रह, वैराग्य, आत्मज्ञान
- भाषा: अवधी और ब्रज मिश्रित, जिसमें अरबी-फारसी के शब्द मिलते हैं
- कविता में संतुलन और प्रवाह है, जनसाधारण के लिए उपयुक्त शैली
💬 प्रसिद्ध उद्धरण:
“अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।।”
“कहत मलूक जो बिन सिर खेपै सो यह रूप बखानै।
या नैया के अजब कथा, कोई बिरला केवट जानै।।”
🌼 सार:
मलूकदास संत परंपरा में निर्गुण भक्ति, साम्प्रदायिक समन्वय और सरल जीवन दर्शन के प्रमुख प्रवक्ता थे। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से समाज को सच्ची भक्ति, वैराग्य और आत्मबोध की ओर उन्मुख किया।