भूषण (सन् 1613-1715 ई.)

भूषण (संवत् 1670 – 1772)वीररस के प्रमुख कवि


📍 जीवन परिचय:

  • जन्म: संवत् 1670 (1613 ई. के लगभग), तिकवाँपुर, कानपुर (उत्तर प्रदेश)
  • पिता: रत्नाकर त्रिपाठी
  • उपाधि: ‘भूषण’ — चित्रकूट के राजा रुद्रसाह सोलंकी द्वारा प्रदत्त
  • मृत्यु: संवत् 1772 (1715 ई. के लगभग)
  • संबंध: कुछ विद्वान इन्हें रीतिकालीन कवि चिंतामणि, मतिराम के भाई मानते हैं।

⚔️ राजाश्रय और वीरता के प्रति समर्पण:

  • कई राजाओं के दरबार में रहे, परंतु इनका काव्य नायक छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड के वीर राजा छत्रसाल रहे।
  • मुगल शासक औरंगजेब की कट्टरता और हिन्दू विरोधी नीति के विरुद्ध इन्होंने काव्यात्मक विद्रोह किया।
  • विलासी राजाओं का आश्रय नहीं लिया, केवल राष्ट्रनायक वीरों के साथ रहे।

✍️ प्रमुख रचनाएँ:

  1. शिवराजभूषण
  2. शिवाबावनी
  3. छत्रसालदशक
  4. भूषणहजारा
  5. भूषणउल्लास
  6. दूषणउल्लास

🔸 ‘शिवराजभूषण’ नामक ग्रंथ में अलंकारों का निरूपण किया गया है, लेकिन वह अलंकार शास्त्र की दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं माना गया।


🗣️ भाषा एवं काव्य विशेषताएँ:

  • भाषा: ब्रजभाषा, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण और वीररस प्रधान
  • शैली: ओज, गेयता और अनुप्रास की प्रधानता
  • रचना में वीरता, स्वाभिमान, धर्मरक्षा, राष्ट्रप्रेम, और हिंदू गौरव की भावना प्रकट होती है।
  • भूषण की कविता जन-जागरण और धार्मिक चेतना का सशक्त माध्यम रही है।

💥 प्रसिद्ध वीररस युक्त उदाहरण (शिवराजभूषण से):

इन्द्र जिमि जम्भ पर, बाडव सुअम्भ पर,
रावन सदम्भ पर, रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्त्रबाहुपर, राम द्विजराज है।
दावा दुमदण्ड पर, चीता मृग झुण्ड पर,
भूषण वितुण्डपर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलेच्छ वंस पर सेर शिवराज हैं।।

➡️ इस उदाहरण में भूषण ने छत्रपति शिवाजी को मुगल सत्ता के विनाशक के रूप में चित्रित किया है।


📌 विशेष टिप्पणियाँ:

  • भूषण का योगदान केवल वीरता के वर्णन तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने धर्म-संरक्षण, सांस्कृतिक चेतना, और राष्ट्रगौरव को भी स्वर दिया।
  • यद्यपि वे रीतिकालीन कवि थे, फिर भी उन्होंने नायिका भेद, श्रृंगार, या दरबारी विलासिता से परहेज किया।
  • उनका उद्देश्य था – नायक के गुणों का यथार्थ और ओजस्वी वर्णन, न कि केवल शास्त्रीय प्रदर्शन।

📚 निष्कर्ष:

भूषण हिन्दी साहित्य में वीर रस के अनुपम कवि हैं, जिन्होंने अपने काव्य के माध्यम से हिंदवी साम्राज्य, धर्म, और स्वराज्य की रक्षा का संदेश दिया। उनकी ओजस्वी कविता आज भी देशभक्ति और साहस का संचार करती है।

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