दादूदयाल (1544-1603 ई०)

🌼 दादूदयाल (1544–1603 ई.) – निर्गुण भक्ति मार्ग के संत कवि


📍 जीवन परिचय:

  • जन्म: 1544 ई., अहमदाबाद (गुजरात)
  • मृत्यु: 1603 ई., नराणा गाँव, जयपुर (राजस्थान)
  • मुख्य मठ: दादूद्वारा, नराणा (दादूपंथियों का प्रधान केंद्र)
  • संप्रदाय: परमब्रह्म संप्रदाय (बाद में दादूपंथ कहलाया)

🧬 वंश और जन्म की मान्यताएँ:

  • कुछ विद्वानों के अनुसार दादू गुजराती ब्राह्मण, कुछ के अनुसार मोची या धुनिया जाति से थे।
  • प्रो. चंद्रिका प्रसाद त्रिपाठी और क्षितिमोहन सेन के अनुसार वे मुसलमान थे, वास्तविक नाम दाउद था।
  • मान्यता है कि वे साबरमती नदी में बहते हुए लोदीराम नागर ब्राह्मण को मिले थे।

📿 गुरु और धार्मिक प्रेरणा:

  • निश्चित गुरु का उल्लेख नहीं, परन्तु उन्हें कबीर के पुत्र कमाल का शिष्य माना गया है।
  • पं० रामचंद्र शुक्ल के अनुसार दादू की बानी में कबीर की छाया स्पष्ट है।
  • वे अनुभव को ही प्रमाण मानते थे, कबीर की तरह ही व्यक्तिगत साधना में विश्वास रखते थे।

📚 मुख्य रचनाएँ:

  1. हरदेवाणी – शिष्यों संतदास और जगन्नाथदास द्वारा रचना-संग्रह
  2. अंगवधू – शिष्य रज्जब द्वारा हरदेवाणी की संशोधित प्रस्तुति
  3. कायाबेली – आत्मानुभव व संत चेतना की रचना

🌸 भक्ति और काव्य विशेषताएँ:

  • निर्गुण भक्ति मार्ग के प्रवर्तक, परन्तु सगुण रूप को भी स्वीकार किया
  • कविता में प्रेम, सहजता, आत्मबोध, और ईश्वर की सर्वव्यापकता का सुंदर वर्णन
  • बाद-विवाद से दूर, संप्रदायिकता से परे निरपेक्ष दृष्टिकोण
  • उनकी भाषा: राजस्थानी-प्रभावित हिंदी, जिसमें गुजराती, पंजाबी, सिंधी, अरबी, फारसी के शब्द मिलते हैं
  • कविता में जनसामान्य को लक्ष्य कर सरल एवं सहज शैली अपनाई गई है
  • इस्लामी साधना की भाषा और प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है

🕊️ प्रेम-भावना से ओतप्रोत उदाहरण – दादू की बानी:

भाई रे। ऐसा पंथ हमारा।
द्वै पंख रहित पंथ गह पूरा अबरन एक अधारा।
बाद विवाद काहू सौं नाहीं मैं हूं ना जग थें न्यारा।।
समदृष्टि सूँ भाई सहज में आपहिं आप बिचारा।
मैं तैं मेरी यह मति नाहीं निरबैरी निरविकारा।।
काम कल्पना कदे न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा।
ऐहि पथि पहुँचि पार गहि दादू सो तब सहज संभारा।।

🔹 इसमें निर्गुण प्रेममार्ग, आत्मशुद्धि, समभाव और ईश्वर-भक्ति की भावना मुखर है।


📌 मुख्य विशेषताएँ सारांश रूप में:

तत्वविवरण
संप्रदायपरमब्रह्म संप्रदाय (बाद में दादूपंथ)
प्रभावकबीर के विचारों का प्रभाव
कविता की भाषाराजस्थानी-प्रभावित हिंदी, मिश्रित भाषायी शब्दावली
विषयआत्मबोध, सद्गुरु महिमा, प्रेम, संसार की नश्वरता
कविता का स्वरूपसरल, सहज, जनसुलभ, अनुभवसिद्ध

🔚 निष्कर्ष:

दादूदयाल भक्ति आंदोलन के ऐसे संत कवि थे जिन्होंने निर्गुण ईश्वर, सद्गुरु भक्ति, और मानव प्रेम को कविता के माध्यम से आत्मसात किया। उनकी वाणी में संप्रदाय से ऊपर उठकर, साधना की निजी अनुभूति और शुद्ध आध्यात्मिकता का स्वर गूंजता है।

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