अष्टछाप के भक्त कवि: वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख स्तंभ
अष्टछाप कवि वल्लभ संप्रदाय से जुड़े आठ प्रमुख कृष्णभक्त कवि थे, जो पुष्टिमार्गीय परंपरा में कृष्ण की भक्ति और उनकी लीलाओं का गुणगान करते थे। ये सभी कवि या तो वल्लभाचार्य के शिष्य थे या उनके पुत्र विट्ठलनाथ के अनुयायी। अष्टछाप का मुख्य कार्य श्रीनाथजी की आराधना और उनके रूप व लीलाओं का काव्य रूप में वर्णन करना था।
अष्टछाप के आठ कवि
1. सूरदास (1478-1583 ई.)
- गुरु: वल्लभाचार्य
- रचनाएँ: सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी
- विशेषता: वात्सल्य और शृंगार रस के अद्वितीय कवि। सूरदास की कृष्ण भक्ति काव्य में बाल कृष्ण की मोहक छवियों का उत्कृष्ट वर्णन है।
2. कुंभनदास (1468-1582 ई.)
- गुरु: वल्लभाचार्य
- विशेषता: भक्ति में निष्कपटता और सीधा-सादा भजन। उन्होंने राजदरबार और सांसारिक सुखों से हमेशा दूरी बनाए रखी। उनकी प्रसिद्ध उक्ति –
“संवत सोलह सौ असी, कुंभन कह्यो पुकार।
सुनो सभी साधु जन, साहब मेरो पार।”
3. परमानंददास
- गुरु: वल्लभाचार्य
- विशेषता: कृष्ण की बाल लीलाओं के श्रेष्ठ गायक। इनकी रचनाओं में माधुर्य भाव प्रमुखता से देखने को मिलता है।
4. कृष्णदास
- गुरु: वल्लभाचार्य
- विशेषता: इन्होंने अपने पदों में भक्ति की सरलता को प्रधानता दी।
5. नंददास
- गुरु: विट्ठलनाथ
- रचनाएँ: रस पंचाध्यायी, सुदामा चरित, अनन्य प्रबोध
- विशेषता: इन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं और रासलीलाओं का सुंदर वर्णन किया। इनके पदों में कृष्ण और गोपियों के प्रेम का माधुर्य भाव देखने को मिलता है।
6. गोविंदस्वामी
- गुरु: विट्ठलनाथ
- विशेषता: सरल और भावप्रधान भक्ति पदों की रचना की।
7. छीतस्वामी
- गुरु: विट्ठलनाथ
- विशेषता: भक्तिपरक और सरस भाषा में भजनों की रचना की।
8. चतुर्भुजदास
- गुरु: विट्ठलनाथ
- विशेषता: इनकी रचनाओं में कृष्ण भक्ति और दार्शनिक भावनाओं का समन्वय देखने को मिलता है।
अष्टछाप कवियों का योगदान
- पुष्टिमार्गीय परंपरा की स्थापना: अष्टछाप कवियों ने वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय भक्ति की आधारशिला रखी।
- कृष्ण लीला का उत्कृष्ट वर्णन: इनकी रचनाओं में कृष्ण की बाल लीलाएँ, रासलीलाएँ और गोपियों के साथ उनके प्रेम भाव का अद्वितीय चित्रण है।
- भक्ति आंदोलन में योगदान: इन कवियों ने सरल भाषा में भक्ति साहित्य की रचना कर आम जनमानस में भक्ति आंदोलन को लोकप्रिय बनाया।
- हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया: विशेष रूप से ब्रज भाषा में लिखे गए इनके पदों ने भक्तिकालीन साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दीं।
निष्कर्ष
अष्टछाप कवि न केवल वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख स्तंभ थे, बल्कि उन्होंने कृष्ण भक्ति को काव्य का प्रमुख विषय बनाया। सूरदास इनमें सर्वोच्च माने जाते हैं, परंतु सभी अष्टछाप कवियों ने भक्ति साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी।