सुन्दरदास का जन्म जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी दौसा में रहने वाले खंडेलवाल वैश्य परिवार में चैत्र शुक्ल 9, सं. 1653 वि. को हुआ था। माता का नाम सती और पिता का नाम परमानंद था। ६ वर्ष की अवस्था में ये प्रसिद्ध संत दादू के शिष्य बने और उन्हीं के साथ रहने भी लगे। दादू इनके अद्भुत रूप को देखकर इन्हें ‘सुंदर’ कहने लगे थे।
इनका स्वर्गवास कार्तिक शुक्ल 8, सं. 1746 वि. को सांगानेर नामक स्थान में हुआ।
कृतियाँ
सुंदरदास की कुल 42 रचनाएँ कही गई हैं जिनमें प्रमुख हैं
‘ज्ञान समुद्र’, ‘सुंदर विलास’, ‘सर्वांगयोगप्रदीपिका’, ‘पंचेंद्रिय चरित्र’, ‘सुख समाधि’, ‘अद्भुत उपदेश’, ‘स्वप्न प्रबोध’, ‘वेद विचार’, ‘उक्त अनूप’, ‘ज्ञान झूलना’ ‘पंच प्रभाव’ आदि।
सुंदरदास योग और अद्वैत वेदांत के पूर्ण समर्थक थे। ये काव्य रीतियों से भली भाँति परिचित रससिद्ध कवि थे।
काव्य-गरिमा के विचार से इनका ‘सुंदर विलास’ बड़ा ललित और रोचक ग्रंथ है। इन्होंने रीति कवियों की पद्धति पर चित्र काव्य की भी सृष्टि की है जिससे इनकी कविता पर रीति काव्य का प्रभाव स्पष्टत: परिलक्षित होता है। परिमार्जित और सालंकार ब्रजभाषा में इन्होंने भक्तियोग, दर्शन, ज्ञान, नीति और उपदेश आदि विषयों का पांडित्यपूर्ण प्रतिपादन किया है।