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हिंदी वर्तनी का मानकीकरण

एक ही स्वन को प्रकट करने के लिए विविध वर्णों का प्रयोग वर्तनी को जटिल बना देता है और यह लिपि का एक सामान्य दोष माना जाता है। यद्यपि देवनागरी लिपि में यह दोष न्यूनतम है. फिर भी उसकी कुछ अपनी विशिष्ट कठिनाइयाँ भी है।
इन सभी कठिनाइयों को दूर कर हिंदी वर्तनी में एकरूपता लाने के लिए भारत संरकार के शिक्षा मंत्रालय ने सन् 1961 में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी। समिति ने अप्रैल, 1962 में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत की, जिन्हें सरकार ने स्वीकृत किया। इन्हें 1967 में हिंदी वर्तनी का मानकीकरण शीर्षक पुस्तिका में व्याख्या तथा उदाहरण सहित प्रकाशित किया गया था।

वर्तनी संबंधी अद्यतन नियम इस प्रकार हैं :

संयुक्त वर्ण

खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर ही बनाया जाना चाहिए, यथा:
ख्याति, लग्न, विघ्न
कच्चा, छज्जा
नगण्य
कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास
प्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य
शय्या
उल्लेख

(अ) ‘क’ और ‘फ़’ के संयुक्ताक्षर :
संयुक्त, पक्का, दफ़्तर आदि की तरह बनाए जाएँ।

(आ) ड, छ, ट, ठ, ड, ढ, द और ह के संयुक्ताक्षर हल चिहन लगाकर ही बनाए जाएँ.
यथा : वाड.मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्या, चिह्न, ब्रह्मा आदि।

(इ) संयुक्त ‘र’ के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे, यथा : प्रकार, धर्म, राष्ट्र।

(ई) ‘श्र’ का प्रचलित रूप ही मान्य होगा।
(उ) इ’ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व, यथा : कुट्टिम, द्वितीय, बुद्धिमान, चिह्नित आदि
(ऊ) संस्कृत में संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे, उदाहरणार्थ : संयुक्त, चिह्न, विद्या, चञ्चल, विद्वान, वृद्ध, अङ्क,, द्वितीय, बुद्धि आदि।

विभक्ति-चिहन

(क) हिंदी के विभक्ति-चिंह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक लिखे जाएँ, जैसे-
राम ने, राम् को, राम से आदि तथा स्त्री ने, स्त्री को, स्त्री से आदि। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपदिक के साथ मिलाकर लिखे जाएँ, जैसे-उसने, उसको, उससे, उसपर आदि।
(ख) सर्वनामों के साथ यदि दो विभक्ति-चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक लिखा जाए, जैसे-उसके लिए, इसमें से।
(ग) सर्वनाम और विभक्ति के बीच ‘ही’, ‘तक’ आदि का निपात हो तो विभक्ति को पृथक् लिखा जाए, जैसे-आप ही के लिए, मुझ तक को।


क्रियापद

आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, किया करता था, पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं आदि।
संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ पृथक-पृथक लिखी जाएँ, जैसे-पढ़ा करता है,

हाइफ़न

हाइफ़न का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है :
(क) द्वद्व समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाए, जैसे-
राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती-संवाद, देख-रेख, चाल-चलन, हंसी-मजाक, लेन-देन, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना आदि।
(ख) सा. जैसा आदि से पूर्व हाइफ़न रखा जाए, जैसे-तुम-सा, राम-जैसा, चाकू-से तीखे।
(ग) तत्पुरुष समास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाए, जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, अन्यथा नहीं, जैसे-भू-तत्व।
(घ) कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफ़न का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे-द्वि-अक्षर, द्वि-अर्थक आदि।

अव्यय

हिंदी में आह, ओह, अहा,ऐ. ही, तो, सो, भी, न, जब, तब, कब, यहाँ, वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ,
कि, किंतु, मगर, लेकिन, चाहे, या, अथवा, तथा, यथा, और आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय है।


श्रुतिषूलक ‘य’, ‘व’

(क) जहाँ श्रुतिमूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है, वहाँ न किया जाए, अर्थात् किए-किये, नई-नयी, हुआ-हुवा आदि में से पहले (स्वरात्मक) रूपों का ही प्रयोग किया जाए।
(ख) जहाँ ‘य’ श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का ही मूल तत्व हो वहाँ वैकल्पिक श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, जैसे-स्थायी, अव्ययीभाव, दायित्व
आदि। यहाँ स्थाई, अव्यईभाव, दाइत्व नहीं लिखा जाएगा।

अनुस्वार तथा अनुनासिकता-चिह्न (चंद्रबिंदु)

अनुस्वार और अनुनासिकता चिह्न दोनों प्रचलित रहेंगे।
(क) संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचमांक्षर के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए, जैसे-गंगा, चंचल, ठंडा, सध्या, संपादक आदि में पंचमाक्षर के बाद उसी वर्ग का वर्ण आगे आता है, अतः पचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग होगा (गड़्गा, चञ्चल, ठण्डा,
सन्ध्या, सम्पादक का नहीं)। यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए अथवा वही परंचमाक्षर दुबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा, जैसे- वाङ्मय, अन्य, अन्न, सम्मेलन, सम्मति, चिन्मय, उन्मुख आदि। अतः वांमय, अंय, संमेलन, संमति, चिंमय, उंमुख, आदि रूप ग्राह्य नहीं है।

(ख) चंद्रबिंदु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की गुंजाइश रहती है, जैसे-हंस : हँस, अंगना : अँगना आदि में। अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग़ अवश्य किया जाना चाहिए। किंतु जहाँ (विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर जुड़ने वाली मात्रा के साथ) चंद्रबिंदु के प्रयोग से छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो और चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु (अनुस्वार चिह्न) का प्रयोग किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न करे, वहाँ चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु के प्रयोग की छूट दी जा सकती है, जैसे-नहीं, में, मैं। कविता आदि के प्रसंग में छंद की दृष्टि से चंद्रबिंदु का यथास्थान अवश्य प्रयोग किया जाए। इसी प्रकार छोटे बच्चों की प्रवेशिकाओं में जहाँ चंद्रबिंदु का उच्चारण सिखाना अभीष्ट हो, वहां उसका यथास्थान सर्वत्र प्रयोग किया जाए, जैसे- कहाँ, हँसना, आँगन, सँवारना, मैं, में, नहीं आदि।

विदेशी ध्वनियाँ

(क) अरबी-फ़ारसी या अंग्रेजी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके है और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते है, जैसे- कलम, किला, दाग आदि (कलम, किला, दाग़ नही)।

स्वन-परिवर्तन

संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों-का-त्यों ग्रहण किया जाए। अतः ‘ब्रह्मा’ को ‘ब्रम्हा’, ‘चिह्न’ को ‘चिन्ह’, ‘उऋण’ को ‘उरिण’ में बदलना उचित नहीं होगा। इसी प्रकार ग्रहीत, दृष्टव्य, प्रदर्शिनी, अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध प्रयोग ग्राह्य नहीं है। इनके स्थान पर क्रमशः गृहीत, द्रष्टव्य, प्रदर्शनी, अत्यधिक, अनधिकार ही लिखना चाहिए। जिन तत्सम शब्दों में तीन व्यंजनों के संयोग की स्थिति में एक द्वित्वमूलक व्यंजन लुप्त हो गया है उसे न लिखने की छूट है, जैसे- अर्द्ध/अर्ध, उज्ज्वल/उज्वल, तत्त्व/तत्व आदि।

विसर्ग

विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए, जैसे- ‘दुःखानुभूति’ में। यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग का लोप हो चुका हो तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चल जाएमा, जैसे-‘दुख-सुख के साथी’।

‘ऐ’,औ’ का प्रयोग

हिंदी में ऐ (“), औ(1) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है। पहले प्रकार की ध्वनियाँ ‘है’, और’ आदि में है तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौवा’ आदि में। इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों का प्रयोग किया जाए।

पूर्वकालिक प्रत्यय

पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाए, जैसे-मिलाकर, खा-पीकर, रो-रोकर आदि।

अन्य नियम

(क) शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा।
(ख) फुलस्टॉप को छोड़ कर शेष विराम आदि चिह्न वही ग्रहण कर लिए जाएँ, जो अंग्रेजी में प्रचलित हैं,

यथा-( -, -, ;,?, ।,!, :, = )
(विसर्ग के चिह्न को ही कोलन का चिह्न मान लिया जाए)
(ग) पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई (।) का प्रयोग किया जाए।