शहीद की माँ कक्षा 6 हिन्दी

शहीद की माँ

(जेल की कोठरी का दृश्य । रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ सींखचों के पीछे, इधर-उधर घूमते हुए मस्ती से गा रहे हैं। )

“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है ज़ोर कितना बाजुए क़ातिल में है।

सिर्फ मिट जाने की हसरत, इक दिले ‘बिस्मिल’ में है

अब तेरी हिम्मत की चर्चा, गैर की महफिल में है।

(गीत की समाप्ति के साथ ही जेलर प्रवेश करता है। जेलर भारतीय है। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के प्रति उसकी

आँखों में अपनापन है | )

जेलर – ( प्रवेश करते हुए) पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ !

बिस्मिल – ( मुस्कुराते हुए जेलर की तरफ देखकर) जेलर साहब ! फरमाइए क्या बात है ? –

जेलर – तुमसे कोई मिलने आया है।

बिस्मिल – मुझसे मिलने ? कौन आया है ? –

जेलर- तुम्हारी माँ हैं।

बिस्मिल- (प्रसन्नता से) मेरी माँ! (कुछ सोचकर अचानक उदास हो जाता है।) लेकिन…..! नहीं, नहीं, जेलर

साहब ! मैं अपनी माँ से नहीं मिलूँगा ।

जेलर- (आश्चर्य से ) माँ से नहीं मिलोगे? यह तुम क्या कह रहे हो ?

बिस्मिल- हाँ जेलर साहब, मैं अपनी माँ से नहीं मिल पाऊँगा । मुझे उनसे नहीं मिलना चाहिए ।

जेलर – लेकिन क्यों? कल तुम्हें फाँसी होने वाली है और तुम आखिरी बार अपनी माँ से विदा भी नहीं लोगे?

बिस्मिल- मज़बूर हूँ जेलर साहब ! केवल एक दिन की मेरी इस जिंदगी को देखकर माँ को कितना दुख होगा, इसे आप नहीं जान सकते और मुझे डर है कि माँ की भीगी आँखें कहीं मेरे कदमों को डगमगा न दें, मुझे मेरी मौत के लिए अफसोस न होने लगे।

जेलर ( व्यंग्य से)- इसका मतलब हुआ कि तुम्हें अपने आप पर यकीन नहीं । बिस्मिल नहीं, नहीं, जेलर साहब ! ऐसा न कहिए। मैं चट्टान की तरह अटल हूँ और ईश्वर को अर्पित – किए गए किसी फूल की मुस्कान मेरी रग-रग में है लेकिन तब भी जेलर साहब ! माँ से मिलने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पा रहा हूँ क्षमा चाहता जेलर साहब! माँ से भी मेरी ओर से क्षमा माँग लेना, मैं उनसे नहीं मिल सकूँगा ||

माँ -(यकायक रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की वृद्धा माँ प्रवेश करती हैं। साधारण वेशभूषा ।) ( प्रवेश करते हुए) क्या कह रहा है, रामप्रसाद ? माँ से नहीं मिलेगा ? मुझसे नहीं मिलेगा तू ?

ज़रा फिर से एक बार मेरी ओर देखकर कहना तो सही बिस्मिल (आश्चर्य से ) माँ ? तुम ? माँ हाँ मैं ही तो हूँ। क्या अपनी माँ को पहचान भी – नहीं सकता ? बिस्मिल ऐसे मत बोलो, माँ माँ और क्या बोलूँ अपने देश का ऐसा दीवाना ना कि जन्म देने वाली अपनी माँ को भी भूल गया ? मुझसे मिलने को भी तेरा जी न चाहा?

बिस्मिल- माँ ! मुझे गलत मत समझो। मेरा मतलब यह नहीं था। मैंने तो (बात काटकर स्नेह से) अरे, अब रहने दे अपनी सफाई को मैं सब जानती हूँ | तू अपनी माँ को भले ही भूल जा, पर मैं अपने बेटे रामप्रसाद को खूब जानती तूने सोचा होगा कि तुझे इस हाल में देखकर मुझे शायद दुख होगा । मौत की गोद में तुझे देखकर मेरी आँखों से परनाले बहने लगेंगे।

बिस्मिल – हाँ माँ ! मेरा मतलब यही था।

माँ- पगले! तू अपनी माँ को इतना भी नहीं पहचान सका? जिस भारत माँ के लिए तू कुर्बान हो – रहा है, वह अकेले तेरी ही तो माँ नहीं, वह तो मेरी भी माँ है। बेटे ! तेरे सभी बुजुर्गों की माँ है। इस सारे देश की माँ है।

बिस्मिल – (भावावेश में) माँ! मैंने समझा था कि …. ।

माँ – अन्य साधारण स्त्रियों की तरह मैं भी रोने चीखने लगूंगी। यही न? लेकिन बेटे, तूने यह सोचा कि जिस माँ ने तुझे बचपन से ही त्याग, वीरता और देश-प्रेम का पाठ पढ़ाया है, आज अपनी मेहनत को फलते-फूलते देखकर उसे कष्ट क्यों होगा? आज का दिन तो मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन है।

बिस्मिल – मुझे अपने विचारों के लिए अफसोस है माँ ! –

माँ – नहीं मेरे लाल ! आज के दिन तू किसी का अफसोस न कर। तू तो कुर्बानी की राह जा रहा है, मेरे बच्चे ! अफसोस तो मुझे है कि मेरा दूसरा बेटा अभी इतना छोटा क्यों है ?

बिस्मिल- माँ ! विश्वास रखो। तुम्हारे इस बेटे के बलिदान से अनेक रामप्रसाद पैदा होंगे और तब वह दिन दूर नहीं होगा, जब हमारा यह देश गुलामी के चंगुल से मुक्त होकर आज़ादी की साँस ले सकेगा और लहलहाती ज़मीन हमारी अपनी होगी।

माँ- कितना शुभ होगा वह दिन ?

बिस्मिल- हाँ माँ। (कुछ ठहरकर) माँ ! एक इच्छा है। माँ – बोल बेटे ! क्या इच्छा है? मैं तेरी हर इच्छा को पूरा करने की कोशिश करूँगी ।

बिस्मिल- जब आज़ादी का पहला जश्न मनाया जाए, तब मेरी तस्वीर को ऐसी जगह रख देना, जहाँ से मैं सारा जश्न अपनी उस तस्वीर के ज़रिए देख सकूँ, लेकिन मेरी उस तस्वीर को कोई न देख सके ।

माँ- ऐसा क्यों मेरे लाल ? मैं तेरी तस्वीर को ऐसी जगह रखूंगी, जहाँ सारी दुनिया उसे देख सके ।

बिस्मिल- नहीं माँ ! ऐसा मत करना। मेरी तस्वीर को देखकर लोगों को मेरी याद आ जाएगी और तब शायद उस खुशी के मौके पर उनकी आँखे गीली हो जाएँ। मेरे देश को आज़ादी मिले और मेरे देशवासी उस दिन आँसू बहाएँ, यह सहन नहीं हो सकेगा.

माँ- (भावावेश में ) मेरे बेटे ! ऐसा ही होगा, मेरे लाल ! – (घड़ी देखते हुए) क्षमा कीजिए । समय काफी हो चुका है.

माँ – चलती हूँ जेलर साहब ! (अपनी साड़ी के पल्लू में बँधे हुए कुछ बेसन के लड्डू निकालती हैं ।) बेटा ! ये बेसन के लड्डू तेरे लिए बनाकर लाई हूँ । माँ के हाथ का यही तुझे अंतिम भोग है ।

बिस्मिल- बेसन के लड्डू ?

जेलर की तरफ देखता है। जेलर

माँ – हाँ ! तुझे बेसन के लड्डू बहुत अच्छे लगते हैं ना ?

बिस्मिल – (हिचकिचाते हुए) लेकिन माँ जेलर साहब ! (बिस्मिल मुस्कुराकर स्वीकृति देता है ।)

माँ (मुस्कुराकर )- चिंता न कर जेलर साहब से मैंने पहले ही पूछ लिया है। बहुत अच्छे आदमी हैं।

बिस्मिल- ओ माँ ! अपने हाथ से ही खिला दो ।

(प्रसन्नचित माँ बिस्मिल को लड्डू खिलाती हैं ।)

बिस्मिल- बस माँ ये बचे हुए लड्डू मैं बाद में खा लूँगा । (लड्डू लेकर अपने पास रख लेता है।)

माँ – (बिस्मिल के सिर पर हाथ फेरते हुए) अच्छा मेरे लाल मैं चलती हूँ।

बिस्मिल = अच्छा माँ ! ईश्वर करें अगले जन्म में भी तुम ही मेरी माँ बनो । – और मैं फिर तुझे इसी तरह कुर्बान कर दूँ । पाल-पोसकर बड़ा करूँ और फिर…….. (गाला सँध जाता है ।)

बिस्मिल (आश्चर्य से)- माँ यह क्या ? यह तुम्हें अचानक क्या हो गया ? माँ (जबर्दस्ती हँसते हुए) कुछ – नहीं बेटा ! कुछ भी तो नहीं ।

बिस्मिल – तो फिर तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों छलक आए माँ ?

माँ- उन्हें छलकने दे बेटा ! उनकी तू क्यों चिंता करता है ?

बिस्मिल = नहीं माँ ! विदा की बेला – में तुम्हारी आँखों में चमकने वाले ये आँसू….. मेरे कदमों को डगमगा रहे हैं।

माँ (आश्चर्य और दुख से ) – रामप्रसाद ! यह क्या कहता है ? जन्मभूमि पर न्यौछावर होने वाले बहादुर इस तरह की बातें नहीं किया करते । संसार की कोई भी शक्ति उनके कदमों को नहीं डगमगा सकती।

बिस्मिल – मैं भी अब तक अडिग ही हूँ माँ ! लेकिन तुम्हारी आँखों से बहनेवाले दर्द को मैं सहन नहीं – कर सकता । तुम दुखी रहोगी माँ तो मेरी आत्मा भी दुखी रहेगी। माँ मेरा दुख ? तेरी कुर्बानी – पर मुझे दुख ? यह तू क्या कह रहा है बेटा ?

बिस्मिल- मैं नहीं कह रहा माँ ! तुम्हारी आँखों से बहने वाले आँसू कह रहे हैं कि तुम्हें कोई दुख है ।

माँ- (हँसकर) पगले ! अरे ये आँसू तो खुशी के हैं ।

बिस्मिल -खुशी के आँसू !

माँ = हाँ बेटा ! पाल-पोसकर अपनी संतान को अपने हाथों से देश के लिए कुर्बान कर देने में भी एक अजीब सी खुशी है और उस खुशी को प्राप्त करने का गौरव मुझे प्राप्त हो रहा है।

बिस्मिल- माँ !…. मैंने समझा था कि I अरे ! अब रहने भी दे अपनी समझ को । जेलर साहब! क्या कल अपने बेटे की फाँसी के समय में यहाँ रह सकती हूँ ।

जेलर – जी नहीं । हुक्म न होने के कारण मैं मज़बूर हूँ

बिस्मिल= ज़रूरत भी क्या है माँ ? तुमने अपने बेटे को भारत माँ की गोद में डाल दिया। अब उसकी सेवा के लिए, यह आत्मा किसी भी रूप में रहे। क्या फर्क पड़ता है ?

माँ – तू ठीक कहता है मेरे लाल ! अच्छा मेरे बच्चे ! अपनी भारत माँ की अच्छी तरह सेवा करना । कोई चूक न होने पाए। (बिस्मिल के सिर पर हाथ फेरती हैं। बिस्मिल माँ के पैर छूता है ।) चलिए जेलर साहब ! (जेलर के साथ प्रस्थान करती है। बिस्मिल उस तरफ देखता रहता है। पर्दा धीरे-धीरे गिरता है ।)

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