शहीद बकरी
हरे-भरे पहाड़ पर बकरियाँ चरने जाती तो दूसरे-तीसरे रोज एक-न-एक बकरी कम हो जाती भेडिए की इस धूर्तता से तंग आकर चरवाहे ने वहाँ बकरियाँ चराना बंद कर दिया और बकरियों ने भी मौत से बचने के लिए बाड़े में कैद रहकर जुगाली करते रहना ही श्रेष्ठ समझा। लेकिन न जाने क्यों एक युवा नई बकरी को यह बंधन पसंद नहीं आया अत्याचारी से यों कब तक 1. प्राणों की रक्षा की जा सकेगी ? वह पहाड़ से उतरकर किसी रोज बाड़े में भी कूद सकता है। शिकारी के भय से मूर्ख शुतुरमुर्ग रेत में गर्दन छुपा लेता है। तब क्या शिकारी उसे बख्श देता है ? इन्हीं विचारों से ओत-प्रोत वह हसरत भरी नजरों से पर्वत की ओर देखती रहती। साथिनों ने उसे आँखों आँखों में समझाने का प्रयत्न किया कि वह ऐसे मूर्खतापूर्ण विचारों को मन में न लाए भोग्य सदैव से भोगने के लिए ही उत्पन्न होते रहे हैं। भेडिए के मुँह हमारा खून लग चुका है. वह अपनी आदत से कभी बाज नहीं आएगा।
लेकिन नई युवा बकरी तो भेडिए के मुँह में लगे खून को ही देखना चाहती थी। वह किस तरह छटपटाता है, यह करतब देखने की उसकी लालसा बलवती होती गई। आखिर एक रोज़ मौका पाकर बाड़े से वह निकल भागी और पर्वत पर चढ़कर स्वच्छंद विचरती कूदती फॉदती दिन भर पहाड़ पर चरती रही मनमानी कुलेलें करती रही भेडिए को देखने की उसे उत्सुकता भी बनी रही, परन्तु उसके दर्शन न हुए। झुटपुटा होने पर लाचार, जब वह नीचे उतरने को बाध्य हुई तो रास्ते में दबे पाँव मेडिया आता हुआ दिखाई दिया। उसकी रक्तरंजित आँखें लपलपाती जीभ और आक्रमणकारी चाल से वह सब कुछ समझ गई भेडिया मुस्कराकर बोला, तुम बहुत सुंदर और प्यारी मालूम होती हो मुझे तुम्हारी जैसी साथिन की आवश्यकता थी मैं कई रोज से अकेलापन महसूस कर रहा था। आओ, तनिक साथ-साथ पर्वतराज की सैर करें।”
बकरी को मेडिए की बकवास सुनने का अवसर न था। उसने तनिक पीछे हटकर इतने जोर से टक्कर मारी कि असावधान मेडिया सँमल न सका। यदि बीच का भारी पत्थर उसे सहारा न देता तो आधे मुँह नीचे गिर गया होता।
भेड़िए की जिंदगी में यह पहला अवसर था। वह किंकर्तव्यविमूढ़-सा हो गया। टक्कर खाकर अभी वह सँमल भी न पाया था कि बकरी के पैने सींग उसके सीने में इतने जोर से लगे कि वह चीख उठा। क्षत-विक्षत सीने से लहू की बहती धार देख, मेडिए के पाँव उखड़ गए। मगर एक निरीह बकरी के आगे भाग खड़ा होना उसे कुछ जँचा नहीं। वह भी साहस बटोरकर पूरे वेग से झपटा। बकरी तो पहले से ही सावधान थी वह कतराकर एक और हट गई और भेडिए का सिर दरख्त से टकराकर लहूलुहान हो गया।
लहू को देखकर अब मेडिए के लहू में भी उबाल आ गया। वह जी-जान से बकरी के ऊपर टूट पड़ा। अकेली बकरी उसका कब तक मुकाबला करती ? वह उसके दाँव-पेंच देखने की लालसा और अपने अरमान पूरे कर चुकी थी। साथियों की अकर्मण्यता पर तरस खाती हुई बेचारी ढेर हो गई।
पेड़ पर बैठे हुए तोते ने मुस्कराकर मैना से पूछा, भेडिए से मिड़कर भला बकरी को क्या मिला?”
मैना ने सगर्व उत्तर दिया, ‘वही जो अत्याचारी का सामना करने पर पीडितों को मिलता है। बकरी मर जरूर गई, परन्तु भेडिए को घायल करके मरी है। वह भी अब दूसरों पर अत्याचार करने के लिए जीवित नहीं रह सकेगा। सीने और मस्तक के घाव उसे सड़-सड़कर मरने को बाध्य करेंगे। काश, बकरी की अन्य साथिनो ने उसकी भावनाओं को समझा होता छिपने के बजाय एक साथ बार किया होता तो वे आज बाड़े में कैदी जीवन व्यतीत करने के बजाय पहाड़ पर निःशक और स्वच्छंद विचरती होती।”
तोता अपना सा मुँह लेकर चुपचाप शहीद बकरी की ओर देखने लगा।
पाठ से
प्रश्न 1. बकरियों ने कैद में ही रहकर जुगाली करना क्यों उचित समझा ?
उत्तर-भेड़िये के अत्याचार से बचने के लिए बकरियों ने कैद में ही रहकर जुगाली करना उचित समझा। क्योंकि जब बकरियाँ पहाड़ पर चरने जाती थी तो उसे भेड़िया पकड़कर खा जाता है।
प्रश्न 2. युवा नई बकरी को बाड़े का बंधन पसन्द क्यों नहीं आया ?
उत्तर- युवा नई बकरी को बाड़े का बंधन इसलिए पसन्द नहीं आया क्योंकि वह स्वतन्त्रताप्रिय तथा साहसी थी, वह भेड़िए के डर से बाड़े में दुबककर नहीं रहना चाहती थी, क्योंकि भेड़िया तो बाड़े में भी आ सकता था।
प्रश्न 3. युवा बकरी ने भेड़िये पर किस तरह वार किया ?
उत्तर-युवा बकरी ने थोड़ा पीछे हटकर भेड़िए को इतने जोर से टक्कर मारी कि असावधान भेड़िया सँभल न सका। यदि बीच में भारी पत्थर उसे सहारा न देता तो आँधे मुँह नीचे गिर गया होता।
प्रश्न 4. भेड़िये ने बकरी को जाल में फँसाने के लिए क्या प्रलोभन दिया ?
उत्तर-भेड़िये ने बकरी को अपने जाल में फँसाने के लिए प्रलोभन दिया कि मुझे तुम्हारे जैसी साथिन की आवश्यकता थी। मैं कई रोज से अकेलापन महसूस कर रहा था। साथ-साथ पर्वतराज की सैर करें।
प्रश्न 5. तोते ने मुस्कराते हुए मैना से क्या सवाल पूछा और क्यों?
उत्तर- तोते ने मुस्कुराते हुए मैना से पूछा कि भेड़िए से लड़कर भला बकरी को क्या मिला ? क्योंकि उसका मानना था कि कमजोर को ताकत वर से मुकाबला नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 6. भोग्य सदैव से भोगने के लिए ही उत्पन्न होते हैं। इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि अकर्मव्यता हमें विनाश की ओर ले जाती है। अन्याय और उत्पीड़न का यदि डटकर मुकाबला किया जाय तो अत्याचार समाप्त हो सकता है। ऐसा दुस्साहस कोई बिरला ही कर सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि हममें मुकाबला करने का साहस हो।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. युवा बकरी द्वारा भेड़िये पर पहले ही आक्रमण करने के पीछे क्या कारण रहे होंगे ? आप विचार कर लिखिए।
उत्तर-भेड़िये की लाल आँखें, लपलपाती जीभ और आक्रमणकारी चाल को समझने के कारण बकरी ने भेड़िये पर आक्रमण कर दिया।
प्रश्न 2. आपकी समझ में भेड़िये से भिड़कर अपनी जान गँवाने वाली युवा बकरी को क्या मिला ?
उत्तर- वह भेड़िये के दाव पेंच देखना चाहती थी और बहादुरी के साथ लड़ते हुए अपनी जान गँवा बैठी। इससे उसे सकून मिला।
प्रश्न 3. यदि अन्य बकरियाँ उस युवा बकरी का साथ देती तो आपके अनुसार भेड़िये और बकरी के बीच के संघर्ष का परिणाम क्या होता ?-
उत्तर- यदि अन्य बकरियाँ युवा बकरी का साथ देती तो हमारे अनुसार बकरी और भेड़िये के बीच के संघर्ष का परिणाम यह होता सब मिलकर भेड़िये को मार देती और बाड़े में कैदी जीवन व्यतीत करने के बजाय पहाड़ पर निशंक और स्वच्छन्द विचरती होतीं।