सावन आगे छत्तीसगढ़ी कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 3
बादर ऊपर बादर छागे।
चल भइया, अब सावन आगे।।
अब तरसे-मन हा नइ तरसे,
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे,
अइसे लगथे अब किसान ला,
जइसे दाई थारी परसे।
सब किसान के सुसी बुतागे।
अलकरहा बिजली जब बरथे,
घुडुर -घुडुर तब बादर करथे,
बछरू दँउड़े पुँछी टाँगके,
मनखे ऊपर ठाड़ अभरथे,
इंदर ह जस गोली दागे।
दँउड़े लागिन माढ़े नरवा,
चूहय लागिन छानी-परवा,
कती-कती के काम ल देखे,
हवय जे मनखे ह एकसरुवा,
पल्ला मार के ढोंड़गी भागे।
बादर आँसो नइ हे लबरा,
भरगे भइया खँचवा- डबरा,
देखव डोली भरे लबालब,
भुइँया ह हरियागे जबरा,
नवा-नेवरनिन दुलहिन लागे।
बादर ऊपर बादर छागे।
चल भइया, अब सावन आगे।।
1. खाल्हे लिखाय प्रश्न के उत्तर:
क. पानी के बरसना ल देख के किसान ल कइसे लगथे?
किसान ला पानी बरसते देख के अइसे लगथे जइसे उनकी दाई थारी परसे।
ख. बादर म बिजली कइसे चमकथे?
बादर म बिजली चमकथे अलकरहा (चमकदार) बनके।
ग. बिजली चमके के पाछू बादर म कइसे अवाज होथे?
बिजली चमके के बाद बादर घुडुर-घुडुर (गर्जन) करथे।
घ. बादर के गरजना ह कवि ल कइसे लगथे?
बादर के गरजना कवि ला अइसे लगथे जइसे इंद्र गोली दागथे।
ङ. बछरू ह मनखे ऊपर काबर अभरथे?
बछरू ह डर के मारे अपन पुंछी टाँगके मनखे ऊपर अभरथे।
च. सावन आथे त माढ़े नरवा का करथे?
सावन आथे त माढ़े नरवा (छोटे-छोटे जलस्रोत) दउड़े लगथे।
छ. भुइँया हरिया जाथे त काकर सही दिखथे?
भुइँया हरिया जाथे त नवा-नेवरनिन (नई-नवेली) दुल्हिन जइसे सही दिखथे।
ज. “आँसो बादर नइ हे लबरा” – काबर केहे गे हवय?
कविता म “आँसो बादर नइ हे लबरा” केहे गे हवय काबरकि बादर के आँसू (पानी) झूठा नइ होथे, ओ त धरती ला हरियाने के असली कारण बनथे।
2. खाल्हे लिखाय कविता के अर्थ:
“अलकरहा बिजली जब बरथे,
घुडुर-घुडुर तब बादर करथे,
बछरू दँउड़े पुछी टाँगके,
मनखे ऊपर ठाड़ अभरथे”
इस पंक्ति के माध्यम से कवि सावन के समय के प्राकृतिक दृश्य के जीवंत चित्रण करथे। जब बिजली चमकथे, तब बादर घोर आवाज करथे। उस समय बछरू (पशु) डर के मारे भागथे और कभी-कभी मनखे (मानव) के पास खड़ा हो जाथे। ये पंक्ति प्रकृति और जीव-जंतुओं के बीच के संबंध ला व्यक्त करथे।