संस्कृत काव्यशास्त्र – प्रमुख वाद एवं प्रवर्तक
क्रमांक | वाद / संप्रदाय | प्रवर्तक | मुख्य विचार / विशेषता |
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1 | रस-संप्रदाय | भरतमुनि | रस को काव्य की आत्मा माना – नाट्यशास्त्र में प्रतिपादन |
2 | अलंकार-संप्रदाय | भामह, मम्मट | काव्य की शोभा अलंकारों में है |
3 | रीति-संप्रदाय | दण्डी, वामन | रीति (शैली) को काव्य की आत्मा माना |
4 | ध्वनि-संप्रदाय | आनंदवर्धन | ध्वनि (सूचक अर्थ) को काव्य का प्राण माना |
5 | वक्रोक्ति-संप्रदाय | कुन्तक | वक्रोक्ति (कुशल, आड़ से कही बात) को काव्य का सार |
6 | औचित्य-संप्रदाय | क्षेमेन्द्र | औचित्य (अनुकूलता/उपयुक्तता) को काव्य की आत्मा |
हिन्दी काव्यशास्त्र
हिन्दी काव्यशास्त्र संस्कृत काव्यशास्त्र की परंपरा से प्रभावित है, और इसमें भी रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, औचित्य आदि सिद्धांतों को अपनाया गया है।