संस्कृत भाषाया: महत्वम् कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 12
सर्वासुभाषासु संस्कृत भाषा प्राचीनता भाषा अस्ति । अस्माकं संस्कृति भाषयामेव निहिता। संसारस्य प्राचीनतमाः चत्वारः वेदाः ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्ववेदश्च संस्कृत भाषायां विद्यन्ते । बाल्मीकिना विरचितं रामायणं प्रथम छन्दोबद्धं महाकाव्यम् अस्ति। अस्मिन्नेव काव्ये सामाजिकाः आदर्शाः निहिताः सन्ति। यथा रामस्य पितृभक्तिः, भरतस्य त्याग:, दशरथस्य पुत्र वात्सल्यं च। महाभारत नाम संस्कृतस्य ग्रंथ: विश्वज्ञानकोश: प्रयीयते गीतापि महाभारतस्य एवं महत्वपूर्ण अंशः अस्ति । अस्यां भाषायां कविकुल गुरुकालिदासेन अभिज्ञानशाकुन्तलं नाम विश्व प्रसिद्ध नाटकं विरचितम् । गीति काव्येषु तस्य मेघदूत प्रसिद्ध अस्ति। जयदेवेन विरचित गीतगोविन्दं नामकं गीतिकाव्यमपि सर्वाधिकं लोकप्रियं अस्ति।
शब्दार्था – प्राचीनतमा = सबसे पुरानी ,अस्माकं = हमारी, निहिता = विद्यमान है, चत्वार: चार, विद्यन्ते हैं, = विरचितं = रचित, यथा= जैसे, पुत्रवात्सल्यं = पुत्र प्रेम, कोश: = भण्डार, अस्यां = इस, विरचितम् = लिखा गया, सर्वाधिकं = सबसे अधिक।
अनुवाद – सभी भाषाओं में संस्कृत भाषा प्राचीनतम (सबसे पुरानी) है। हमारी संस्कृति भाषा में ही विद्यमान है। संसार के प्राचीनतम चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद संस्कृत भाषा में ही हैं। (संस्कृत भाषा में रचित हैं) । वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण पहला छंदबद्ध महाकाव्य है। इस काव्य में सामाजिक आदर्श विद्यमान है। जैसे-राम की पितृभक्ति, भरत का त्याग और दशरथ का पुत्र प्रेम । संस्कृत में रचित महाभारत ग्रंथ विश्व का ज्ञान कोश (विश्व में सबसे बड़ा ज्ञान का भण्डार) प्रतीत होता है। गीता भी महाभारत का ही महत्वपूर्ण अंश है। इसी भाषा में कविकुलगुरू कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् नामक विश्व विख्यात नाटक लिखा। गीतिकाव्यों में उनका मेघदूत प्रसिद्ध है। जयदेव द्वारा रचित गीतगोविन्द नामक गीतिकाव्य भी सर्वाधिक लोकप्रिय है।
पुराभारते प्राय: सर्वेजनाः संस्कृत भाषायामेव परस्परं आलपन्ति स्म। तद्यथा एकदा भोजराजः गच्छन् मार्गे एके भारवाहकं दृष्टवान् । तस्य शिरसि गुरतरं भारं दृष्टवा भोजराजः तमपृच्छत् अपिभारो बाधति ? भारवाहकः शीघ्रमेव अवदत् – भारो न बाधते राजन्! यथा-बाधति-बाधते । अनेन प्रतीयते यत सामान्यपि जन: संस्कृतः भाषां जानातिस्म ।
शनैः शनैः संस्कृत भाषायाः व्यवहारः शिथिलोऽभवत् किन्तु अद्यत्वेऽपि संस्कृत कक्षासु संस्कृत भाषां जीवितभाषा रूपेण पाठ्यते । भाषासु मधुरा इयं भाषा भारतीय संस्कृतेः रक्षार्थं ज्ञानवर्धनार्थं च संस्कृत भाषा अवश्यमेव पठितव्या ।
शब्दार्था:- आलापन्ति स्म = बातचीत करते थे, तद्यथा = च उदाहरण के लिए, गच्छन् = जाते हुए, भारवाहकं= बोझा ढोने वाले को, गुरतरं= भारी, दृष्ट्वा = देखकर शिथिलोऽभवत् = कम हुआ, पाठ्यते = पढ़ाई जाती है, ज्ञानवर्धनार्थ = ज्ञानवृद्धि के लिए, संस्कृते: = संस्कृति (सभ्यता की) रक्षार्थ= रक्षा के लिए, पठितव्या = पढ़नी चाहिए।
अनुवाद- प्राचीनकाल में भारत में प्राय: सभी लोग संस्कृत भाषा में ही परस्पर बातचीत करते थे। उदाहरण के लिए एक बार राजाभोज रास्ते में जाते हुए एक बोझा ढोने वाले को देखा। उसके सिर पर भारी बोझ देखकर राजा भोज ने उससे पूछा – अपि भारो बाधति ?
बोझा ढोने वाला तत्परता से बोला-भारो न बाधते राजन् यथा-बाधति बाधते अर्थात् भार इतना कष्ट नहीं पहुंचा, जितना कि बाधते के स्थान पर बाधति इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सामान्य जनता भी संस्कृति भाषा जानती थी।
धीरे-धीरे संस्कृत भाषा का व्यवहार (व्यावहारिक प्रयोग) कम हुआ लेकिन आज भी संस्कृत की कक्षाओं में संस्कृत भाषा जीवित भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। यह भाषाओं में सबसे मधुर है। भारतीय संस्कृति की रक्षा और ज्ञान वृद्धि के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।