रीतिबद्ध कवि
रीतिबद्ध कवि, जिन्हें आचार्य कवि भी कहा जाता है, ने अपने लक्षण ग्रंथों और काव्य में प्रत्यक्ष रूप से रीति परंपरा का निर्वाह किया। इनके काव्य में अलंकार, रस, छंद और काव्य शास्त्र की परंपरागत विधियों का गहन अनुशीलन मिलता है।
मुख्य रीतिबद्ध कवि
- केशवदास
- प्रमुख ग्रंथ: रसिकप्रिया, कविप्रिया, रामचंद्रिका।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन्हें “कठिन काव्य का प्रेत” कहा, क्योंकि इनके काव्य में क्लिष्टता अधिक थी।
- चिंतामणि
- प्रमुख योगदान: काव्यशास्त्र के सिद्धांतों का विस्तार।
- मतिराम
- रचना: रस राज, जिसमें रस और अलंकार की परंपराएं विस्तृत हैं।
- सेनापति
- रचना: कविता कौमुदी।
- सेनापति ने काव्य में सरलता और गहनता दोनों का समन्वय किया।
- देव (देव कवि)
- रचना: भक्तिरसतरंगिनी, रसविलास।
- काव्य में अलंकार और भावों की उत्कृष्टता।
- पद्माकर
- रचना: जगविलास, हिमाद्रि सौंदर्य।
- इनकी शैली में काव्य सौंदर्य और वर्णनात्मकता प्रमुख थी।
रीतिबद्ध कवियों की विशेषताएं
- लक्षण ग्रंथ:
- इन कवियों ने साहित्यिक सिद्धांतों पर केंद्रित ग्रंथ लिखे, जिनमें अलंकार, रस, छंद, और नायक-नायिका भेद की विस्तृत चर्चा की।
- शास्त्र और साहित्य का समन्वय:
- इनका काव्य साहित्यिक सौंदर्य और शास्त्रीयता का अद्भुत उदाहरण है।
- रीति परंपरा का निर्वाह:
- कवियों ने काव्य रचना में रीति परंपरा का अनुसरण करते हुए रस और अलंकारों का उपयोग किया।
- क्लिष्टता और सरसता:
- कुछ कवियों, जैसे केशवदास, का काव्य क्लिष्ट था, जबकि सेनापति और पद्माकर ने सरलता और सरसता को अपनाया।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिबद्ध कवियों के काव्य की प्रशंसा करते हुए इसे साहित्यिक समृद्धि का काल माना, लेकिन अत्यधिक शास्त्रीयता के कारण इसे वास्तविक जीवन और भावना से कुछ हद तक कटे हुए भी कहा।
- केशवदास पर विशेष आलोचना हुई, क्योंकि उनकी रचनाएं अत्यधिक क्लिष्ट और गूढ़ मानी गईं।
रीतिबद्ध कवि हिंदी साहित्य के शास्त्रीय और सौंदर्यवादी पक्ष के प्रतिनिधि हैं, जिनकी रचनाएं साहित्यिक परंपराओं को आगे बढ़ाने में सहायक रहीं।