रीतिमुक्त कवि
रीति परंपरा से स्वतंत्र और नवीन प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध कवियों को रीतिमुक्त कवि कहा जाता है। इन कवियों की रचनाओं में भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति, व्यक्तिगत अनुभव, और सहजता का समावेश होता है।
मुख्य रीतिमुक्त कवि
- घनानंद
- उनकी रचनाओं में गहरी व्यक्तिगत अनुभूति और प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति होती है।
- उदाहरण:”नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल?”
- आलम
- आलम की कविता में भावुकता और श्रृंगार रस का प्रभावी चित्रण मिलता है।
- इन्होंने प्रेम के विविध पक्षों का मार्मिक वर्णन किया।
- ठाकुर
- इनकी कविताओं में समाज और मानवीय स्वभाव का यथार्थ चित्रण मिलता है।
- ठाकुर ने रीति परंपरा से हटकर जीवन की सच्चाई को अपने काव्य में उतारा।
- बोधा
- बोधा ने श्रृंगार और वीर रस के साथ सामाजिक समस्याओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया।
- द्विजदेव
- उनकी कविताएं समाज और मानव प्रकृति की वास्तविकताओं को व्यक्त करती हैं।
विशेषताएं
- रीति परंपरा से स्वतंत्रता
- इन कवियों ने अलंकारों और शास्त्रीय नियमों की जटिलताओं से परे जाकर, भावनाओं की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति पर जोर दिया।
- भावनाओं की प्रधानता
- रीतिमुक्त कवि अपनी कविताओं में प्रेम, करुणा, वैराग्य और व्यक्तिगत अनुभूतियों को प्राथमिकता देते हैं।
- सहज और प्रवाहमयी शैली
- इनकी भाषा सरल और प्रभावशाली होती है, जो पाठक और श्रोता के हृदय तक सीधे पहुंचती है।
- व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों का चित्रण
- इनकी रचनाओं में व्यक्तिगत अनुभूतियों के साथ सामाजिक परिवेश का भी यथार्थ चित्रण होता है।
देव का अपवाद
- रीतिकालीन आचार्यों में देव एकमात्र ऐसे कवि हैं जिन्होंने रीति निरूपण में मौलिकता दिखाई।
- देव का काव्य शास्त्रीय अनुशासन का पालन करते हुए भी स्वतंत्रता और नवीनता का परिचायक है।
रीतिमुक्त कवि रीतिकाल के साहित्य में नवीनता, भावप्रधानता और स्वतंत्रता के द्योतक हैं, जिन्होंने साहित्य को परंपरागत सीमाओं से बाहर निकालकर नया आयाम दिया।