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परिशिष्टव्याकरणम् कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 20

परिशिष्टव्याकरणम् कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 20

परिशिष्टव्याकरणम् का अर्थ है संस्कृत व्याकरण का वह भाग जिसमें अतिरिक्त जानकारी, नियम, और विशेष विषयों को सम्मिलित किया जाता है। कक्षा सातवीं में संस्कृत व्याकरण के इस खंड में निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है:


1. संधिः (संधि)

संधि का अर्थ है दो वर्णों का मिलन। यह तीन प्रकार का होता है:

  1. स्वर संधि: जैसे – राम + ईश्वरः = रामेश्वरः
  2. व्यंजन संधि: जैसे – लोक + धर्मः = लोको धर्मः
  3. विसर्ग संधि: जैसे – रामः + च = रामश्च

2. समासः (समास)

दो या अधिक शब्दों का संक्षिप्त रूप समास कहलाता है।

  1. तत्पुरुष समास: जैसे – ग्रामस्य राजा = ग्रामराजः
  2. द्वन्द्व समास: जैसे – माता च पिता च = मातापिता
  3. बहुव्रीहि समास: जैसे – चन्द्रं यस्य मुखं सः = चन्द्रमुखः
  4. कर्मधारय समास: जैसे – नीलः उत् कमलः = नीलकमलः

3. प्रत्ययः (प्रत्यय)

शब्दों के अंत में जुड़ने वाले छोटे रूपों को प्रत्यय कहते हैं।

  1. कृत प्रत्यय: जैसे – पठ् + क (कर्ता) = पाठकः
  2. तद्धित प्रत्यय: जैसे – भारत + ईय (देशीय) = भारतीयः

4. कारकाः (कारक)

संस्कृत में क्रिया के साथ संज्ञा/सर्वनाम के संबंध को कारक कहते हैं।

  1. कर्ता: क्रिया करने वाला (रामः गच्छति)।
  2. कर्म: क्रिया का प्रभाव पाने वाला (रामः फलम् खादति)।
  3. करण: साधन (रामः लेखनीं लिखति)।
  4. सम्प्रदान: जिसके लिए क्रिया हो (रामः गुरवे पुस्तकम् ददाति)।
  5. अपादान: अलग होने का स्थान (गृहत् आगच्छति)।
  6. अधिकरण: क्रिया का स्थान (गृहे वसति)।

5. अव्ययम् (अव्यय शब्द)

वे शब्द जो अपरिवर्तनीय होते हैं।

  • उदाहरण:
    • उपसर्गाः: प्र, परि, अपि (जैसे – प्रगच्छति)।
    • निपाताः: हि, च, तु (जैसे – रामः गच्छति च)।

6. धातुरूपाणि (धातु रूप)

धातु शब्द संस्कृत व्याकरण का मूल है। सातवीं कक्षा में धातु रूप के अभ्यास में मुख्यतः लट् (वर्तमान काल) और लृट् (भविष्यत् काल) का अभ्यास कराया जाता है।

  • उदाहरण:
    • लट् लकार (गच्छ धातु):
      • प्रथम पुरुषः: गच्छति, गच्छतः, गच्छन्ति।
      • मध्यम पुरुषः: गच्छसि, गच्छथः, गच्छथ।
      • उत्तम पुरुषः: गच्छामि, गच्छावः, गच्छामः।