तंत्रिका तंतु पर विद्युत-रासायनिक संकेत (Electrochemical Signal)
तंत्रिका आवेग (Nerve Impulse) तंत्रिका तंतु के माध्यम से विद्युत-रासायनिक संकेतों का संचरण है। यह एक जटिल भौतिक-रासायनिक प्रक्रिया है, जो तंत्रिका तंतु (Axon) की सतह एक्सोलेमा (Exolemma) में होती है। इस प्रक्रिया को विभिन्न चरणों में विभाजित करके समझा जा सकता है:

1. विश्रामकला विभव (Resting Membrane Potential):
विश्राम की अवस्था में, तंत्रिका तंतु ध्रुवित (Polarized) होता है, और इसकी भीतरी सतह पर ऋणात्मक आवेश एवं बाहरी सतह पर धनात्मक आवेश होता है।
(i) आयनों का वितरण (Distribution of Ions):
- भीतरी सतह (Axoplasm):
- पोटैशियम आयन (K⁺): प्रचुर मात्रा में।
- ऋणात्मक आयन: जैसे, कार्बनिक फॉस्फेट, सल्फेट, और प्रोटीन।
- इन आयनों के कारण आंतरिक सतह ऋणात्मक होती है।
- बाहरी सतह (ECF – Extracellular Fluid):
- सोडियम आयन (Na⁺) और क्लोराइड आयन (Cl⁻): अधिक मात्रा में।
- इनकी उपस्थिति बाहरी सतह को धनात्मक बनाती है।
(ii) सोडियम-पोटैशियम पम्प (Na⁺/K⁺ Pump):
- यह सक्रिय परिवहन प्रणाली है, जो ATP की ऊर्जा का उपयोग करके आयनों की अदला-बदली करती है:
- 3 Na⁺ आयनों को ऐक्सोप्लाज्मा से बाहर (ECF में)।
- 2 K⁺ आयनों को बाहर से अंदर (Axoplasm में)।
- यह प्रक्रिया तंत्रिका तंतु को ध्रुवित (Polarized) बनाए रखती है।
(iii) ध्रुवीय विभव अवस्था (Polarized Potential State):
- विश्रामकला विभव: -60 mV से -90 mV (आमतौर पर -85 mV)।
- यह विभव निम्न कारणों से उत्पन्न होता है:
- Na⁺ की निम्न पारगम्यता।
- K⁺ की उच्च पारगम्यता।
- सोडियम-पोटैशियम पम्प की सक्रियता।
2. तंत्रिका आवेग का संचरण (Impulse Conduction):
जब तंत्रिका तंतु उत्तेजित होता है, तो यह विभव परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में निम्न चरण होते हैं:
(i) उद्दीपन और विद्युत संकेत:
- उद्दीपन (Stimulus) के कारण Na⁺ चैनल खुलते हैं।
- Na⁺ आयन तेजी से एक्सोलेमा के अंदर प्रविष्ट होते हैं।
- आंतरिक सतह धनात्मक हो जाती है, और यह स्थिति अपध्रुवण (Depolarization) कहलाती है।
(ii) अपध्रुवण (Depolarization):
- Na⁺ के अंदर आने से आंतरिक सतह का विभव +30 mV तक पहुँच सकता है।
- यह क्षेत्र उत्तेजित होकर विद्युत संकेत को आगे प्रसारित करता है।
(iii) पुनःध्रुवण (Repolarization):
- K⁺ चैनल खुलते हैं, और K⁺ आयन बाहर जाते हैं।
- आंतरिक सतह फिर से ऋणात्मक हो जाती है।
(iv) पुनर्स्थापन (Restoration):
- सोडियम-पोटैशियम पम्प विभव को मूल स्थिति (-85 mV) में बहाल करता है।
- तंत्रिका तंतु अब नई उत्तेजना ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाता है।
3. अवरोध अवधि (Refractory Period):
- यह अवधि तंत्रिका तंतु की उस स्थिति को दर्शाती है, जब वह नई उत्तेजना ग्रहण करने में असमर्थ होता है।
- यह समय तंत्रिका तंतु की स्थिरता और आवेग संचरण की दिशा सुनिश्चित करता है।
निष्कर्ष:
तंत्रिका आवेग का संचरण तंत्रिका तंत्र के कार्य का आधार है। सोडियम-पोटैशियम पम्प और आयनों के नियंत्रित प्रवाह के माध्यम से तंत्रिका तंतु लगातार विद्युत संकेतों का संचरण करता है, जो शरीर की संवेदनाओं, प्रतिक्रियाओं और विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।