नीतिनवनीतानि कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 16
शब्दार्था :- ददाति = देती है, विनयं= विनम्रता, पात्रताम् = योग्यता, आप्नोति = प्राप्त होती है, ततः = तब ।
अर्थ-विद्या विनय देती है, विनय से योग्यता आती है। योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।
शब्दार्था:- समं = समान, चक्षुः = नेत्र, तपः = तपस्या, नास्ति = नहीं है।
अर्थ-विद्या के समान कोई नेत्र (दृष्टि) नहीं है, सत्य के समान कोई तप नहीं है, ईर्ष्या से बढ़कर कोई दुःख नहीं, त्याग से बढ़कर कोई सुख नहीं है।
शब्दार्था:– विदेशेषु = विदेश में, व्यसनेषु = व्यापार, मतिः = बुद्धि, परलोके परलोक में, शीलं = सदाचार, सर्वत्र = सभी जगह।
अर्थ-विदेश में विद्या धन है, व्यसन (व्यापार) में मति (चतुरता) धन है, परलोक में (यमलोक, मृत्युपश्चात्) धर्म ही धन है किन्तु शीलता (सदाचरण) सभी जगह धन है।
शब्दार्था:- वरम् = श्रेयस्कर, शतान्यपि = सैकड़ों, तमः = अन्धकार, हन्ति = दूर कर देता है, न = नहीं ।
अर्थ- सैकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणी पुत्र श्रेयस्कर है। चन्द्रमा अकेले ही अन्धकार को दूर कर देता है, हजारों तारे नहीं।
शब्दार्था:- ब्रूयात् = बोलना चाहिए, अनृतं = असत्य ।
अर्थ-सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिए, यही सनातन धर्म है।
शब्दार्था:- फलन्ति = फल देते हैं, वृक्षाः = पेड़, नद्यः = नदियाँ, परोपकाराय = परोपकार के लिए, गावः = गायें, सतां = सज्जनों की, विभूतयः = वैभव ।
अर्थ-वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए बहती हैं, गाय परोपकार के लिए दूध देती है (दूही जाती है)। सज्जनों की विभूति परोपकार के लिए होती है।
शब्दार्था:- अयं = यह, निजः = मेरा है, लघु = छोटे (संकुचित), तु = तो, कुटुम्बकम् = परिवार, उदारचरितानाम् = उदार चरित्र वालों के लिए।
अर्थ – यह मेरा है, यह पराया है ऐसा सोचना संकुचित बुद्धि (सोच) वालों का काम है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सम्पूर्ण धरती पर रहने वाले लोग ही परिवार हैं।