नाचा के पुरखा दाऊ मंदराजी कक्षा 6 हिन्दी

नाचा के पुरखा दाऊ मंदराजी

लोकनाट्य ह ओतकेच जुन्ना आय जतके मनखे के जिनगी । लोक कलाकार मन जइसन सपना देखथें अउ ओला सही असन करे के उदिम करथें, उही ह लोकनाट्य कहाथे ‘नाचा’ ह छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकनाट्य आवय । नाचा के सरलता, सहजता ह ओकर सुघरइ आय अउ ओकर प्रभाव के कारन ह इही म लुकाय है।

नाचा देखइया मन मोहित हो जायें अउ रातभर अपन जघा ले टस-ले-मस नइ होवँय । नाचा म जेन लोक जीवन के महक, लोकहित के भाव अउ लोक संस्कृति के अधार हवय, ओही एकर आत्मा आय। नाचा के कोनो लिखित म बोली- भाखा (संवाद) नइ होवय। नाचा के कलाकार मन अपन हाजिरजवाबी म हाँसी-मजाक के बात ल त बोलथेंच, फेर एमा मनखे के सुभाव अउ समाज के कुरीति के बरनन घलो रहिथे । इही विशेषता ह देखइया मन ल रातभर बाँध के राखे रहिथे ।

कहे जाये के छत्तीसगढ़ के नाट्य परंपरा ह संसार के सब ले जुन्ना नाट्य परंपरा आय। रामगढ़ के पहाड़ी के रंगशाला ल सबले जुन्ना रंगशाला माने जाथे।

नाचा में पहिली खड़े साज के चलन रहिस। फेर कोनो नाचा दल (पार्टी) संगठित नइ रहिस। नाचा के कलाकार मन ल सकेल के दाऊ मंदराजी ह एक ठन नाचा दल बनाइस ‘रवेली रिंगनी साज । इही ह छत्तीसगढ़ के पहिली नाचा पार्टी आय

नाचा बर अपन तन-मन-धन ल अर्पित करइया दुलार सिंह साव ‘मंदरा जी के जनम 1 अप्रैल सन् 1911 म राजनांदगाँव ले 7 कि.मी. दूरिहा गाँव रवेली के मालगुजार परिवार म होय रहिसर । इंकर पिताजी के नाव दाऊ रामाधीन अउ माता जी के नाव रेवती बाई रहिसर । इंकर प्राथमिक शिक्षा कन्हारपुरी म पूरा होइस ।

मंदरा जी दाऊ ह नानपन ले गाना बजाना म धियान धरे रहिस। गाँव के कलाकार मन के संगत म रहिके तबला-चिकारा बजाय बर सिखिन । ओ समय म हरमुनिया ( हारमोनियम) ल कोनो जानत नइ रहिन ।

दाई- ददा मन के इच्छा रहिस के बेटा ह पढ़-लिख के मालगुजारी ल सँभाल लय, फेर बालक मंदरा जी के मन म नाचा अइसे रमिस के ओला नाचा छोड़ कुछ्र नइ भाइस। दाई-ददा ल ये सब थोरको पसंद नइ रहिस। एकरे सेती 14 साल के बालपन म मंदराजी के बिहाव कर देइन। फेर ओकर मूँड म तो नाचा के धुन सवार राहय वो ह कहाँ बँधातिस घर-गृहस्थी म। निसदिन ओकर मन म नाचा के बोली- बात अउ गीत हे घुमरत राहय ।

दुलारसिंह साव ले मंदराजी बने के एक ठन किस्सा है। बचपन में बड़े जन पेट वाला, मोठ-डॉट लड़का ह अँगना म खेलत राहय। उही अँगना के तुलसी चँवरा म एक ठन पेटला मूर्ति माड़े राहय । नना-बबा मन ह इही ल देख के दुलारसिंह ल मदरासी कहि दिन । काकी अउ भउजी मन ल घलो इही नाव भागे। इ मदरासी ह आगू चलके मंदरा जी होगे।

मंदरा जी के मन नाचा म तो रमे राहय फेर समाज के कइ ठन कुरीति अउ अँगरेजी राज के गुलामी ह घलो उकर मन ल कचोटे ओ मन छत्तीसगढ़ ल जगाना चाहत रहिन। छत्तीसगढ़ी समाज ल जगाये बर ओला नाचा ले बढ़िया उचित साधन अउ का मिलतिस मंदराजी ह अब नाचा ल अपन मन माफिक रूप दे म भिड़गें।

मंदरा जी दाऊ मन सन् 1927-28 म नाचा के नामी कलाकार मन ल जोरे के काम शुरू कर दिन । गुंडरदेही (खल्लारी) के नारद निर्मलकर ( परी), लोहारा भर्रीटोला के सुकलू ठाकुर गम्मतिहा, जोकर), खेरथा अछोली के नोहर दास (गम्मतिहा, जोकर), कन्हारपुरी राजनांदगाँव के रहइया रामगुलाल निर्मलकर (तबलची) अउ खुद मंदराजी दाऊ (चिकरहा), ये पाँचों कलाकार मिल के पहिली छत्तीसगढ़ी नाचा दल ‘रवेली नाचा पार्टी’ के अधार बनिन ।

मंदरा जी दाऊ मन सन् 1930 में कलकत्ता ले हारमोनियम बिसा के लाइन नाचा म पहिली बेर चिकारा के जघा म हारमोनियम बजाइन। खड़े साज नाचा ह मसाल के अँजोर म होवय । कलाकार मन ब्रम्हानंद अउ कबीर के निरगुनिया भजन ऑवर-भॉवर घूम-घूम के गावँ ।

ओ मन नाचा के रूप ल बदलिन । निरगुनिया भजन के जघा “भाई रे तैं छुवा ल काबर डरे” अउ “तोला जोगी जानेव रे भाई” जइसन सुग्घर सुग्घर गीत ल शामिल करिन। नाचा अब मंच म होय लगिस, मंच उपर चंदोवा तनगे। बजकरी कलाकार मन बाजबट ( तख्त ) उपर बइठे लगिन । मसाल के जघा पेट्रोमेक्स (गैसबत्ती) आगे। छुही, गेरू, कोइला अउ हरताल के जघा स्नो, पावडर आगे। नवाँ – नवाँ गम्मत बनाय गिस । नाचा के समय घलो बदल दे गिस। अब रात के दस बजे ले बिहनिया के होवत ले नाचा होय लगिस ।

तीर-तकार अउ दूरिहा – दूरिहा ले लइका सियान गाड़ी गाड़ा म नाचा देखे बर जावय। मंदरा जी अउ नाचा अब एक-दूसर के साथी बनगें। रवेली नाचा पार्टी के कार्यक्रम 1950-51 म रायपुर में होइस डेढ़ महीना ले रोज नाचा होइस रवेली नाचा पार्टी के कलाकार मन अतेक सुग्घर गम्मत देखावँय के शहर के जम्मो सिनेमाघर ( टॉकीज) के खेल बंद होगे।

मंदराजी ह नाचा अउ कलाकार मन बर अपन तन-मन-धन सबो ल खुवार कर दिस । नाचा के ओखी म समाज म अँजोर बगराय खातिर अपन मालगुजारी ल होम कर दिस। जिनगी के आखरी समय म उँखर तीर हारमोनियम के छोड़ कुछ नइ रहिस। 24 सितंबर 1984 म मंदराजी ह ये दुनिया ल छोड़ के स्वर्गवासी होगें।

हमर बड़े पुरखा मन अपन पीछू जेन चीज छोड़ के जाथे, ओकर ले समाज ह कई जुग तक ले अँजोर म चमकत रहिथे । उँकर करम कमई के ममहई ह जन-जन के मन म बसे रहिथे ।

मंदरा जी कहे रिहिन – “हमन गम्मत देखा के समाजिक कुरीति ल उजागर करेन । ‘पांगवा पंडित’ गम्मत म छुवाछूत ल दूरिहा करे के कोसिस करेन । ‘इरानी’ गम्मत म हिन्दू-मुसलमान एकता समाज के आघू लायेन। ‘मोर नाव दमाद अउ गाँव के नाव ससुरार गम्मत म बाल-बिहाव ल रोके के कोसिस करेन । ‘मरारिन’ गम्मत म देवर-भउजी के नता ल दाई बेटा के रूप म देखायेन । अजादी के खातिर लड़ई चलत रहिस। हमर नाचा पार्टी ह घलो बीर सेनानी मन के संग दिस। हमर गीत अउ गम्मत देश-प्रेम के भाव ले जुड़े रहा। अजादी के बात हमर गीत अउ गम्मत म रहय । एकरे सेती हमर नाचा म अंगरेजी सरकार ह रोक घलो लगाय रहिस। “

आज नाचा कलाकार मन के बीच म मंदराजी के बड़ सम्मान हे उकर जनम स्थान रवेली म हर साल 1 अप्रेल के छत्तीसगढ़ के छोटे-बड़े कलाकार मन सकलायें अउ उँकर सुरता करथें । छत्तीसगढ़ शासन ह घलो नाचा के पुरखा मंदराजी के सम्मान म हर साल कलाकार मन ल दू लाख रुपिया के इनाम देथे।

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