मातृभूमि (कविता) – कक्षा 6 हिंदी मल्हार

पाठ में आये कठिन शब्दों के अर्थ
  1. हिमालय – भारत का एक बड़ा पर्वत (बर्फ से ढका पर्वत)
  2. चरण तले – पैरों के नीचे
  3. सिंधु – समुद्र
  4. झूमता है – लहरों के साथ हिलता हुआ
  5. गंगा यमुन त्रिवेणी – गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन
  6. लहर रही हैं – बह रही हैं
  7. जगमग – चमकती हुई
  8. छटा निराली – सुंदर दृश्य
  9. पग-पग – हर स्थान पर
  10. छहर रही हैं – फैल रही हैं
  11. पुण्य-भूमि – पवित्र भूमि, धार्मिक एवं महापुरुषों की भूमि
  12. स्वर्ण-भूमि – समृद्ध एवं कीमती भूमि, सोने के समान मूल्यवान देश
  13. जन्मभूमि – जहाँ जन्म हुआ हो, अपना देश
  14. मातृभूमि – माँ के समान पूज्य देश
  15. झरने – पहाड़ों से गिरने वाले जलप्रवाह
  16. झरते – गिरते
  17. पहाड़ियाँ – छोटे-छोटे पर्वत
  18. चहक रही हैं – मधुर स्वर में गा रही हैं
  19. मस्त – आनंदित, खुश
  20. झाड़ियाँ – छोटे-छोटे पेड़-पौधे
  21. अमराइयाँ – आम के पेड़ों का बगीचा
  22. घनी – बहुत अधिक, सघन
  23. पुकारती है – आवाज़ देती है, गाती है
  24. मलय पवन – दक्षिण से बहने वाली ठंडी सुगंधित हवा
  25. तन-मन सँवारती है – शरीर और मन को तरोताजा कर देती है
  26. धर्मभूमि – धर्म का पालन करने वाली भूमि
  27. कर्मभूमि – परिश्रम और कर्तव्य पालन की भूमि
  28. जन्मभूमि – जन्म लेने की भूमि, अपना देश
  29. पुनीत – पवित्र, शुद्ध
  30. सुयश – प्रसिद्धि
  31. वंशी – बाँसुरी
  32. गीता – श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान
  33. गौतम – महात्मा बुद्ध, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की
  34. दया – करुणा
  35. युद्ध-भूमि – युद्ध होने का स्थान (जैसे महाभारत का कुरुक्षेत्र)
  36. बुद्ध-भूमि – बुद्ध के जन्म और उनके ज्ञान की भूमि
  37. मातृभूमि – माँ के समान पूज्य देश
मातृभूमि पद्यांशों का भावार्थ

मातृभूमि पद्यांशों का भावार्थ Maatribhumi Poem Explanation

1.
ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।

गंगा यमुन त्रिवेणी
नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली,
पग पग छहर रही हैं।

शब्दार्थ-
हिमालय – भारत का एक बड़ा पर्वत (बर्फ से ढका पर्वत)
चरण तले – पैरों के नीचे
सिंधु – समुद्र
झूमता है – लहरों के साथ हिलता हुआ
गंगा यमुन त्रिवेणी – गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन
लहर रही हैं – बह रही हैं
जगमग – चमकती हुई
छटा निराली – सुंदर दृश्य
पग-पग – हर स्थान पर
छहर रही हैं – फैल रही हैं

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारत की भौगोलिक विशेषताओं और प्राकृतिक सुंदरता का गुणगान किया है। भारत के उत्तर में स्थित विशाल और गौरवशाली हिमालय पर्वत को कवि ने ऐसा दर्शाया है मानो वह आकाश को चूम रहा हो, जो देश की शक्ति और अडिगता का प्रतीक है। वहीं, दक्षिण दिशा में स्थित विशाल हिंद महासागर हिमालय के चरणों में झुककर लहरों के माध्यम से अपने उल्लास को प्रकट करता हुआ इतरा रहा है।
कवि ने भारत की पवित्र नदियों—गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम की महिमा का वर्णन किया है। इन नदियों का कलकल प्रवाह और उनकी जगमगाती छटा समस्त धरती पर एक अनुपम सुंदरता बिखेरती है। पर्वतीय झरनों की मधुर ध्वनि और नदियों की लहरों की चंचलता भारत की प्राकृतिक संपदा को और अधिक भव्य बनाती है।

2.
वह पुण्य-भूमि मेरी,
वह स्वर्ण-भूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

झरने अनेक झरते
जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं,
हो मस्त झाड़ियों में।

शब्दार्थ-
पुण्य-भूमि – पवित्र भूमि, धार्मिक एवं महापुरुषों की भूमि
स्वर्ण-भूमि – समृद्ध एवं कीमती भूमि, सोने के समान मूल्यवान देश
जन्मभूमि – जहाँ जन्म हुआ हो, अपना देश
मातृभूमि – माँ के समान पूज्य देश
झरने – पहाड़ों से गिरने वाले जलप्रवाह
झरते – गिरते
पहाड़ियाँ – छोटे-छोटे पर्वत
चहक रही हैं – मधुर स्वर में गा रही हैं
मस्त – आनंदित, खुश
झाड़ियाँ – छोटे-छोटे पेड़-पौधे

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी जन्मभूमि भारत की महानता और पवित्रता का भावनात्मक रूप से वर्णन किया है। कवि अपने देश को पुण्य-भूमि और स्वर्ण-भूमि कहकर इसका गौरव बढ़ाता है। यह वही भूमि है जहाँ कवि ने जन्म लिया, जिसे वह अपनी माँ के समान पूज्य मानता है और जिससे उसका गहरा आत्मीय संबंध है।
कवि आगे कहता है कि यहाँ की पहाड़ियों से अनेक झरने बहते हैं, जो इसकी प्राकृतिक शोभा को बढ़ाते हैं। हरियाली से भरे हुए इन जंगलों और झाड़ियों में चिड़ियों की चहचहाहट गूँजती रहती है, जिससे वातावरण आनंदमय और जीवंत प्रतीत होता है। भारत की इस प्राकृतिक सुंदरता को देखकर मन हर्षित हो उठता है।

3.
अमराइयाँ घनी हैं
कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,
तन-मन सँवारती है।

वह धर्मभूमि मेरी,
वह कर्मभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

शब्दार्थ-
अमराइयाँ – आम के पेड़ों का बगीचा
घनी – बहुत अधिक, सघन
पुकारती है – आवाज़ देती है, गाती है
मलय पवन – दक्षिण से बहने वाली ठंडी सुगंधित हवा
तन-मन सँवारती है – शरीर और मन को तरोताजा कर देती है
धर्मभूमि – धर्म का पालन करने वाली भूमि
कर्मभूमि – परिश्रम और कर्तव्य पालन की भूमि
जन्मभूमि – जन्म लेने की भूमि, अपना देश
मातृभूमि – माँ के समान पूज्य देश

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारत की प्राकृतिक सुंदरता का चित्रण किया है। पहली पंक्ति में कवि भारत की हरी-भरी प्रकृति का वर्णन करता है, जहाँ घने आम के बाग अपनी शीतल छाया प्रदान करते हैं। इन बागों में कोयल अपनी मधुर वाणी में गान करती है, जिससे वातावरण संगीत से गूंज उठता है। मंद-मंद मलय पवन (दक्षिण से चलने वाली शीतल हवा) प्रवाहित होती है, जो न केवल शरीर को शीतलता प्रदान करती है, बल्कि मन को भी प्रसन्नता और स्फूर्ति से भर देती है।
इसके बाद, कवि अपने देश की धार्मिक और नैतिक महानता को रेखांकित करता है। भारत को “धर्मभूमि” कहा गया है, क्योंकि यह धार्मिकता का केंद्र रहा है। साथ ही, इसे “कर्मभूमि” भी कहा गया है, क्योंकि यह परिश्रम और वीरता का प्रतीक है। यही वह भूमि है जहाँ कवि ने जन्म लिया और जिसे वह अपनी “मातृभूमि” के रूप में सम्मान देता है। 

4.
जन्मे जहाँ थे रघुपति,
जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता।

गौतम ने जन्म लेकर,
जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई,
जग को दिया दिखाया।

वह युद्ध-भूमि मेरी,
वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी।

शब्दार्थ-
पुनीत – पवित्र, शुद्ध
सुयश – प्रसिद्धि
वंशी – बाँसुरी
गीता – श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान
गौतम – महात्मा बुद्ध, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की
दया – करुणा
युद्ध-भूमि – युद्ध होने का स्थान (जैसे महाभारत का कुरुक्षेत्र)
बुद्ध-भूमि – बुद्ध के जन्म और उनके ज्ञान की भूमि
मातृभूमि – माँ के समान पूज्य देश

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि इस भूमि की पवित्रता को दर्शाते हुए कहते हैं कि यह वही देश है जहाँ भगवान राम और माता सीता का जन्म हुआ। यह वही भूमि है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि के साथ गीता का पावन ज्ञान संसार को प्रदान किया, जिससे मानवता को धर्म, कर्म और सत्य का मार्गदर्शन मिला।
यही वह भूमि है जहाँ गौतम बुद्ध का जन्म हुआ और उन्होंने अपनी करुणा, अहिंसा और ज्ञान से संपूर्ण विश्व को दया और सत्य का संदेश दिया। उन्होंने अज्ञान के अंधकार में भटके हुए लोगों को सच्चा मार्ग दिखाया और उन्हें मोक्ष की ओर अग्रसर किया।
अंत में, कवि इस देश को “युद्ध-भूमि” और “बुद्ध-भूमि” दोनों कहकर इसकी अद्वितीय विशेषता को दर्शाते हैं। यह वही भूमि है जहाँ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए महाभारत जैसे युद्ध लड़े गए, वहीं यह अहिंसा और शांति का संदेश देने वाले महापुरुषों की जन्मस्थली भी रही है। कवि के अनुसार यही उनकी मातृभूमि है और यही उनकी जन्मभूमि है। यह देश केवल भूमि का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि जन्मभूमि और मातृभूमि के रूप में पूजनीय है।