कामता प्रसाद गुरु बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे और उन्हें अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।
कामता प्रसाद गुरु का साहित्यिक परिचय
कामताप्रसाद गुरु का जन्म सागर (म.प्र.) में सन् 1875 में हुआ। गुरु जी का निधन 16 नवम्बर 1947 ई. को जबलपुर में हुआ।
कामता प्रसाद गुरु जी की रचनाएँ
“सत्य’, “प्रेम’, “पार्वती और यशोदा’ (उपन्यास), “भौमासुर वध’, “विनय पचासा’ (ब्रजभाषा काव्य), “पद्य पुष्पावली’, “सुदर्शन’ (पौराणिक नाटक) तथा “हिंदुस्तानी शिष्टाचार’ इनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।
कामता प्रसाद गुरु जी का लेखन कला
ब्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में “व्रज” शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ “भाषा” नाम प्राप्त किया और “ब्रजबोली” नाम से नहीं, अपितु “ब्रजभाषा” नाम से विख्यात हुई।
कामता प्रसाद गुरु जी साहित्य में स्थान
गुरुजी की असाधारण ख्याति उनकी उपर्युक्त साहित्यिक कृतियों से नहीं, बल्कि उनके ‘हिंदी व्याकरण’ के कारण है। यह हिंदी भाषा का सबसे बड़ा और प्रामाणिक व्याकरण माना जाता है।