जगन्नाथ संस्कृत काव्यशास्त्री

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पंडितराज जगन्नाथ संस्कृत साहित्य के प्रमुख कवि, समालोचक, साहित्यशास्त्री और वैयाकरण थे। उनकी विद्वत्ता और रचनाएँ साहित्यशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय मानी जाती हैं।

पंडितराज जगन्नाथ का जीवन परिचय

  • जन्म: 16वीं शताब्दी के अंतिम चरण में
  • मृत्यु: 17वीं शताब्दी के तृतीय चरण में
  • वंश: तैलंग ब्राह्मण
  • जन्मस्थान: मुंगुडु ग्राम, गोदावरी जिला (आंध्र प्रदेश)
  • पिता: पेरुभट्ट (पेरभट्ट)
  • माता: लक्ष्मी
  • संरक्षण: मुगल सम्राट औरंगजेब के दरबारी विद्वान

रचनाएँ और योगदान

स्तोत्र साहित्य

  1. अमृतलहरी (यमुनास्तोत्र)
  2. गंगालहरी (पीयूषलहरी / गंगतामृतलहरी)
  3. करुणालहरी (विष्णुलहरी)
  4. लक्ष्मीलहरी
  5. सुधालहरी

प्रशस्तिकाव्य

  1. आसफविलास
  2. प्राणाभरण
  3. जगदाभरण

शास्त्रीय ग्रंथ

  1. रसगंगाधर – अलंकारशास्त्र पर एक प्रौढ़ ग्रंथ (अपूर्ण)
  2. चित्रमीमांसाखंडन – अप्पय दीक्षित की “चित्रमीमांसा” का खंडन (अपूर्ण)
  3. काव्यप्रकाशटीका – मम्मट के “काव्यप्रकाश” की टीका
  4. प्रौढ़मनोरमाकुचमर्दन – भट्टोजि दीक्षित के “प्रौढ़मनोरमा” की आलोचना

मुक्तक काव्य

  • भामिनीविलास (पंडितराज शतक) – संस्कृत मुक्तकों का संकलन

साहित्यिक विशेषताएँ

  • उनकी रचनाओं में भक्ति, अलंकार और गूढ़ चिंतन की झलक मिलती है।
  • रसगंगाधर अलंकारशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो अपूर्ण होते हुए भी उच्च कोटि का माना जाता है।
  • उनकी कविता में ओज और समासबहुलता के साथ-साथ प्रसाद गुण भी दिखाई देता है।
  • उनके स्तोत्रों में श्रद्धा और भक्तिभाव की गहनता स्पष्ट रूप से झलकती है।
  • उनकी साहित्यिक दृष्टि में गंभीर विश्लेषण, नवीन दृष्टिकोण और गहन पांडित्य का समावेश मिलता है।

महत्व और प्रभाव

  • पंडितराज जगन्नाथ ने संस्कृत साहित्य को नवीन चिंतन, विश्लेषण और रस सिद्धांत प्रदान किया।
  • उनकी काव्य रचनाएँ और शास्त्रीय ग्रंथ संस्कृत साहित्य और साहित्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
  • वे एक कवि, आलोचक और वैयाकरण के रूप में अद्वितीय थे।

संक्षेप में, पंडितराज जगन्नाथ संस्कृत साहित्य के अमूल्य रत्न थे, जिनकी रचनाएँ साहित्यशास्त्र और भक्तिकाव्य की उच्च श्रेणी में आती हैं।

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