हाय मेरी चारपाई कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 19

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हाय मेरी चारपाई कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 19

बात उन दिनों की है, जिन दिनों मैं निकर पहनता था; यानी छोटा भी था और शरारती भी। मौज-मस्ती के दिन थे; चिंता-फिक्र कोई थी नहीं।

इस वर्ष की तरह उस वर्ष भी होली आई थी। मुहल्ले में होली जलाने के लिए लकड़ी जमा करने की समस्या थी सो आसपास से जितने लकड़ी-फट्ठे इकट्ठे किए जा सकते थे, वे पर्याप्त नहीं थे। इसलिए तय हुआ कि मुहल्ले के पीछे की पहाड़ी से कुछ सूखी झाड़ियाँ काट लाई जाएँ।

आखिर होली का दिन आ गया, लेकिन होली का झाड़ अभी पहाड़ नहीं हो पाया था। दोस्तों की चिंता को देखते हुए मैंने मंडली को सुझाव दिया, “क्यों न कुछ लोगों के यहाँ से चारपाई, लकड़ी के फाटक, कुर्सी-मेज और ऐसा कोई भी सामान, जो बाहर रखा हो, उठा लिया जाए। इस काम में मुहल्ले के खूसट और गुस्सैल लोगों का विशेष ध्यान रखा जाए, जिन्होंने हमें वर्ष भर सताया है।” सुझाव मान लिया गया।

अब क्या था ? सारी मंडली चार-पाँच टुकड़ों में बँट गई। हर टुकड़े में तीन-चार लड़के थे। सबने अपने-अपने घरों से दूर के इलाके चुने और हमारा अभियान शुरू हो गया। फिर तो तरह-तरह का लकड़ी का सामान आता रहा और टूट-टाटकर होली के झाड़ में पड़ता रहा। कुछ ही घंटों में झाड़ का पहाड़ बन गया।

मैं अपनी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहा था; मेरे साथ तीन लड़के और थे। हम लोगों ने मास्टर रतिलाल और पंडित गंगाप्रसाद की चारपाई, मन्ने साव का फाटक, हरीचंद चूनेवाले की सीढ़ी और न जाने क्या-क्या होली की भेंट चढ़ा दिया।

आखिर होली जलने का समय भी आ गया। होली-दहन आरंभ हुआ और देखते-ही-देखते झाड़ का पहाड़ धू-धूकर जलने लगा। टूटे टीन के कनस्तर का ढोल बजा, मंडली के बदन में थिरकन हुई और फिर जो हुड़दंग शुरू हुआ, तो रात के बारह बजे जाकर रुका।

घर पहुँचकर मैंने देखा कि सब लोग परेशान बैठे हैं। माँ और पिता जी के चेहरों पर गुस्से और परेशानी के भाव हैं। मैंने सोचा, आज तो मेरी खैर नहीं। डरते-डरते जैसे ही घर में कदम रखा कि पिता जी की सख्त आवाज सुनाई दी,”क्यों रे! तेरी चारपाई कहाँ है ?”

“मेरी चारपाई ?” मैंने चौंककर कहा। “हाँ, हमने सारा घर देख लिया। कहीं नहीं मिली। कहाँ रखी थी निकालकर ?” माँ ने पूछा।

मुझे काटो तो खून नहीं। अब से कुछ देर पहले की सारी मस्ती उतर गई। हुड़दंग का रंग फीका पड़ गया। टूटे हुए कनस्तर की ठक्-ठक् कानों में गूँजने लगी। मैंने कोई जवाब नहीं दिया, मगर तभी मुझे ध्यान आया कि हमारी मंडली के जो छोकरे इस तरफ आए थे, उनमें बिल्लू भी था और उन दिनों मेरी बिल्लू से कुछ खटक भी रही थी। बात साफ हो चुकी थी कि हो-न-हो यह जरूर बिल्लू का ही काम है।

खैर, जैसे-तैसे मन को समझाया कि अब जो होना था, सो हो गया। मगर उस रात तो मुझे फर्श पर दरी बिछाकर ही सोना पड़ा। अब भी जब-जब होली आती है, मैं अपनी चारपाई को जरूर याद कर लेता हूँ।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: होली के झाड़ को पहाड़ जैसा ऊँचा बनाने के लिए बच्चों को क्या करना पड़ा?

बच्चों को होली के झाड़ को पहाड़ जैसा ऊँचा बनाने के लिए:

  1. आसपास के घरों और इलाकों से लकड़ी और सूखी झाड़ियाँ लानी पड़ीं।
  2. उन्होंने कुछ लोगों के घरों से लकड़ी की वस्तुएँ, जैसे चारपाई, फाटक, कुर्सी-मेज और सीढ़ियाँ उठाईं।

प्रश्न 2: होली के लिए कहाँ-कहाँ से सामान लाया गया?

होली के लिए सामान:

  1. मुहल्ले के पीछे की पहाड़ी से सूखी झाड़ियाँ लाई गईं।
  2. आसपास के घरों से लकड़ी की वस्तुएँ, जैसे चारपाई, फाटक, कुर्सी-मेज आदि उठाई गईं।

प्रश्न 3: होली के लिए सामान उठाने में किन लोगों का विशेष ध्यान रखा गया?

होली के लिए सामान उठाने में उन लोगों का विशेष ध्यान रखा गया जिन्होंने बच्चों को पूरे वर्ष परेशान किया था, जैसे खूसट और गुस्सैल लोग।


प्रश्न 4: कहानी के नायक को होली-दहन की रात फर्श पर ही दरी बिछाकर क्यों सोना पड़ा?

कहानी के नायक की चारपाई होली में जल गई थी। इसलिए उसे होली-दहन की रात फर्श पर ही दरी बिछाकर सोना पड़ा।


प्रश्न 5: माँ और पिता जी के चेहरे पर गुस्से और परेशानी के भाव क्यों थे?

माँ और पिता जी के चेहरे पर गुस्से और परेशानी के भाव इसलिए थे क्योंकि घर की चारपाई गायब हो गई थी, और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि चारपाई कहाँ गई।


प्रश्न 6: बच्चों की टोली ने लोगों के घरों से होली जलाने के लिए जो सामान उठाया, क्या तुम्हारी दृष्टि में यह काम उचित था? क्यों?

नहीं, यह काम उचित नहीं था।

  1. यह दूसरों की संपत्ति का अनाधिकार चुराना है।
  2. इससे लोगों को नुकसान और परेशानी होती है।
  3. होली जलाने के लिए ईमानदारी से लकड़ी इकट्ठा करनी चाहिए, न कि चोरी करके।

प्रश्न 7: होली पर लोग हुड़दंग मचाते हैं, दूसरों को परेशान भी करते हैं। तुमने किस तरह से होली मनाई? क्या तुम हुड़दंग मचाना उचित समझते हो?

मैंने होली शांति और उत्साह के साथ मनाई। रंगों के साथ खेला और परिवार व दोस्तों के साथ समय बिताया। मैं हुड़दंग मचाना उचित नहीं समझता क्योंकि इससे दूसरों को परेशानियाँ होती हैं और होली का मजा खराब होता है।


भाषातत्त्व और व्याकरण

प्रश्न 1: दुःख और शोक की अवस्था में ‘हाय’ शब्द निकलता है। निम्नलिखित अवसरों पर कौन से शब्द निकलते हैं?

  1. प्रसन्नता में: वाह, अरे वाह, बहुत बढ़िया।
  2. आश्चर्य में: अरे, ओह, सचमुच।
  3. उत्साह में: चलो, हुर्रे, जय हो।
  4. चिंता में: ओह, हाय राम, अब क्या होगा।

प्रश्न 2: मुहावरों के अर्थ और वाक्य प्रयोग

  1. काटो तो खून नहीं: अत्यधिक डर या चिंता की अवस्था।
    वाक्य: परीक्षा के परिणाम सुनकर ऐसा लगा, जैसे काटो तो खून नहीं।
  2. झाड़ का पहाड़ बन जाना: छोटी सी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
    वाक्य: माँ ने मेरे झगड़े को लेकर झाड़ का पहाड़ बना दिया।

प्रश्न 3: शब्दों का वाक्य प्रयोग

  1. मौज-मस्ती: बच्चों ने गर्मी की छुट्टियों में खूब मौज-मस्ती की।
  2. आसपास: पार्क के आसपास पेड़ और पौधे बहुत हैं।
  3. डरते-डरते: वह डरते-डरते कमरे में दाखिल हुआ।
  4. देखते-ही-देखते: देखते-ही-देखते होली का झाड़ जलने लगा।
  5. मंडली: बच्चों की मंडली ने होली के लिए लकड़ी इकट्ठा की।
  6. परेशान: गुम हुई चारपाई के कारण माँ बहुत परेशान थीं।
  7. शरारत: बच्चों की शरारत से सब परेशान हो गए।
  8. चौंककर: अचानक आवाज सुनकर वह चौंककर उठ गया।
  9. नेतृत्व: उसने अपनी मंडली का नेतृत्व बहुत अच्छी तरह किया।

प्रश्न 4: गलत वाक्यों को सही करें

  1. गलत: रिमझिम-रिमझिम पानी की बूंद बरस रहा है।
    सही: रिमझिम-रिमझिम पानी की बूंदें बरस रही हैं।
  2. गलत: हर टुकड़ा में तीन-चार लड़के था।
    सही: हर टुकड़े में तीन-चार लड़के थे।
  3. गलत: हर वर्ष का तरह होली आया।
    सही: हर वर्ष की तरह होली आई।
  4. गलत: उन दिनों मेरा बिल्लू से खटक रहा था।
    सही: उन दिनों मेरी बिल्लू से खटक रही थी।
  5. गलत: लड़कियाँ हंस रहे हैं।
    सही: लड़कियाँ हंस रही हैं।

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