गीताङ्गोंदकम कक्षा 8 संस्कृत पाठ 7
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥
शब्दार्था: – चेतसा = चित्त से। नान्यगामिना = दूसरी ओर न जाने वाला। याति = प्राप्त होता है।
अर्थ- हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ही प्राप्त होता है।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ।
शब्दार्थाः तोयं = जल, प्रयच्छति = अर्पण करता है, देता है। पचाभि = पचाता है।
अर्थ- जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है। उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि को मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ ।।
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥
शब्दार्थाः -समायुक्तः संयुक्त। चतुर्विधम् = चार प्रकार के, वैश्वानरो = वैश्वानर अग्नि रूप।
अर्थ- मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्निरूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेहय, चोष्य) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।
सुख दुःखे समे कृत्वा लाभालाभी जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
शब्दार्था: – युज्यस्व = तैयार रहो, जुड़ जाओ अवाप्स्यसि = प्राप्त करोगे।
अर्थ- जय-पराजय, लाभ-हानि, सुख-दुःख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तुझे पाप नहीं लगेगा।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
शब्दार्था:- परित्यज्य = त्यागकर ,शरणं व्रज = शरण में आजा । मोक्षयिष्यामि = मुक्त कर दूँगा। मा शुचः = शोक मत = कर ।
अर्थ- सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्त्तव्यकर्मों को मुझमें त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान्, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आजा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा। तू शोक मत कर।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥
शब्दार्था: – विहाय = त्यागकर । कामान् = इच्छाओं को। निर्ममो = ममतारहित। निरहङ्कारः = अहंकार रहित । अधिगच्छति = प्राप्त होता है।
अर्थ- जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममता रहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वह शान्ति प्राप्त करता है।
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥
शब्दार्थाः- सदृशं = के समान। इह = संसार। योग संसिद्ध = कर्मयोग के द्वारा पूर्ण सिद्धि किया हुआ। आत्मनि = अपने आप ही आत्मा में। क्षये = नष्ट होने पर। कृत्स्नं = सम्पूर्ण, उत = बहुत ।
अर्थ- कुल के नाश से सनातन कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नष्ट हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है ।
न हि ज्ञानने सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।
तत्स्वयं योगसंसिद्ध कालेनात्मनि विन्दति ॥
शब्दार्था:- प्राणश्यन्ति = नष्ट हो जाते हैं। विन्दति = पा लेता है।
अर्थ – इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग के द्वारा शुद्धान्तःकरण हुआ मनुष्य अपने आप ही आत्मा में पा लेता है।
ईश्वरः सर्वभूतानां हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति ।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
शब्दार्था:- सर्वभूतानां = सभी प्राणियों के। हृदद्देदेशे=हृदय प्रदेश में । तिष्ठति = स्थित है। भ्रामयन् = भ्रमण करता हुआ । यन्त्रारूढानि = यन्त्र में आरूढ़ हुए।
अर्थ- हे अर्जुन ! शरीर रूपी यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उसके कार्यों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।
अभ्यास प्रश्नाः
1. संस्कृत भाषा में निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) जनाः ईश्वरं प्राप्त्यर्थं किं कुर्वन्ति ?
(लोग ईश्वर की प्राप्ति के लिए क्या करते हैं ?)
उत्तर- जनाः ईश्वरं प्राप्त्यर्थं योग अभ्यासं च कुर्वन्ति । एवं सतत् चिन्तनम् च कुर्वन्ति ।
(लोग ईश्वर की प्राप्ति के लिए योग और अभ्यास करते हैं एवं सतत् चिन्तन करते हैं।)
(ख) सत्पुरुषाः सुखदुःखे किं मन्यन्ते ?
(सत्पुरुष सुख-दुःख में क्या मानते हैं ?)
उत्तर- सत्पुरुषाः सुखं वाञ्छन्ति तथा दुःखं न वाञ्छन्ति इदृशं तयोः भेदं मन्यन्ते ।
(सत्पुरुष लोग सुख चाहते हैं तथा दुख नहीं चाहते हैं। इस प्रकार दोनों में भेद मानते हैं।)
(ग) मुक्तेः उपायं किम् ?
(मुक्ति का उपाय क्या है ?)
उत्तर- सर्वधर्मान् परित्यज्य ईश्वरस्य शरण एव मुक्ततेः उपाये अस्ति ।
(सभी धर्मों का परित्याग करके ईश्वर की शरण में जाना ही मुक्ति का उपाय है।)
(घ) कः पुरुषः शान्तिमाधिगच्छति ?
(कौन पुरुष शान्ति प्राप्त करता है ?)
उत्तर – यः पुरुषः सकल कर्माणि परित्यज्य अहंकार रहितः भवति सः शान्तिमाधिगच्छति ।
(जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर अहंकार रहित होता है, वह शान्ति प्राप्त करता है।)
(ङ) धर्मे नष्टे किं भवति ?
(धर्म नष्ट होने पर क्या होता है ?)
उत्तर- धर्मे नष्टे कुलं नष्टं भवति ।
(धर्म नष्ट होने पर कुल नष्ट होता है।)
2. निम्नांकित श्लोक के रिक्त पदों की पूर्ति कीजिए-
(क) पत्रं पुष्पं जलं तोयं…. ।
तदहं ….. प्रयतात्मनः ॥
(ख) लाभालाभौ जयाजयौ ।
………तातो दुध्यायमुपस्व …………।।
(ग) कुलक्षये प्रणश्यति …….
……………कृतस्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥
(घ) ईश्वरः सर्वभूतानां ……
……यंत्रारूढ़ानि मायया ।
उत्तर- (क) यो मे भक्त्या प्रयच्छति, भक्त्युपहृतमश्नामि ।
(ख) सुख दुःखे समे कृत्वा, नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
(ग) कुलधर्माः सनातनाः धर्मे नष्टे कुलं ।
(घ) हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति, भ्रामयन्सर्वभूतानि
3. निम्न सामासिक पदों का विग्रह कीजिए-
जयाजयौ= जयः अजयः च ।
देहाश्रितः= देहे आश्रितः ।
लाभालाभौ= लाभ: अलाभः च ।
कुलक्षये= कुलस्य क्षये ।
4. निम्न शब्दों के सन्धि विच्छेद कर प्रकार बताइये-
पचाम्यन्नं= पचामि + अन्नं (यण संधि)
यन्त्रारूढानि = यन्त्र + आरूढानि (स्वर संधि)
मामेकं= माम् + ऐकं (स्वर संधि)
पवित्रमिह= पवित्रम् + इह (स्वर संधि)
5. विभक्ति रूप लिखिए-
शान्तिम् =द्वितीया (एकवचन)
धर्माः= प्रथमा (बहुवचन)
युद्धाय =चतुर्थी (एकवचन)
कालेन = तृतीया (एकवचन)
6. निम्न पदों में धातु और प्रत्यय अलग कीजिए-
भूत्वा=भू +त्वा
विहाय=वि हा + ल्यप्
प्रयच्छति = प्र+ यम्+ तिप्
विद्यते=विद् + ते
7. संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
(क) सुख-दुःख समान हैं।
अनुवाद-सुखः दुःखे समे स्तः ।
(ख) ईश्वर सबके हृदय में निवास करते हैं।
अनुवाद–ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्द्द्देशे तिष्ठति ।
(ग) अन्न चार प्रकार के होते हैं।
अनुवाद – अन्नं चतुर्विधं भवति ।
(घ) मानव शान्ति चाहता है।
अनुवाद-मानवः शान्तिः वाञ्छति ।
(ङ) गीता गाने योग्य है।
अनुवाद-गीता सुगीता कर्त्तव्या ।