एक टोकरी भर मिट्टी कक्षा 6 हिन्दी

एक टोकरी भर  मिट्टी

किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब, अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी जमींदार साहब ने विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी। उसका पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोपड़ी में मर गए थे पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्ध काल में उसका एक मात्र आधार थी। जब कभी उसे अपनी पूर्व स्थिति की याद आती तो मारे दुःख के फूट-फूट कर रोने लगती थी और जब से उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना तब से वह मृतप्राय हो गई थी । उस झोपड़ी में उसका मन लग गया था बिना मरे वह वहाँ से निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्न निष्फल हो गए तब वे अपनी जमींदारों वाली चाल चलने लगे । बाल की खाल निकलवाने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत में झोंपड़ी पर अपना कब्जा कर लिया। विधवा को वहाँ से निकाल दिया । बेचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।

एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बता रहे थे कि इतने में वह विधवा हाथ में टोकरी लेकर वहाँ पहुँची श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा- “तुम उसे यहाँ से हटा दो।” पर वह गिड़गिड़ाकर बोली- “महाराज, अब तो यह झोपड़ी तुम्हारी हो गई है, मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज, क्षमा करें तो एक विनती है ।” जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, “जब से यह झोपड़ी छूटी है तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती । यही कहा करती है कि अपने घर चल, तब रोटी खाऊँगी । अब मैंने यह सोचा है कि इस झोंपड़ी से एक टोकरी मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महराज, कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले जाऊँ।” श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।

विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे अपनी पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दुखों को किसी तरह सम्हाल कर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ में उठाकर बाहर ले आई। फिर श्रीमान् से हाथ जोड़कर विनती करने लगी, “महाराज, कृपा करके

हाथ लगा दीजिए जिससे कि मैं इसे अपने सिर पर धर लें। जमींदार साहब पहले तो गुस्सा हुए, फिर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों में गिरने लगी तो उनके मन में भी कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे, त्योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, उस स्थान से वह एक हाथ भी ऊँची न उठी। वह लज्जित होकर कहने लगे यह टोकरी हमसे नहीं उठाई जाएगी।

यह सुनकर विधवा ने कहा, “महाराज, नाराज न हों, तो आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जनम भर कैसे उठा पाओगे? आप इस बात पर विचार कीजिए । “

जमींदार साहब धन मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गए थे। पर विधवा के कहे हुए वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा माँगी और झोंपड़ी वापस दे दी।

अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1. जमींदार, विधवा से झोपड़ी हटाने के लिए क्यों कह रहा था?

उत्तर- जमींदार, विधवा से झोपड़ी हटाने के लिए इसलिए कह रहा ■ था कि वह झोपड़ी जमींदार के महल के पास थी जिसके वजह से महल। की सुन्दरता में कमी नजर आती थी। झोपड़ी को हटवाकर इस स्थान पर महल बनवाना चाहता था।

प्रश्न 2. जमींदार ने झोपड़ी पर कब्जा करने के लिए कौन-सी चाल चली?

उत्तर- जमीदार ने झोपड़ी पर कब्जा करने के लिए जमीदारों वाली चाल चली क्योंकि उन्होंने वकीलों की थैली गरम कर अदालत के माध्यम से झोपड़ी पर कब्जा कर लिया।

प्रश्न 3. विधवा की झोपड़ी से कौन-सी यादें जुड़ी हुई थीं? जिसके ‘कारण वह झोपड़ी छोड़ना नहीं चाहती थी।

उत्तर- इस झोपड़ी में उसने पति, बेटे-बहू के साथ दिन बिताये थे। उनकी यादें उसी झोपड़ी से जुड़ी हुई थी। उसे झोंपड़ी से मोह था। वह अपनी जिन्दगी के अन्तिम दिन वही गुजारना चाहती थी जिसके कारण वह झोपड़ी छोड़ना नहीं चाहती थी।

प्रश्न 4. विधवा की पोती ने खाना-पीना क्यों छोड़ दिया था ?

उत्तर- विधवा की पोती को भी अपनी झोंपड़ी से बहुत लगाव था। झोंपड़ी छोड़कर अन्यत्र चले जाने के कारण उसने खाना-पीना छोड़ दिया था।

प्रश्न 5. बुढ़िया झोंपड़ी में से एक टोकरी मिट्टी क्यों ले जाना चाहती थी?

उत्तर- विधवा ने सोचा कि इस झोंपड़ी से एक टोकरी मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे मुझे भरोसा है कि मेरी पोती रोटी खाने लगेगी। इसीलिए बुढ़िया झोपड़ी में से एक टोकरी मिट्ठी ले जाना चाहती थी।

प्रश्न 6. विधवा द्वारा टोकरी उठाने को कहने पर ‘जमींदार नौकर से न कहकर खुद टोकरी क्यों उठाने लगे ?

उत्तर- विधवा बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों में गिरने लगी तो जमींदार के मन में भी कुछ दया आ गई। इस कारण जमींदार किसी नौकर से न कहकर खुद टोकरी उठाने लगे।

प्रश्न 7. जमींदार को विधवा के सामने क्यों लज्जित होना पड़ा ?

उत्तर- जमींदार द्वारा एक टोकरी मिट्टी का भार न उठा पाने पर विधवा कहती है कि जब आपसे एक टोकरी मिट्टी का वजन उठाया नहीं जा सकता, तो इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी हैं उसका भार आप जिन्दगी भर कैसे उठा पाओगे, जमींदार को विधवा के सामने इसी बात के कारण लज्जित होना पड़ा।

प्रश्न 8. आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है।” विधवा के इस कथन के पीछे क्या भाव रहा होगा ?

उत्तर- विधवा के इस कवन के पीछे यह भाव रहा होगा कि जब आप एक टोकरी मिट्टी नहीं उठा पा रहे हैं तो मेरी इस झोपड़ी में हजारों मटन मिट्टी पड़ी है अर्थात् आप इस झोपड़ी को हथिया रहे हैं। इस अपराध का बोझ जीवन भर आप कैसे उठा पायेंगे।

प्रश्न 9. कहानी का शीर्षक ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ की सार्थकता पर अपने विचार दीजिए।

उत्तर- जमींदार द्वारा अदालत के माध्यम से विधवा की झोपड़ी पर कब्जा कर लिया जाता है। झोपड़ी छोड़कर अन्यत्र चले जाने के कारण उसकी पोती खाना-पीना छोड़ देती है। इसीलिए विधवा जमीदार से अपनी झोपड़ी में से एक टोकरी मिट्टी की माँग करती है। पहले तो जमींदार गुस्सा हुए लेकिन बाद में उन्हें कुछ दया आ गई और जमींदार का हृदय परिवर्तन हो गया। मिट्टी माँगे जाने पर जमींदार का हृदय परिवर्तन होने के कारण कहानी का शीर्षक “एक टोकर भर मिट्टी की सार्थकता सिद्ध होती है।

पाठ से आगे

प्रश्न 1. जमीदार के द्वारा विधवा के साथ किया जाने वाला व्यवहार उचित है अथवा अनुचित ? अपने विचार दीजिए ।

उत्तर- जमींदार के द्वारा विधवा के साथ किया जाने वाला व्यवहार अनुचित है, यहाँ पर जमींदार द्वारा किसी गरीब विधवा की जमीन हथियाना (अपने कब्जे में लेना) कदापि उचित नहीं है क्योंकि विधवा के साथ उसकी पोती के अलावा उसके घर में दूसरा और कोई व्यक्ति नहीं था जो उस विधवा का पालन पोषण कर सके। उस झोपड़ी के अलावा विधवा के पास कुछ नहीं था, जिससे वह गुजर-बसर कर सके, क्योंकि उस झोपड़ी से विधवा का पुराना सम्बन्ध था इसी झोपड़ी में पति और इकलौता पुत्र और उसकी बहू की मृत्यु हुई थी, जमींदार के द्वारा विधवा के साथ किया जाने वाला व्यवहार इसी कारण अनुचित है।

प्रश्न 2. वकीलों का कार्य न्याय दिलाना होता है, परन्तु इस पाठ में जमीदार वकीलों की मदद से गरीब विधवा की झोपड़ी पर कब्जा कर लेता है। वकीलों का जमींदार का साथ देना उचित था या अनुचित ? लिखिए।

उत्तर- वकीलों का जमींदार का साथ देना अनुचित या क्योंकि विधवा गरीब थी उसके पास उस झोंपड़ी के अलावा रहने के लिए और कोई जगह नहीं थी लेकिन जमींदार ने पैसे के बल पर उस झोपड़ी पर वकीलों के माध्यम से अदालत जाकर अपना कब्जा कर लिया। इस प्रकार वकीलों का जमींदार का साथ देना अनुचित हैं।

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