ब्रज माधुरी कक्षा 8 हिन्दी
ब्रजभाषा मूलतः ब्रज क्षेत्र की भाषा है। यह विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत में साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही। आज भी यह भाषा मथुरा, आगरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा भी कह सकते हैं। प्रारम्भ में ब्रजभाषा में ही काव्य रचना हुई। भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल तथा आरंभिक वर्षों में प्रचुर मात्रा में साहित्य सृजन इस भाषा में हुआ, जिनमें सूरदास, रहीम, रसखान, बिहारी, केशव, धनानन्द, भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद आदि कवि प्रमुख हैं। प्रस्तुत पद में भक्ति और श्रृंगार के भाव सामर्थ्य और प्रवाह को देखा जा सकता है।
चितै चितै चारों ओर चौंकि चौंकि परेँ त्यों ही,
जहाँ-तहाँ जब-तब खटकत पात है।
भाजन सो चाहत, गँवार ग्वालिनी के कछु,
डरनि डराने से उठाने रोम गात हैं ।
कहैं ‘पदमाकर’ सुदेखि दसा मोहन की,
सेष हू महेस हू, सुरेस हू सिहात हैं।
एक पाँय भीत, एक पाँय मीत काँधे धरें,
एक हाथ छींको एक हाथ दधि खात हैं।। 1।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक “छत्तीसगढ़ भारती” के ब्रज माधुरी नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पद्माकर जी है।
प्रसंग – इस पद्यांश में कवि ने बालक कृष्ण द्वारा दही चुराने की घटना का सुन्दर चित्रण किया है।
व्याख्या – कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ किसी ग्वालिन के घर दही चुराने जाते हैं। वे वही सतर्कता के साथ आगे बढ़ते है, किन्तु जब भी कहीं कोई पत्ता भी खड़कता है, चौंककर चारों ओर देखने लगते हैं। इसी बीच गाँव की एक ग्यालिन उन्हें किसी चीज का भय बताकर डरा देती है। इससे उनका पूरा शरीर रोमांचित हो उठता है और वे भाग जाना चाहते हैं।
कवि पद्माकर कहते हैं कृष्ण की यह दशा देखकर शेषनाग, शंकर एवं देवराज इन्द्र को उनसे ईर्ष्या होने लगती है। ग्वालिन के घर पहुँचकर सीके तक पहुँचने के लिए बालकृष्ण अपना एक पैर दीवार पर और दूसरा पैर मित्र के कंधे पर रखते हैं। फिर वे एक हाथ से सीके को पकड़कर दूसरे हाथ से दही निकाल निकालकर खाने लगते हैं।
पंकज कोस में भृंग फस्यौ, करती अपने मन यो मनसूबा ।
होइगो प्रात आँगे दिवाकर जाऊँगो धाम पराग लै खुबा
बेनी सो बीच ही और भई, नहि काल को ध्यान न जान अजूबा
आय गयंद चाय लियो, रहिगो मन-ही-मन यो मनसूबा ॥
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘ब्रज-माधुरी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि बेनीजी है।
प्रसंग– इस पर्याश में कवि ने कमल कोश में फँसे और के माध्यम से जीवन की नश्वरता को बताया है।
व्याख्या – सूर्यास्त होने पर कमल दल के संकुचित हो जाने पर एक भौरा उसके कोश में फँस गया। वह मन-ही-मन इस प्रकार सोचने लगा कि कल प्रातः जब सूर्योदय होगा और कमल पुनः विकसित हो जायेगा तो मैं बहुत-सा पराग लेकर अपने घर चला जाऊँगा, अर्थात् उड़ जाऊँगा बेनी कवि कहते हैं कि इसी बीच एक और ही घटना घट गयी। इसमें कोई अचरज नहीं कि उस और को काल अर्थात् अपनी मृत्यु का ध्यान ही नहीं रहा। वहाँ एक हाथी आया और उसने उस कमल को चबा डाला, जिसमें वह भौरा बन्द था। इस प्रकार उस और की इच्छा उसके मन में ही धरी रह गयी और वह काल के गाल में समा गया।
सखी हम काह करें कित जायें।
बिनुदेखें वह मोहिनी मूरति नैना नाहि अघायें।
बैठत उठत सयन सोवत निस चलत फिरत सब ठौर ।
नैनन तें वह रूप रसीलो टरत न इक पल और ।
सुमिरन वही ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम ।
दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम ।
सब ब्रज बरजो परिजन खीझौ हमरे तो अति प्रान ।
हरीचन्द हम मगन प्रेम-रस सूझत नाहिं न आन ।। 3 ।।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘ब्रज-माधुरी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि भारतेन्दु हरिशचन्द्र है।
प्रसंग– इस पद्यांश में कवि ने सखी के मन की दुविधा तथा कृष्ण के प्रति प्रेमभाव का वर्णन किया है।
व्याख्या – नायिका अपनी सखी से मन की दुविधाओं का उल्लेख करती हुई कहती है कि सखी में क्या करूँ, कहाँ जाउँ, कृष्ण के मोहिनी मूरत को देखे बिना मेरे नैन नहीं भरते हैं। बैठते उठते, सोते-जागते, चलते-फिरते सब जगह उनका रूप देखने को तरसता है। एक पल के लिए भी क्षेत्र उसके ध्यान से हटता नहीं है। हर समय मन में कृष्ण का ही नाम है। कृष्ण के बिना मेरी दूसरी कोई गति नही है। सभी ब्रजवासी तथा परिवार के लोग मना करते हैं, खीझते हैं। कवि कहते हैं कि कृष्ण के प्रेम के अलावा उन्हें और कुछ नही सूझता है।
अभ्यास
प्रश्न 1. चितै चितै चारों ओर इस छंद में कौन बार-बार चौककर इधर-उधर देख रहा है और क्यों ?
उत्तर- चितै चितै चारों ओर इस छंद में बालक कृष्ण बार-बार चौककर इधर उधर देख रहे हैं क्योंकि उसे पत्तों के खड़कने की आवाज सुनाई देती है।
प्रश्न 2. कमल में भौरा कैसे बन्द हो गया ?
उत्तर-भौरा कमल कोश में बैठकर पराग खा रहा था, तभी सूर्यास्त हो गया और कमल के दल सिमट गये। इस प्रकार भौरा कमल में बन्द हो गया।
प्रश्न 3. कमल कोष मे बन्द भरा मन-ही-मन क्या सोच रहा था?
उत्तर-कमल में बन्द भरा मन-ही-मन सोच रहा था-कल प्रातः सूर्योदय होने पर जब कमल पुनः खिलेगा तब मैं बहुत-सा पराग लेकर अपने घर को चला जाऊँगा।
प्रश्न 4. औरे की इच्छाओं का अन्त कैसे हुआ ?
उत्तर-कमल में बन्द और को कमल सहित एक हाथी ने चबा लिया। इस प्रकार भरे के साथ ही उसकी इच्छाओं का अन्त हो गया।
प्रश्न 5. जैन अघाने का क्या आशय है ?
उत्तर-जैन अघाने का अर्थ आँखों की तृप्त होना।
प्रश्न 6. नायिका अपनी सखी से मन की किन दुविधाओं का उल्लेख करती है ?
उत्तर- नायिका अपनी सखी से मन की दुविधाओं का उल्लेख करती हुई कहती है कि सखी मैं क्या करूँ कहा जाऊँ कृष्ण को देखे बिना मेरे नैन नहीं होते बैठते, उठते जागते सब समय चलते-फिरते सब जगह उनका रूप देखने को तरसता है। हर समय मन में उनका मुख्य और नाम रहता है। घनश्याम के बिना मेरी दूसरी कोई गति नहीं।
प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए- सुमिरन वही ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम। दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम।
उत्तर-भाव स्पष्ट-मेरे मन में मेरे ध्यान में सिर्फ कृष्ण का ही नाम है। कृष्ण के दिना मेरी दूसरी कोई गति नहीं है।
20 MCQ उत्तर सहित:
1. ‘‘घनाक्षरी’ शैली की कविता में कितने चरण होते हैं?
a) 4
b) 5
c) 6
d) 7
उत्तर: a) 4
2. पहली कविता में श्रीकृष्ण किसके बीच अपनी लीलाएँ कर रहे हैं?
a) देवताओं के
b) ग्वाल-बाल और ग्वालिनियों के
c) अपने परिवार के
d) अर्जुन के साथ
उत्तर: b) ग्वाल-बाल और ग्वालिनियों के
3. श्रीकृष्ण की एक पाँय कहाँ है?
a) भूमि पर
b) टेबल पर
c) मित्र के कंधे पर
d) तालाब में
उत्तर: c) मित्र के कंधे पर
4. दूसरी कविता में भौंरा किसमें बंद हो गया?
a) कमल में
b) पेड़ पर
c) घास में
d) हाथी के पास
उत्तर: a) कमल में
5. भौंरे का क्या विचार था?
a) वह तुरंत उड़ जाएगा
b) सुबह होने पर बाहर जाएगा
c) कमल को खा लेगा
d) सो जाएगा
उत्तर: b) सुबह होने पर बाहर जाएगा
6. भौंरे को कौन चबा गया?
a) गधा
b) हाथी
c) गाय
d) पक्षी
उत्तर: b) हाथी
7. तीसरी कविता में गोपियाँ किसके प्रति प्रेम-व्याकुल हैं?
a) अर्जुन
b) श्रीकृष्ण
c) राम
d) नारद
उत्तर: b) श्रीकृष्ण
8. गोपियों के प्रेम का मुख्य भाव क्या है?
a) भक्ति और समर्पण
b) ईर्ष्या
c) क्रोध
d) उदासीनता
उत्तर: a) भक्ति और समर्पण
9. “सखी हम काह करैं” पंक्ति में सखियाँ किससे परेशान हैं?
a) अन्य सखियों से
b) श्रीकृष्ण के बिना
c) बड़ों की डांट से
d) वन के जानवरों से
उत्तर: b) श्रीकृष्ण के बिना
10. ‘प्रमाद’ शब्द का अर्थ है?
a) आलस्य
b) प्रसन्नता
c) उत्सव
d) दुःख
उत्तर: a) आलस्य
11. कविता में ‘दिवाकर’ किसका प्रतीक है?
a) चंद्रमा का
b) सूर्य का
c) आकाश का
d) जल का
उत्तर: b) सूर्य का
12. “बैठत उठत सयन सोवत” पंक्ति किसकी स्थिति दर्शाती है?
a) गोपियों की
b) ग्वाल-बालों की
c) पद्माकर की
d) भ्रमर की
उत्तर: a) गोपियों की
13. ‘सुमिरन’ का क्या अर्थ है?
a) ध्यान
b) अध्ययन
c) खेल
d) मित्रता
उत्तर: a) ध्यान
14. पहली कविता के रचनाकार कौन हैं?
a) भारतेंदु
b) बेनी
c) पद्माकर
d) तुलसीदास
उत्तर: c) पद्माकर
15. दूसरी कविता में भौंरे का क्या अंत हुआ?
a) वह कमल से बाहर निकला
b) वह हाथी द्वारा चबाया गया
c) वह उड़ गया
d) वह नदी में गिर गया
उत्तर: b) वह हाथी द्वारा चबाया गया
16. श्रीकृष्ण दधि किससे खाते हैं?
a) सखाओं से छीनकर
b) ग्वालिनियों से मांगकर
c) घर से चुराकर
d) पशुओं को खिलाकर
उत्तर: c) घर से चुराकर
17. “सुरभि मनुष्य मात्र में भरे विवेक ज्ञान की” पंक्ति में ‘सुरभि’ का अर्थ है?
a) गंध
b) सुंदरता
c) प्रेम
d) प्रकाश
उत्तर: a) गंध
18. ‘पंकज’ का पर्यायवाची है?
a) सूर्य
b) कमल
c) भ्रमर
d) नदी
उत्तर: b) कमल
19. कविताओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) प्रेम, भक्ति, और जीवन की नश्वरता का बोध कराना
b) युद्ध का वर्णन
c) सामाजिक समस्याओं को दर्शाना
d) देवताओं की पूजा
उत्तर: a) प्रेम, भक्ति, और जीवन की नश्वरता का बोध कराना
20. “सखी हम काह करें कित जायें“ कविता के रचनाकार कौन हैं?
a) तुलसीदास
b) भारतेंदु
c) पद्माकर
d) बेनी
उत्तर: b) भारतेंदु