भोरमदेव: कक्षा 7 संस्कृत

भोरमदेव: कक्षा 7 संस्कृत

छत्तीसगढक्षेत्रस्य अनेकानि प्राचीनमन्दिराणि ऐतिहासिकस्थलानि अद्यापि छत्तीसगढस्य समृद्धिं गौरवशालीपरम्परां स्मारयन्ति। एवमेव एकं स्थानम् अस्ति, सः भोरमदेवः। कवर्धा जिलान्तर्गतं १६ (षोडश्) कि.मी. दूरे सतपुड़ा-विन्ध्याचल-पर्वत-श्रेणीनां मध्ये प्रतिष्ठितः। अस्य मन्दिरस्य वैशिष्ट्येन अयं छत्तीसगढस्य खजुराहो इति अभिधीयते। भोरमदेवस्य मन्दिरं न केवलं छत्तीसगढप्रदेशस्य अपितु सम्पूर्णदेशे ऐतिहासिक पुरातात्विक धार्मिकदृष्टया महत्वपूर्ण स्थलम् अस्ति। वस्तुतः जनाः भोरमदेवं गोंडजातीनाम् आराध्यदेवः इति मन्यन्ते। अस्मात् कारणात् अस्य मन्दिरस्य नाम भोरमदेवः जातम्।

इतिहासकारसरअलेक्जेण्डरकनिंधममहोदयस्य अनुसारेण एतत् मन्दिरं विष्णुमन्दिरम् आसीत्। कालान्तरे गोंडशासकै: पूर्वस्थापितलक्ष्मीनारायणस्य प्रतिमाम् अपसार्य शिवलिङ्कं स्थापितम्। मंदिरे उत्कीर्णलेखैः वास्तुकलाभिश्च परिलक्ष्यते, यत् मन्दिरम् इदम् एकादशे खीस्ताब्दे निर्मितम्।

नागरशैल्यां पूर्वाभिमुखमुख्यप्रवेशद्वारम् अस्ति। अस्मिन् मन्दिरे द्वारत्रयमस्ति। भोरमदेवस्य मन्दिरस्य निर्माणे खजुराहो उडीसाया: कोणार्कस्थित सूर्यमन्दिरस्य वास्तुशिल्पस्य अनुकृतिः परिलक्ष्यते। मन्दिरस्य गर्भगृहे गरुडस्थितभगवतः विष्णोः प्रतिमा, पञ्चमुखीनागः, नृत्यतः गणपतेः, अष्टभुजप्रतिमाश्च सन्ति। गर्भगृहे मुख्यतः शिवलिङ्कमेव मण्डितमस्ति। मन्दिरं निकषा उमामहेश्वर-कालभैरव-द्विभुज-सूर्य प्रतिमा: शिव प्रतिमाश्च सन्ति। मन्दिरस्य उत्तरदिशि एक: विशालः सरोवरोऽपि अस्ति। भोरमदेवस्य समीपे अन्येषु दर्शनीयस्थलेषु चौरग्रामस्य निकटे आयताकारं पाषाणनिर्मितं “मण्डलामहलम्” अस्ति।

चौरग्रामस्य समीपे इष्टिकापाषाणेन निर्मितम् एकं मन्दिरं “छेरकी महलम्” इति नाम्ना ख्यातम्। अस्य मन्दिरस्य समीपे नैकापि अजास्ति तथापि मन्दिरस्य गर्भगृहे अजायाः शरीरेण निसृतं गन्धं जना: अनुभवन्ति। एतदेव अस्य मन्दिरस्य वैशिष्टयम् अस्ति।

पावसवसन्तयो: काले हरीतिमाच्छादितपर्वतश्रृंखलानाम् अ स्थितभोरमदेवस्य मन्दिरमस्ति। अस्य मोहकदृश्यानि वीक्ष्य जना: आश्चर्यार्णवे निमज्जन्ति। प्रतिवर्षे चैत्रत्रयोदशम्यां तिथौ अत्र दिवसत्रयस्य पारम्परिकमेलापक: आयोज्यते। पर्यटनविकासस्य दृष्ट्या अयं मेलापक: शासनेन “भोरमदेव महोत्सवः” इति नाम्ना समायोज्यते। “धन्यो भोरमदेव: शिवमस्तु”

हिंदी अनुवाद

छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक स्थल आज भी छत्तीसगढ़ की समृद्धि और गौरवशाली परंपरा की याद दिलाते हैं। इन्हीं में से एक स्थान है भोरमदेव। यह कवर्धा जिले के अंतर्गत सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत-श्रेणियों के बीच स्थित है, जो जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। अपनी विशेषताओं के कारण इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। भोरमदेव का मंदिर केवल छत्तीसगढ़ राज्य के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश में ऐतिहासिक, पुरातात्विक, और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थल है।

वास्तव में, भोरमदेव को गोंड जाति के आराध्य देव के रूप में पूजा जाता है। इस कारण से इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।

इतिहासकार सर एलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार, यह मंदिर मूल रूप से विष्णु मंदिर था। बाद में, गोंड शासकों ने पहले से स्थापित लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा को हटाकर शिवलिंग की स्थापना की। मंदिर के शिलालेखों और वास्तुकला से स्पष्ट होता है कि यह मंदिर 11वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था।

मंदिर नागर शैली में बना हुआ है और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर में तीन द्वार हैं। भोरमदेव के इस मंदिर की वास्तुकला में खजुराहो और उड़ीसा के कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर के निर्माण की झलक देखी जा सकती है।

मंदिर के गर्भगृह में गरुड़ पर स्थित भगवान विष्णु की प्रतिमा, पांच मुख वाले नाग की मूर्ति, नृत्य करते गणपति, अष्टभुजी प्रतिमाएं आदि मौजूद हैं। गर्भगृह में मुख्य रूप से शिवलिंग को प्रतिष्ठित किया गया है।

मंदिर के पास उमामहेश्वर, कालभैरव, द्विभुजी सूर्य और शिव की अन्य मूर्तियां भी देखी जा सकती हैं। मंदिर के उत्तर दिशा में एक विशाल सरोवर भी स्थित है।

भोरमदेव के पास के दर्शनीय स्थलों में चौर गांव के निकट स्थित आयताकार पत्थर से बना “मंडला महल” प्रसिद्ध है। इसी प्रकार चौर गांव के पास ईंट और पत्थर से बना एक मंदिर “छेरकी महल” के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके गर्भगृह में भले ही कोई बकरी (अजा) न हो, लेकिन वहां से बकरी के शरीर से निकलने वाली गंध का अनुभव किया जा सकता है। यही इस मंदिर की विशेषता है।

बरसात और वसंत ऋतु के समय हरियाली से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित भोरमदेव का मंदिर अद्भुत दृश्यों के कारण लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है।

प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि को यहां तीन दिवसीय पारंपरिक मेले का आयोजन होता है। पर्यटन विकास के उद्देश्य से इस मेले को “भोरमदेव महोत्सव” नाम दिया गया है और इसे राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है।
“धन्य भोरमदेव! शिव की कृपा सदा बनी रहे।”

उत्तर 1: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (संस्कृत में)

  1. छत्तीसगढस्य खजुराहो किम् अस्ति?
    छत्तीसगढस्य खजुराहो भोरमदेवः अस्ति।
  2. कस्य प्रतिमाम् अपसार्य शिवलिङ्कं प्रतिष्ठितम्?
    लक्ष्मीनारायणस्य प्रतिमाम् अपसार्य शिवलिङ्कं प्रतिष्ठितम्।
  3. कस्यां शैल्यां पूर्वाभिमुखमुख्यप्रवेशद्वारम् अस्ति?
    नागरशैल्यां पूर्वाभिमुखमुख्यप्रवेशद्वारम् अस्ति।
  4. “मण्डला महलम्” कुत्र निर्मितम् अस्ति?
    “मण्डला महलम्” चौरग्रामस्य समीपे निर्मितम् अस्ति।
  5. इष्टिकापाषाणनिर्मितं मन्दिरं केन नाम्ना ख्यातम्?
    इष्टिकापाषाणनिर्मितं मन्दिरं “छेरकी महलम्” इति नाम्ना ख्यातम्।
  6. भोरमदेवः मेलापकः कस्यां तिथौ आयोज्यते?
    भोरमदेवः मेलापकः चैत्रत्रयोदश्यां तिथौ आयोज्यते।

उत्तर 2: युग्म कीजिए (Match the following)

  1. भोरमदेवः – छत्तीसगढस्य खजुराहो।
  2. नागरशैल्याम् – प्रवेशद्वारम्।
  3. गर्भगृहे – शिवलिङ्गम्।
  4. विशालसरोवरः – उत्तरदिशि।
  5. अजा – छेरकी महलम्।
  6. आयताकारं पाषाणनिर्मितम् – मण्डलामहलम्।

उत्तर 3: वाक्यांशानां संस्कृत अनुवादः

  1. यहाँ अनेक मन्दिर हैं।
    अत्र अनेकानि मन्दिराणि सन्ति।
  2. इस मंदिर में तीन द्वार हैं।
    अस्मिन् मन्दिरे त्रयो द्वाराणि सन्ति।
  3. गर्भगृह में शिवलिङ्ग है।
    गर्भगृहे शिवलिङ्गम् अस्ति।
  4. चैत्रमास में मेला लगता है।
    चैत्रमासे मेला आयोज्यते।