अनदान के परब छेरछेरा छत्तीसगढ़ी कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 13

अनदान के परब छेरछेरा छत्तीसगढ़ी कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 13

छत्तीसगढ़ म छेरछेरा ल पूस महिना के अँजोरी पाख म पुन्नी के दिन परब बरोबर
मनाय जाथे। किसान अपन फसल ल मींज-कूट के कोठी-ढाबा म धर लेथें। इन्द्रदेव के किरपा ले जब खूब बरसा होथे त अच्छा फसल घलो होथे, तहाँ उँखर हिरदे झूम उठथे। छत्तीसगढ़ म ये दिन जम्मो लइका-सियान छेरछेरा माँगे बर जाथें अउ गीत गाथें-“छेरिक छेरा, छेर मरकनिन छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा।”
दफड़ा, गुदुम अउ मोहरी के धुन म मगन हो के सब नाचथें। जब बिदागरी म देरी
होवत देखथें त फेर दूसर गीत गाथें –
“तारा रे तारा, अंगरेजी तारा, जल्दी-जल्दी बिदा करहू, जाबो दूसर पारा।”
“अरन-बरन कोदो दरन, जमे देबे तमे टरन।”
हमर छत्तीसगढ़ म एक ठन ये रिवाज घलो हवय। किसान मन अपन कोठार-बियारा म धान के मिंजई के आखरी दिन, उहाँ जतका मनखे रहिथें, सब झन ल धान निछावर करथें।
जब किसान के धान के मिंजई छेवर हो जाथे, तभे ये समिलहा छेवर ह “छेरछेरा
पुन्नी” के परब के रूप म मनाय जाथे।
छेरछेरा परब के एक ठन लोककथा हवय। बहुत समे पहिली बड़हर मन अपन धान-कोदो ल मींज-कूट के कोठी-ढोली म भर लेवँय, अउ बनिहार मन अन्न के दाना बर तरसँय।
पोट-पोट भूख मरँय।
अपन कमइया बेटा मन ल भूखे मरत धरती दाई देखे नइ सकिस। वो ह घोर अंकाल
पार दिस। धरती बंजर होगे। एक ठन हरियर काँदी नइ जामिस। अन अउ पानी बर हाहाकार मचगे। ये बिपत ले बाँचे बर बड़हर मन धरती दाई के पूजा-पाठ करे लागिन।
सात दिन ले पूजा-पाठ करिन। पूजा-पाठ होइस, तेखर पाछू धरती दाई परगट होगे। सब
झन जय-जयकार करिन। त धरती दाई ह बड़हर मन ल कहिस-“सब झन अपन-अपन उपज के ठोमा-खोंची हिस्सा बनिहार ल दान करहू। कोनो ल छोटे अउ कोनो ल बड़े झन समझहू। कोनो गरीब होय, चाहे बड़हर, धान-कोदो के दान लेहू-देहू तभे अंकाल सिराही।”
देबी के बात ल सब झन हाँसी-खुशी ले मान लेइन। तब धरती दाई ह अन, पानी,
साग-भाजी कंद-मूल, फल-फूल अउ जरी-बूटी के बरसा कर दिस। लोगन के मन म खुसियाली छागे। आदिशक्ति माता ह शाकंभरी देवी के रूप म परगट होइस। ये दिन ल शाकंभरी जयंती के रूप म घलो मनाय जाथे।
छेरछेरा के दिन जम्मो मनखे जात-धरम, ऊँच-नीच अउ छोटे-बड़े के भेदभाव ल
भुला के अन के दान माँगे बर जाथें। धान-कोदो के दान ल कोनो बर्तन म नइ करे जाय, टुकना, चरिहा नइ त सुपा-टोपली म देथें।
छत्तीसगढ़ म छेरछेरा के दिन हाँसी-खुशी के नंदिया-नरवा बोहाथे। कोनो बड़े न
कोनो छोटे। सब झन बरोबर हवँय। आज ले सबो धान-कोदो के दान लेवत हवँय अउ देवत हवँय।
छेरछेरा परब हम सब झन ल जुरमिल के रहना सिखाथे। मिल-बाँट के खाये बर
कहिथे। ये ह हमर छत्तीसगढ़ के जम्मो लइका-सियान बर बरोबरी के तिहार आय।
छेरछेरा के दिन धान या रूपया-पैसा के दान करे जाथे।

छेरछेरा परब से संबंधित प्रश्नों के उत्तर

क. छेरछेरा म कोन-कोन गीत गाय जाथे?
छेरछेरा के परब म लइका-सियान “छेरिक छेरा, छेर मरकनिन छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा” और “तारा रे तारा, अंगरेजी तारा, जल्दी-जल्दी बिदा करहू, जाबो दूसर पारा” जइसन गीत गाथें।

ख. काखर धुन म सब बिधुन हो के नाचथें?
दफड़ा, गुदुम अउ मोहरी के धुन म सब बिधुन हो के नाचथें।

ग. अपन कमइया बेटा मन ल भूख मरत कोन देखे नइ सकिस?
धरती दाई अपन कमइया बेटा मन ल भूख मरत नइ देख सकिस।

घ. बड़हर मन फसल ल मींज-कूट के कहाँ धर देवँय?
बड़हर मन फसल ल मींज-कूट के कोठी-ढोली म धर देवँय।

ङ. छेरछेरा परब कोन महिना म मनाय जाथे?
छेरछेरा परब पूस महिना के अँजोरी पाख म पुन्नी के दिन मनाय जाथे।

च. काखर किरपा ले खूब बरसा होथे?
इन्द्रदेव के किरपा ले खूब बरसा होथे।