जन्तु जगत के विशिष्ट लक्षण (Salient Features of Animal Kingdom)

Salient Features of Animal Kingdom

जन्तु जगत बहुकोशिकीय, विषमपोषी (Heterotrophic) यूकैरियोटिक जीवों का जगत है। इस समूह के अन्तर्गत लगभग 12,00,000 जन्तुओं को शामिल किया जा चुका है और आज भी नई-नई प्रजातियाँ प्राप्त हो रही हैं। इस जगत के जीवों में संख्यात्मक विविधता के साथ उनकी संरचना एवं कार्यों में भी अत्यधिक विविधता होती है।

इस जगत के अन्तर्गत आने वाले सभी बहुकोशिकीय जीवों को मेटाजोअन (Metazoans) कहते हैं। इनकी सभी कोशिकाएँ जीवन की अधिकांश आवश्यक प्रक्रियाओं को संचालित करती हैं, परन्तु इनका शरीर बहुकोशिकीय होता है। अतः ये सभी जैविक प्रक्रियाओं को स्वयं संचालित नहीं कर पाती हैं।

शरीर में उपस्थित कोशिकायें ऊतक तंत्र बनाती हैं तथा ऊतक तंत्रों से अंग-तंत्र बनता है। ये अंग विशेष कार्यों को करते हैं। इस प्रकार जन्तुओं के शरीर में प्रकार्यात्मक श्रम विभाजन (division of labour) पाया जाता है।

जन्तु जगत के विशिष्ट लक्षण (Salient Features of Animal Kingdom)

जन्तुओं के प्रमुख अभिलक्षण (Important Characters of Animals):

जन्तु-जगत (Animalia) में आने वाले जीव कई विशेषताओं के आधार पर अन्य जगतों से भिन्न होते हैं। उनके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं:

  1. बहुकोशिकीय और यूकैरियोटिक:
    • सभी जन्तु बहुकोशिकीय (Multicellular) और यूकैरियोटिक (Eukaryotic) होते हैं।
    • इनमें कोशिका भित्ति (Cell wall) अनुपस्थित होती है।
  2. प्रकाश-संश्लेषी वर्णक का अभाव:
    • इनमें क्लोरोफिल और अन्य प्रकाश-संश्लेषी वर्णक नहीं पाए जाते।
    • इस कारण ये सभी जीव विषमपोषी (Heterotrophic) होते हैं और भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं।
  3. सीमित वृद्धि:
    • जन्तुओं में सभी अंगों में समवेत रूप से वृद्धि होती है।
    • वृद्धि सीमित (Limited) होती है और जीवन भर जारी नहीं रहती।
  4. गतिशीलता और प्रचलन:
    • अधिकांश जन्तु सक्रिय रूप से गतिशील (Motile) होते हैं।
    • ये अपने अंगों का उपयोग करके एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते हैं।
  5. उत्तेजनशीलता और तंत्रिका तंत्र:
    • जन्तुओं में उत्तेजनाओं को महसूस करने की क्षमता होती है।
    • पोरिफेरा (Porifera) को छोड़कर, सभी जन्तुओं में तंत्रिका तंत्र (Nervous system) पाया जाता है।
  6. प्रजनन तंत्र और उत्सर्जन तंत्र:
    • जन्तु लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) करते हैं।
    • इनमें उत्सर्जन क्रियाओं के लिए एक विशेष उत्सर्जन तंत्र (Excretory system) मौजूद होता है।
  7. प्राणीसम पोषण (Holozoic Nutrition):
    • जन्तु अपने भोजन को ठोस रूप में निगलकर पचाते हैं।
    • इनमें पोषण का तरीका प्राणीसम (Holozoic) होता है।
  8. ग्लाइकोजेन के रूप में भोजन संग्रह:
    • जन्तु अपने भोज्य पदार्थ को ग्लाइकोजेन (Glycogen) के रूप में संग्रहित करते हैं।
    • यह उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होता है।

सारांश:
इन विशेषताओं के आधार पर जन्तु-जगत अन्य जीव-जगतों से अलग है। इनका बहुकोशिकीय होना, कोशिका भित्ति का अभाव, गतिशीलता, और तंत्रिका तंत्र की उपस्थिति इन्हें अद्वितीय बनाती है।

भोजन प्राप्त करने की विधि

जन्तुओं में विषमपोषी पोषण पाया जाता है। भोजन प्राप्त करने की विधियों एवं भोजन की प्रकृति के आधार पर जन्तुओं को निम्न समूहों में बाँटा गया है-

1. शाकाहारी (Herbivorous) – ये जन्तु पादपों एवं उनके उत्पादों का भक्षण करते हैं। उदाहरण- खरगोश, बकरी, गाय, हिरण, घोड़ा।

उदाहरण- कॉकरोच, मानव।

2. मांसाहारी (Carnivorous) ये जन्तु अन्य जन्तुओं का मांस खाते हैं। उदाहरण- शेर, बाघ, आदि।

3. सर्वांहारी (Omnivorous ) — इस प्रकार के जन्तु पादप एवं जन्तु दोनों प्रकार का भोजन ग्रहण करते हैं।

4. रक्ताहारी (Sanguivorous) – ये जन्तु अन्य जंतुओं का रुधिर चूसते हैं। उदाहरण-मच्छर, खटमल, जोंक आदि।