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आदिकालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ –

आदिकालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ

हिन्दी साहित्य के आदिकाल (1000-1400 ई.) को प्राचीन साहित्यिक धारा का आरंभिक चरण माना जाता है। यह काल साहित्यिक प्रवृत्तियों और काव्य विधाओं के विकास का युग था। इस युग की साहित्यिक रचनाओं में वीरगाथाओं, धार्मिक काव्य, और लोक साहित्य की प्रमुखता रही। रामचन्द्र शुक्ल ने इस काल को वीरगाथा काल की संज्ञा दी है। आदिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं:


1. वीरगाथात्मक काव्य रचनाएँ

  • इस काल की साहित्यिक रचनाएँ मुख्यतः वीर रस पर आधारित थीं।
  • कवियों ने अपने आश्रयदाताओं (राजाओं) के शौर्य, पराक्रम, और युद्ध कौशल का अतिरंजित वर्णन किया।
  • युद्धों का कारण प्रायः नारी सौंदर्य या साम्राज्य विस्तार होता था।
  • प्रमुख रचनाएँ:
    • पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई)
    • खुमान रासो
    • हम्मीर रासो

2. युद्धों का सजीव वर्णन

  • आदिकालीन साहित्य में युद्धों का सजीव और विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • युद्ध के समय कवियों ने वीर रस और ओजस्वी शब्दावली से सैनिकों में उत्साह और जोश भरा।
  • युद्धों के नैतिक पक्ष पर कम ध्यान था, लेकिन वीरता को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया।

3. संकुचित राष्ट्रीयता

  • कवियों का दृष्टिकोण संकीर्ण और आश्रयदाता-प्रधान था।
  • एक राजा या सामंत के प्रति निष्ठा को राष्ट्रभक्ति का रूप दिया गया।
  • उदाहरण: जयचंद जैसे देशद्रोही राजा की भी प्रशंसा की गई।
  • प्रमुख ग्रंथ:
    • जयचंद प्रकाश (भट्ट केदार)
    • जयमयंक जस चंद्रिका (मधुकर कवि)

4. लोकभाषा में साहित्यिक अभिव्यक्ति

  • इस काल में अपभ्रंश, अवहट्ठ, और देशज भाषाओं का प्रयोग हुआ।
  • लोकभाषा में धार्मिक साहित्य और उपदेशात्मक काव्य रचे गए।
  • प्रमुख धाराएँ:
    • सिद्ध साहित्य
    • नाथ साहित्य
    • जैन साहित्य
  • यह साहित्य कर्मकांड, आडंबर, और ब्राह्मणवादी वर्चस्व का विरोध करता है।
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “यह साहित्य सहज जीवन, आंतरिक शुचिता, और सच्चाई पर आधारित था।”

5. वीर और श्रृंगार रस का समन्वय

  • इस काल की रचनाओं में वीर रस और श्रृंगार रस का अद्भुत संयोजन मिलता है।
  • युद्धों के साथ नारी सौंदर्य और प्रेम का चित्रण हुआ।
  • उदाहरण:
    • पृथ्वीराज रासो में संयोग श्रृंगार।
    • बीसलदेव रासो में विप्रलंभ श्रृंगार।
    • विद्यापति पद्यावली में नारी सौंदर्य की छवि।

6. कल्पना की प्रधानता, ऐतिहासिकता गौण

  • कवियों का मुख्य उद्देश्य अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करना था।
  • ऐतिहासिक घटनाओं को कल्पना और अतिशयोक्ति के साथ प्रस्तुत किया गया।
  • कवियों ने वास्तविकता से दूर जाकर कल्पनालोक में राजा और उनके शौर्य को प्रस्तुत किया।

7. प्रबंध काव्य और मुक्तक गीत

  • इस काल के साहित्य को दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है:
    • प्रबंध काव्य: ऐतिहासिक गाथाएँ, जैसे पृथ्वीराज रासो
    • मुक्तक गीत: भावप्रधान रचनाएँ, जैसे बीसलदेव रासो

8. डिंगल भाषा का प्रयोग

  • राजस्थानी डिंगल भाषा का इस काल के साहित्य में विशेष स्थान था।
  • वीरगाथा साहित्य विशेष रूप से डिंगल भाषा में लिखा गया।
  • प्रमुख छंद: दोहा, सोरठा, छप्पय, अरिल्ल, और उल्लाला।

9. छंदों और शैली का विकास

  • इस काल में छंदों का अत्यधिक प्रयोग हुआ।
    • दोहा और सोरठा प्रमुख छंद थे।
    • छप्पय और अरिल्ल का भी उपयोग हुआ।
  • गेयता और लोकसंगीत में रुचि ने साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया।

निष्कर्ष

आदिकालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ वीरता, आडंबर विरोध, और लोकचेतना के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस काल का साहित्य राजाश्रित था, जिसमें ऐतिहासिक घटनाओं के साथ कल्पना और अतिशयोक्ति का मिश्रण था। वीरगाथा शैली ने उस समय की साहित्यिक परंपरा को दिशा दी, और लोकभाषा में रचित धार्मिक व आध्यात्मिक साहित्य ने समाज को नई चेतना प्रदान की।