मैया मोरी, मैं नहिं माखन खायो ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।।
चार पहर बंसीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ।
मैं बालक बहियन कौ छोटौ, छींको केहि विधि पायो।।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ।
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतियायो।।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ।
यह अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।
-सूरदास
सन्दर्भ– प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक भारती के पाठ ‘काव्य-माधुरी’ नामक पाठ से ली गई हैं। इसके कवि श्री सूरदास जी हैं।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में श्रीकृष्ण की बाल सुलभ प्रवृत्ति का वर्णन कवि ने किया है।
व्याख्या – हे माँ ! मैंने माखन नहीं खाया है। सुबह होते ही तो तुमने मुझे वन में भेज दिया था। जंगल में जाकर मैं गायों को चरा रहा था। मैं कैसे माखन खा सकता हूँ। चार पहर तक मैं बरगद के पेड़ पर बैठकर बाँसुरी बजा रहा था और शाम होते ही घर आया हूँ। मैं छोटा-सा बालक हूँ। मेरे हाथ इतने छोटे हैं कि छींके तक भी नहीं पहुँच पाते, फिर • भला मैं कैसे माखन निकाल सकता हूँ। मेरे साथ जो मेरे मित्र हैं वे सब मेरे शत्रु हैं, उन सबने मिलकर जबरदस्ती मेरे मुख पर माखन लगा दिया। हे माँ! तुम तो बहुत भोली हो जो उनकी बातों को सच मान रही हो। उन्होंने तुम्हारे मन में मेरे खिलाफ बहुत-सी बातें भर दी हैं और तुम मुझ पर शंका करती हो। तुम मुझे पराया समझती हो। यह अपनी लाठी और कम्बल लो तुम सबने मिलकर मुझे बहुत ही तंग किया है। सूरदास जी कहते हैं कि कृष्ण की भोली बातें सुनकर माता यशोदा मुस्करा उठीं और कृष्ण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया।
बैठी सगुन मनावत माता ।
कब अइहैं मेरे लाल कुसल घर, कहहु काग फुरि बाता ।।
दूध भात की दोनी देही, सोने चौध महौ।
जब सिय सहित बिलोकि नयन भरि, राम-लखन उर लैहो।
अवधि समीप जानि जननी जिय, अति आतुर अकुलानी।
गनक बुलाई पाँव परि पूछति, प्रेम मगन मृदु बानी।।
तेहि अवसर कोउ भरत निकट ते, समाचार लै आयो।
प्रभु आगमन सुनत तुलसी मनो, मीन मरत जल पायो।।
तुलसी
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक भारती के पाठ ‘काव्य माधुरी’ नामक पाठ से ली गई है। इसके कवि श्री तुलसीदास जी हैं।
प्रसंग-माता कौशल्या अपने पुत्र की सकुशल वापसी की राह देख रही हैं और शगुन मना रही हैं।
व्याख्या– माता बैठी-बैठी शगुन मना रही हैं कि मेरा पुत्र सकुशल घर कब आयेगा ? अरे कौआ तू बता मैं तुझे दूध-भात से भरी दोनी दूँगी, तेरी चोंच को सोने से मढ़वा दूँगी। सीता-राम को अपनी आँखों से देखकर राम-लक्ष्मण को हृदय से लगा लूँगी। आने का समय पास आने पर माता का हृदय व्याकुल हो जाता है। गणों को बुलाकर उनके पैर छूकर पूछती हैं, प्रेम से भरी मीठी वाणी बोलती हैं और उस समय कोई भरत के पास का समाचार लाकर देता है। प्रभु का आगमन सुनकर तुलसीदास जी मानते हैं कि मरती हुई मछली को मानों जल मिल गया हो।
मानुष जौ हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन
पशु हो तो कहा बस मेरौ, चरों नित नंद की धेनु मझारन।
पाहन हों तो वही गिरि को, जो धय कर छत्र पुरन्दर कारन।
जो खग हाँ तो बसेरौ करौ, नित कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन।।
रसखान
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक भारती के ‘काव्य-माधुरी’ नामक पाठ से ली गई है। इसके कवि श्री रसखान जी
प्रसंग – कवि ने गोकुल की धरती पर ही फिर से जन्म लेने की इच्छा प्रकट की है।
व्याख्या-रसखान कवि कहते हैं कि यदि मनुष्य का जन्म लूँ तो ब्रज के गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच रहूँ। यदि पशु का रूप लू तो नंदबाबा की गायों के बीच में च। यदि पत्थर का रूप लूँ तो उस पहाड़ पर यूँ जिसे भगवान ने छत्र की तरह उठाया था। यदि पक्षी बनूँ तो यमुना के किनारे कदम्ब की डाल पर बसेरा करूँ।
हमार का करै हाँसी लोग।
मन मोर लागे है सतगुरु से, भला होय के खोट ।।
जब से सतगुरु ज्ञान दये हैं, चले म केहू के जोर।।
मात रिसाई, पिता रिसाई, रिसाय बटोहिया लोग ।।
ज्ञान खग तिरगुन को मारे, पाँच पचीसो चोर।।
अब तौ मोहि ऐसन बन आये, सतगुरु रचे संजोग ।।
आवत साथ बहुत सुख लागे, जात बियापे रोग ।।
धरमदास बिन कर जोरों, सुनौ हो बंदी छोर
जाके पद त्रय लोक से न्यारा, सो साहब कस होय ।।
धरमदास
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक भारती के पाठ ‘काव्य-माधुरी’ नामक पाठ से ली गई है। इसके कवि श्री धरमदास जी है।
प्रसंग– इसमें कवि ने जग की माया और मोह के बारे में वर्णन किया गया है।
व्याख्या – हमारे ऊपर हँसकर लोगों ने क्या कर डाला। मेरा मन तो सतगुरु में लगा है, भला इसमें क्या शंका है। जब से सतगुरु ने ज्ञान दिया है, किसी का जोर नही चलता है। माता नाराज पिता नाराज और राह चलने वाले भी नाराज है। ज्ञान के खड्ग के त्रिगुण से मारते ही पाँच पदीसों चोर मारे गये। अब तो सतगुरु ने ऐसा संयोग रखा है कि आते समय बहुत सुख लगता है, जाते समय रोगी हो जाते हैं। धरमदास हाथ जोड़कर सभी से विनती करते हैं कि जिसके पैर तीन लोकों से न्यारे हैं, वो साहब कैसा होगा ?
अभ्यास
पाठ से
प्रश्न 1. माखन न खाने की सफाई कृष्ण किस प्रकार देते हैं ?
उत्तर- कृष्ण माखन न खाने की सफाई देते हुए कहते हैं कि मैं तो सबेरे से वन में गाय चरा रहा था, मेरे हाथ छोटे हैं, मैं माखन कैसे पा सकता हूँ। ग्वाल-बाल सब मेरे दुश्मन हैं जिन्होंने मेरे मुँह पर जबरदस्ती माखन लगा दिया है और तुम उनका कहना सच मान लेती हो।
प्रश्न 2. अपने बेटे कृष्ण की किन बातों को सुनकर माता यशोदा को हँसी आ गई ?
उत्तर-कृष्ण ने जब कहा कि यह अपनी लाठी और कम्बल लो तुम सबने मुझे बहुत ही तंग किया है, यह सुनकर यशोदा हँस दी।
प्रश्न 3. ‘काम तेरी चोंच को सोने से मढ़वा दूंगी’ कौशल्या कौए को सम्बोधित करती हुई यह क्यों कहती है ?
उत्तर- हमारे देश में ऐसी मान्यता है कि यदि सुबह-सुबह कौआ घर के मुंडेर पर काँव-काँव करें तो समझो कि आज घर पर कोई प्रिय का आगमन होने वाला है। राम के वनवास की अवधि पूरी हो चुकी है। माता कौशल्या की मुंडेर पर बैठा कौआ काँव-काँव कर रहा है। इसलिए माता कौशल्या कौए को संबोधित करती हुई कहती है कि “काम तेरी चोंच को सोने से मड़वा दूँगी” यदि मेरे लाल सीता एवं लक्ष्मण के साथ सकुशल घर आ जायेंगे।
प्रश्न 4. रसखान के ब्रजभूमि से प्रेम के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर- (1) मनुष्य बनूँ तो ब्रज के गोकुल के गाँव में ग्वालों के बीच निवास करूँ।
(2) पशु बनूँ तो नंदबाबा की गायों के साथ चरूँ ।
प्रश्न 5. ‘ज्ञान खड्ग तिरगुन को मारे’ से धरमदास जी का क्या आशय है ?
उत्तर- ‘ज्ञान खड्ग तिरगुन को मारे’ से धरमदासजी का यह आशय है कि ज्ञान खड्ग रूपी त्रिगुण से पाँच पचीसी चोर अर्थात् दुर्गुणों को मारना चाहिए।
प्रश्न 6. धर्मदास ने ‘बंदी छोर’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर- धर्मदास ने ‘बंदी छोर’ ईश्वर को कहा है क्योंकि वही माया-मोह के सारे बंधन खोलकर हमें मुक्ति दिलाता है।
प्रश्न 7. माँ अपने बच्चों के कुशल-मंगल के लिए क्या-क्या करती है?
उत्तर- माँ अपने बच्चों के कुशल-मंगल के लिए व्रत-उपवास आदि करती है, दान-पुण्य करती है, मन्नतें माँगती है।