सरद रितु आ गे – पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र कक्षा 7वीं हिन्दी

चउमास के पानी परागे ।

जाना-माना अब अकास हर,

चाउर सही छरागे।

जग-जग ले अब चंदा उथे,

बादर भइगे फरियर |

पिरथी माता चारो खुंटले,

दिखये हरियर-हरियर |

रिगबिग ले अब अनपुरना हर

खेतन-खेत म छागे ।।



सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘सरद रितु आ गे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ जी हैं।

प्रसंग- इस पद्यांश में कवि ने धरती पर शरद ऋतु के प्रभाव का चित्रण किया है।

व्याख्या— कवि कहते हैं कि चौमास अर्थात् वर्षा ऋतु का चार माह समाप्त हो गया है। धरती पर अब शरद ऋतु का आगमन हो चुका है। मानो आकाश अब कूटे हुए चावल की तरह साफ हो गया है। रात्रि में आकाश में चन्द्रमा जगमगाता हुआ दिखाई देता है। बादल साफ हो गए हैं। धरती चारों ओर से हरी-हरी दिखाई दे रही है। ऐसा लग रहा है जैसे खेतों में अनाज (अन्न प्रदान करने वाली लक्ष्मी) की फसल लहलहाने लगी है।

2. नदिया अउ तरिया के पानी,

कमती होये लागिस ।

रद्दा के चउमास के चिखला

झंझटहा हर भागिस ।

बने पेट भर पानी पी के

पिरथी आज अघा मे।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘सरद रितु आ गे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ जी हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि से वर्षा ऋतु के जाने के बाद नदी, तालाब के पानी और कीचड़ से छुटकारा मिलने का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि शरद ऋतु का आगमन होने पर नदी और तालाब का पानी धीरे-धीरे कम होने लगा है। बरसात के कारण रास्तों में उत्पन्न कीचड़ अब समाप्त हो गया है। अब राहगीरों को कोई परेशानी नहीं होती। वर्षा ऋतु में पर्याप्त वर्षा होने के कारण पृथ्वी तृप्त हो गई है।

3. लक्ष्मी ला लहुटारे खातिर,

जल देवता अगुवाइस।

तब जगजग ले पुरइन पाना-

के दसना दसवाइस

रिगबिग ले फेर कमल फूल

हर, तरिया भर छतरागे ।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘सरद रितु आ गे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ जी हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि से वर्षा ऋतु के जाने के बाद नदी, तालाब के पानी और कीचड़ से छुटकारा मिलने का चित्रण किया है।

व्याख्या- शरद ऋतु का आगमन होने पर तालाबों में कमल खिल गए हैं, कमल के पत्ते सुन्दर जल पर फैले हुए हैं। इन्हें देखकर ऐसा लग रहा है जैसे जल के देवता लक्ष्मी जी को वापस लाने के लिए आगे आए और उन्होंने उनके विश्राम करने के लिए जल पर कमल के पत्तों का सुन्दर बिस्तर लगवा दिया है। फिर उन्हीं के स्वागत के लिए तालाब के जल में सघनता के साथ कमल के सुन्दर फूल खिल गए।

चारोखुंट म चुहुल-पुहुल,

अब करये चिरड़-चुरगुन ।

भौरा पलो परे हे बहुहा,

करथे गुनगुन-गुनगुन ।

अमरित बरसा होही संगी,

सुपर पड़ी अब आगे ।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘सरद रितु आ गे’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ जी हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि से वर्षा ऋतु के जाने के बाद नदी, तालाब के पानी और कीचड़ से छुटकारा मिलने का चित्रण किया है।

व्याख्या— कवि कहते हैं कि शरद ऋतु के आने पर धरती पर चारों और प्रसन्नता छा गई है। छोटे-बड़े पक्षी इधर से उधर उड़-उड़कर कलरव करते हुए प्रसन्नता प्रकट कर रहे हैं। भौरा तो जैसे बौरा ही गया है। वह गुनगुन-गुनगुन करता हुआ मँडरा रहा है। साथियो, खुले आसमान से आज अमृत की वर्षा होगी, ऐसा सुन्दर समय आ गया है।

अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1. ‘अकास हर चौउर सही घराने’ के का भाव है ?

उत्तर- ‘अकास हर चौउर सही छरागे’ के का अर्थ है-अकास हर छरे कुटे चौउर सही सपफा हो गे है। आकाश चावल के समान स्वच्छ हो गया का अर्थ है कि आकाश कूटे हुए चावल की तरह साफ हो गया )

प्रश्न 2. नंदिया अउ तरिया के पानी काबर कमती होय लागिस ? (नदी और तालाब का पानी कम क्यों होने लगा ?)

उत्तर- सरद रितु के आय ले पानी बरसना बंद हो गे अकास हर सफ्फा हो गे अऊ घाम होए लागिस ये कारन ले नंदिया तरिया के पानी कमती होय लगिस (शरद ऋतु आने से बारिश बंद हो गई। आकाश साफ हो गया और धूप निकलने लगी। इस कारण से नदी और तालाब का पानी कम होने लगा ।)

प्रश्न 3. लछमील लहुटारे खातिर जल देवता का का उदमि करिस ? (लक्ष्मी को वापस लाने के लिए जल देवता ने क्या-क्या उपाय किए ?)

उत्तर-लक्ष्मी ल लहुटारे खातिर जल-देवता ह अपन पानी म पुरइन पाना के दसना दसवाइस रिंगविंग ले फेर कमल फूल हर
तरिया भर छतरागे । (लक्ष्मी को वापस लाने के लिए जल देवता अर्थात् तालाब अपने पानी में पुरइन पत्ते का बिस्तर बिछवाया। फिर अधिक मात्रा में कमल फूल तालाब में चारों तरफ खिल गया।)

प्रश्न 4. कवि ह अमृत बरसा काला कहे हवय, अउ ये वरसा कब होये ? (कवि ने अमृत वर्षा किसे कहा है, और यह वर्षा कब होती है ?)

उत्तर- कवि ह अमृत बरसा ओस के बुंद ला कहे हवय, अउ ये बरसा सरद रितु मा होये। (कवि ने अमृत वर्षा ओस की बूंदों को कहा है, और यह वर्षा शरद में होती है।) ऋतु

प्रश्न 5. सरद रितु मा हमर चारों खूँट का बदलाव होये ? (शरद ऋतु में हमारे चारों ओर क्या-क्या बदलाव होते हैं ?)

उत्तर- सरद रितु मा हमर चारों खुँट चिरइ-चुरगुन चुहुर पुठुल करचें भरा ह खुशी के मारे गुनगुन-गुनगुन करत इति ले उति उड़त हे पिरथी माता चारों खूँट ले हरियर-हरियर दिख थे। रात मा चंदा जगजग ले उगये। (शरद ऋतु में हमारे चारों ओर छोटे-बड़े पक्षी कलरव करते हैं। भौरे खुशी से गुनगुन-गुनगुन करते इधर से उधर उड़ते हैं। पृथ्वी माता चारों ओर से हरी-हरी दिखाई देती है। रात्रि में चंद्रमा जगमगाता दिखाई देता है।)

प्रश्न 6. चउमास हमर जिनगी के सुख समृद्धि के आधार काबर माने गेहे अउ चउमास मा का का होये ? (वर्षा ऋतु हमारे जिन्दगी के सुख समृद्धि का आधार क्यों माना गया है और वर्षा ऋतु में क्या-क्या होता है ?)

उत्तर- चउमास मा बरसा होये जेकर से श्वेत मन या पानी मिलये अउ बरसा के कारन पिरथी ह हरियर दिखये जेकर जिनगी मा सुख समृद्धि आये बरसा होये चारों मुँट रद्दा मा चिखला मात जाये रद्दा रेंगइया मन ला बड़ तकलीफ होथे। (वर्षा ऋतु में खेतों को पानी मिलता है, वर्षा से पृथ्वी हरी हो जाती। है जिससे जिन्दगी में सुख-समृद्धि आती है। बरसात से चारों ओर कीचड़ ही कीचड़ हो जाता है। इससे यह चलने वालों को बड़ी परेशानी होती है।)

प्रश्न 7. कविवर सुघ्घर घड़ी कोन समय ल कहे हवय अउ वो समय का का बदलाव हो गे ? (कवि सुन्दर घड़ी किस समय को कहते हैं और उस समय क्या-क्या परिवर्तन हुआ ?)

उत्तर – कवि ह अमृत बरसा के घड़ी ल सुघ्घर घड़ी कहे वय अउ वो समय मा चिरड़-चिरगुन के चहुर पहुल भौरा के गुनगुन-गुनगुन करई पिरथी हरियर- हरियर दिखये अउ चंदा रात म जगमग जगमग करये। पानी के बरसना बंद हो जाये। आकाश सफ्फा हो जाये तरिया नदिया के पानी कमती होय लगये। (कवि ने अमृत वर्षा (ओस की बूँदों) को घड़ी सुन्दर कहा है। उस समय में पक्षियों की चहचहाट भरे की गुनगुनाहट, पृथ्वी का हरा हरा दिखना, रात में चन्द्रमा का जगमगाना, बारिश का बन्द होना, आकाश का साफ होना तथा तालाब, नदी का पानी कम होने लगता है।