अक्क महादेवी, कर्नाटक की प्रसिद्ध शैव कवयित्री, शिव की अनन्य भक्त थीं। उनके वचनों में भक्ति, वैराग्य और आत्मसमर्पण के अद्भुत दर्शन होते हैं। उनकी कविताएँ ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में इंद्रियों और सांसारिक मोह-माया की बाधाओं को उजागर करती हैं और आत्मविकास का संदेश देती हैं।
प्रथम वचन:
हो भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत चूक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
शब्दार्थ:
- मचल: पाने की ज़िद।
- पाश: बंधन।
- चराचर: जड़ व चेतन।
- चन्नमल्लिकार्जुन: शिव।
व्याख्या:
कवयित्री इंद्रियों और मनोविकारों से प्रार्थना करती हैं कि वे मनुष्य को सांसारिक बंधनों में न फँसाएँ। भूख, प्यास, क्रोध, लोभ और मोह जैसे विकार ईश्वर-भक्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। वे कहती हैं कि इन पर नियंत्रण रखकर ही शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
विशेषताएँ:
- रस: शांत रस।
- अलंकार: मानवीकरण (इंद्रियों को व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना), अनुप्रास।
- शैली: संबोधन शैली।
- भाषा: खड़ी बोली।
महत्त्व: यह वचन इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्मसंयम की प्रेरणा देता है। यह हमें सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।
दूसरा वचन
कविता:
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
शब्दार्थ:
- जूही: एक सुगंधित फूल।
- झोली: भिक्षा माँगने का पात्र।
- कुत्ता: सांसारिक जीवन का प्रतीक।
व्याख्या:
कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वह उनके जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करें जिससे वे सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो जाएँ। वह कहती हैं कि उन्हें भीख माँगनी पड़े, लेकिन भीख न मिले। यह प्रतीकात्मक है, जो उनके अहंकार के पूर्ण नाश और आत्मसमर्पण का सूचक है।
विशेषताएँ:
- अलंकार: उपमा (ईश्वर को जूही के फूल की उपमा), अनुप्रास।
- भाषा: सरल और सहज।
- शैली: संवादात्मक।
- भाव: आत्मसमर्पण और वैराग्य।
महत्त्व: यह वचन हमें यह सिखाता है कि भक्ति और आत्मसमर्पण के लिए व्यक्ति को अपने अहंकार और सांसारिक इच्छाओं का त्याग करना चाहिए।
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. कवयित्री ने किन-किन को संबोधित किया है?
कवयित्री ने भूख, प्यास, नींद, मोह, ईर्ष्या, मद और चराचर को संबोधित किया है।
2. ‘अपने घर भूलने’ से क्या तात्पर्य है?
‘अपने घर भूलने’ से तात्पर्य सांसारिक मोह-माया और गृहस्थ जीवन के बंधनों को त्यागने से है।
3. कवयित्री शिव का क्या संदेश लेकर आई है?
कवयित्री का संदेश है कि इंद्रियों पर नियंत्रण और मोह-माया का त्याग करके शिव की भक्ति में लीन होने से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
4. ‘ओ चराचर! मत चूक अवसर’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति का आशय है कि चराचर जगत् को शिव-भक्ति का जो अवसर मिला है, उसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। यह जीवन का परम लक्ष्य है।
5. ईश्वर को जूही के फूल की उपमा क्यों दी गई है?
ईश्वर को जूही के फूल की उपमा इसलिए दी गई है क्योंकि वह कोमल, सात्विक और सबके लिए सुखद है।
सार:
अक्क महादेवी के वचनों में भक्ति और वैराग्य का गहन संदेश है। उन्होंने इंद्रियों और मनोविकारों पर नियंत्रण को ईश्वर-प्राप्ति का साधन बताया है। उनके वचनों में आत्मा और परमात्मा के मिलन की उत्कंठा और सांसारिक मोह-माया से दूर रहने की प्रेरणा स्पष्ट रूप से झलकती है।