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इंसाफ कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ २४

इंसाफ कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ २४

पात्र- 
अली-बगदाद का एक नाई
हसन-बगदाद का एक लकड़हारा
खलीफा-बगदाद का सम्राट
नौकर

पहला दृश्य

(स्थान- बगदाद की एक सड़क पर अली नाई की दुकान। समय-दोपहर। अली
नाई अपनी दुकान पर बैठा अपना उस्तरा पैना कर रहा है। अपने गधे पर लकड़ी
लादे लकड़हारे हसन का प्रवेश।)

हसन-लकड़ी ले लो, लकड़ी। अच्छी सूखी लकड़ी ले लो।

अली-ओ लकड़हारे ! अरे भाई लकड़हारे, इधर आना।

हसन-(अपने गधे को रोककर अली के पास आता है।) भाई साहब, क्या आपने ही मुझे आवाज लगाई थी ? क्या आपको लकड़ी चाहिए ?

अली- हाँ भाई, बुलाया तो इसीलिए है। लकड़ियाँ सूखी हैं ? गीली तो नहीं हैं ?

हसन – अजी साहब, आप खुद देख लीजिए। ऐसी सूखी और ऐसी अच्छी लकड़ी किसी
के पास नहीं मिलेगी।

अली- ठीक है, मैं तुम्हारी बात का भरोसा किए लेता हूँ। इस गधे पर लदी सारी
लकडियों का कितना दाम चाहिए ?

हसन – सारी लकड़ियों का दाम पाँच शकाल है।

अली-पाँच शकाल! हैं तो ज्यादा, पर चलो मुझे मंजूर है। गधे पर की सारी लकड़ियों
का दाम पाँच शकाल तुम्हें मिलेगा। उतारो लकड़ी।

हसन –ठीक है। मैं अभी लकड़ियाँ उतारता हूँ।
(हसन गधे पर से लकड़ियाँ उतारकर दुकान के पास ढेर लगा देता है।)

हसन – लीजिए, मैंने सारी लकड़ियाँ उतारकर रख दीं। अब आप दाम चुका दीजिए।

अली- तुमने गधे पर रखी सारी लकड़ियाँ उतारकर रख दीं न ?

हसन – जी हाँ, सब लकड़ियाँ उतार दीं। हाथ कंगन को आरसी क्या ? आप खुद देख
लीजिए।

अली- ठीक है, मैं भी देख लूँ।
(दुकान से उतरकर गधे के पास जाता है। गधे की पीठ पर लकड़ी की बनी काठी
को देखकर)

अरे, यह क्यों नहीं उतारी ? यह भी तो लकड़ी ही है।
हसन – हुजूर, यह लकड़ी की तो है, लेकिन यह गधे की काठी है, जीन है। यह जलाने
के लिए थोड़े ही होती है।
अली- मियाँ लकड़हारे, जो बात तय हुई थी, उसे जरा याद कीजिए। मैंने कहा था कि
गधे पर की सारी लकड़ियों का दाम पाँच शकाल होगा। यह भी तो लकड़ी की
ही है। इसे भी उतारिए।
हसन –अजी साहब! क्यों गरीब आदमी के साथ ठिठोली करते हो ? मेरा और अपना
समय आप क्यों बर्बाद कर रहे हैं? मुझे दाम दीजिए जिससे मैं अपने घर जाऊँ।
अली- देखो दोस्त! यह ठिठोली और मज़ाक की बात नहीं है। जो सौदा हुआ है, उसे
आप भी निबाहिए, मैं भी निबाहूँगा। जब तक यह काठी उतारकर यहाँ नहीं रखते,
तब तक मैं एक शकाल भी नहीं दूँगा।
हसन – (क्रोध में भरकर) यह आप क्या कह रहे हैं ? आप तो पक्के धोखेबाज लगते हैं।
क्या आज तक किसी ने काठी भी लकड़ियों के साथ बेची है ?

अली- (हाथ में एक लकड़ी उठाकर) अबे बदतमीज! तुझे बोलने का भी ढंग नहीं मालूम।
मुझे गालियाँ बक रहा है। यह ले, यह ले तेरा दाम।
(अली, हसन को लकड़ी से मारता है। हसन बचता हुआ भागता है। अली गधे की
पीठ से काठी उतार लेता है और अपनी दुकान पर जाकर बैठ जाता है। हसन
थोड़ी देर में अपने गधे को ले जाता है।)

दूसरा दृश्य

(स्थान- खलीफा का दरबार। खलीफा एक ऊँचे सिंहासन पर बैठे हैं। आसपास
सिपाही, मुंसिफ आदि बैठे हैं। दरबान आता है।)
दरबान – हुजूर! द्वार पर एक फरियादी आया है। कहता है, मेरे साथ अन्याय हुआ है।
उसे अंदर आने दो।
(हसन अंदर आता है।)
हसन – जहाँपनाह! इंसाफ कीजिए।
खलीफा – बोलो, क्या बात है ? किसने तुम्हारे साथ बेइंसाफी की है ?
हसन – हुजूर! मैं लकड़ी बेचने के लिए देहात से आया था। बाजार में जब मैं अली नाई
की दुकान के पास से गुजरा तो उसने लकड़ी का सौदा किया। मैंने सारी लकड़ी
पाँच शकाल में देना मंजूर कर लिया। पाँच शकाल में लकड़ियों के साथ उसने
काठी भी उतार ली। मुझे मारा और दाम भी नहीं दिया।
खलीफा – उसने काठी क्यों उतार ली ?
हसन – हुजूर, वह कहने लगा कि काठी लकड़ी की बनी है, इसलिए मेरे सौदे में आती है।
खलीफा –तो काठी लकड़ी की बनी थी ?
हसन – जी हाँ, जहाँपनाह!
खलीफा – भाई, उसने तुम्हारे साथ धोखा तो किया लेकिन उसका कहना भी ठीक है।
कानून के तहत उसके खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन तुम्हारे साथ
बेइंसाफी तो हुई है। अच्छा, इधर आकर मेरी बात सुनो।
(हसन खलीफा के पास जाता है। खलीफा उसके कान में कुछ कहते हैं। हसन
बाहर चला जाता है।)

तीसरा दृश्य

(अली अपनी दुकान में बैठा अपना उस्तरा तेज़ कर रहा है। हसन का दुकान में
प्रवेश।)
अली-(पहचानकर) क्यों भाईजान, कैसे आए? पुरानी बात भूल जाइए। क्या आपको
हजामत बनवानी है?
हसन –दोस्त अली! उस दिन तो गलती मेरी ही थी। मुझे उसका नतीजा मिल गया। मैं
तो आज हजामत बनवाने आया हूँ। मेरा एक साथी और है। उसकी भी हजामत
बनानी है।
अली-अरे भाई, आओ, आओ। हजामत बनाना तो मेरा पेशा ही है।
हसन –दोनों की हजामत बनाने की मजदूरी क्या होगी?
अली-दोनों की हजामत के लिए एक शकाल दे दीजिए।
हसन –ठीक है। पहले मेरी हजामत बना दीजिए।
(अली हसन के बाल काटता है। बाल काटकर)
अली-लीजिए, आपकी हजामत बन गई। अपने साथी को भी बुला लीजिए।

हसन –मैं अभी उसे लेकर आता हूँ।
(बाहर जाता है और गधे की रस्सी पकड़े हुए उसे अंदर ले आता है।)
हसन – लो भाईजान! मेरा साथी भी आ गया। इसकी हजामत भी बना दीजिए।
अली- अरे, क्या गधे के बाल कटवाएगा?
हसन –जी हाँ, यही तो मेरा साथी है। इसी के तो बाल कटवाने हैं।
अली-या अल्लाह! यह क्या कहता है? अरे बेवकूफ, क्या कभी गधे के भी बाल काटे
जाते हैं? तूने फिर बेवकूफी की बात की। पहले मेरे हाथों मार खा चुका है। भाग
यहाँ से नहीं तो हड्डी-पसली तोड़कर रख दूँगा।
हसन –भाईजान! इसमें मारने-पीटने की क्या बात है? सौदा तो सौदा ही होता है।
अली-अबे! कानून मत बघार। यहाँ से सीधे भाग जा, जल्दी कर।
हसन –अच्छा जाता तो हूँ, पर गरीब को सताना ठीक नहीं है।
(हसन गधे को लेकर चला जाता है।)

चौथा दृश्य

(स्थान- खलीफा का दरबार। खलीफा अपने सिंहासन पर बैठे हैं। हसन उनके
सामने हाजिर होता है।)
खलीफा – क्यों भाई! क्या तुमने मेरे कहे मुताबिक काम किया?
हसन –जी हाँ, जहाँपनाह! आज अली नाई ने मेरे और मेरे साथी के बाल एक शकाल
में काटना मंजूर किया था। उसने मेरे बाल तो काट दिए पर मेरे साथी के बाल
नहीं काटे और मुझे और मेरे साथी को अपनी दुकान से बाहर निकाल दिया।
खलीफा – ठीक है। अब तुम्हारे साथ इंसाफ होगा। (एक सिपाही से) अली नाई को फौरन दरबार में हाजिर किया जाए। उससे अपने सारे औजार भी साथ लाने को कहा
जाए।
(सिपाही जाता है। थोड़ी देर में वह अली नाई को अपने साथ लेकर आता है।)
अली-जहाँपनाह, मेरे लिए क्या हुक्म है ?
खलीफा – क्या तुम्हारा ही नाम अली नाई है ?

अली-जी हाँ, जहाँपनाह।
खलीफा – तुम्हारे खिलाफ यह आदमी आरोप लगा रहा है कि तुमने आज सुबह इसके तथा इसके साथी के बाल काटने का सौदा किया था, परन्तु बाद में तुम मुकर गए। क्या यह सच है ?
अली- सरकार, मैंने इसके बाल काट दिए. लेकिन यह अपने साथी के रूप में एक गधे को ले आया। आप ही सोचिए हुजूर, क्या कभी गधे की भी हजामत होती है ?
खलीफा – तुम ठीक कहते हो, गधे की हजामत कभी नहीं होती। पर क्या तुमने कभी यह भी सुना है कि गधे पर रखी काठी भी लकड़ियों में गिनी जाती है ? अगर यह ठीक है तो गधा भी आदमी का साथी हो सकता है और उसके भी बाल बनवाए जा सकते हैं। (अली चुप रहता है।)
खलीफा – अब अच्छा यही है कि इस गधे के सारे बाल इसी समय साफ कर डालो।
(अली मुँह लटकाए बाहर जाता है और गधे पर पहले साबुन मलता है और फिर उसके बाल काटता है। गधे की हजामत बनाने के बाद वह अंदर आता है।)
अली- हुजूर, मैंने आपके हुक्म का पालन कर दिया।
खलीफा – देखो अली, भला आदमी कभी गरीब को नहीं सताता। आइंदा के लिए मेरी बात गाँठ बाँध लेना। (अली नाई खलीफा को सलाम करके जाता है।)
खलीफा – (हसन से) हसन भाई, इधर आइए। अली ने आपके साथ जो बदसलूक किया, उसका नतीजा उसे मिल गया। तुम्हारी काठी का दाम तुम्हें मिल जाएगा।
(खजांची से) खजांची, हसन को दस मोहरें दे दी जायँ। (हसन बहुत प्रसन्न होता है। वह मोहरें लेकर खलीफा को दुआ देता हुआ चला जाता है।)

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1: अली और हसन में झगड़ा किस बात पर उठा?
उत्तर: अली और हसन में झगड़ा लकड़ी की काठी को लेकर उठा। अली ने तय किया था कि गधे पर रखी सारी लकड़ियों का दाम पाँच शकाल होगा, लेकिन हसन ने काठी को लकड़ी नहीं माना और उसे नहीं उतारा, जिससे विवाद हुआ।

प्रश्न 2: लकड़ी की काठी की बात पर खलीफा ने न्याय करने के बाद क्या कहा?
उत्तर: खलीफा ने कहा कि काठी लकड़ी की बनी थी, इसलिए अली का कहना सही था, लेकिन हसन के साथ बेइंसाफी हुई थी। खलीफा ने उसे इंसाफ देने का आदेश दिया और यह भी कहा कि कभी गरीब को सताना नहीं चाहिए।

प्रश्न 3: अली को अंत में गधे की हजामत क्यों बनानी पड़ी?
उत्तर: अली को गधे की हजामत बनानी पड़ी क्योंकि हसन ने खलीफा से न्याय मांगा था और खलीफा ने अली को आदेश दिया कि वह गधे की हजामत बनाए, जैसा उसने हसन के साथ धोखा किया था।

प्रश्न 4: अली ने लकड़ियों के साथ ही काठी भी ले ली। तुम्हारी राय में अली का काम उचित था या अनुचित? क्यों?
उत्तर: अली का काम अनुचित था। काठी लकड़ी की बनी होने पर भी वह गधे की काठी थी और उसे लकड़ी के रूप में नहीं बेचा जा सकता था। अली ने धोखा दिया और वह काठी को लकड़ी के रूप में मांगकर गलत किया।

प्रश्न 5: नीचे लिखे प्रश्नों के तीन-तीन उत्तर दिए गए हैं। सही उत्तर चुनकर लिखो।
क. अली के द्वारा लकड़ियों के साथ लकड़ी की काठी माँगना नियमानुसार-
उत्तर: (ख) गलत था

ख. अंत में अली को हसन के गधे की हज़ामत बनानी पड़ी?
उत्तर: (ग) खलीफा के कहने पर