राजिम मेला सहेली को पत्र कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 16
शंकर नगर, रायपुर
(छत्तीसगढ़)
22 दिसम्बर, 2010
मैं यहाँ पर अच्छी हूँ। तुम कैसी हो? तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है। हमारे स्कूल में अभी खेल प्रतियोगिताएँ चल रही हैं। मैं भी खो-खो और लम्बी दौड़ में भाग ले रही हूँ। तुम्हारे
यहाँ खेल प्रतियोगिताएँ कब हैं? अरे हाँ, एक बात मैं तुम्हें बताना चाह रही थी। कुछ दिन पहले मैं राजिम अपने मामा के यहाँ गई थी, माँ और पिता जी के साथ। पिता जी के लिए मामा का पत्र आया था कि आप लोग सत्तो को लेकर आ जाइए; यहाँ माघ का मेला लगा है। बस, हम लोग चल पड़े। मामा-मामी से मिलना और मेला देखना- एक पंथ दो काज। जिस बस में हम लोग राजिम जा रहे थे, उसमें बहुत ज्यादा भीड़ थी। थोड़ी देर तो हमें बस में सीट ही नहीं मिली; हमें खड़े-खड़े ही जाना पड़ा। लेकिन फिर बैठने के लिए सीट मिल गई। बस में मैं बैठी रास्ते भर मेले के बारे में ही सोचती रही। वहाँ तरह-तरह के झूले होंगे, अच्छे-अच्छे खिलौने मिलेंगे। यह सोचते-सोचते हम कब राजिम पहुँचे, पता ही नहीं चला।
घर पर मामा हम लोगों का इंतजार कर रहे थे। मुझे देखकर उन्होंने मुझे गले से चिपका
लिया। वे बोले, “सत्तो, तू आ गई। सब लोगों के साथ मेला देखने में आनंद आएगा। शाम को सब मेला देखने चलेंगे।”
मैंने मामा से पूछा, “मामा, इस मेले के बारे में कुछ बताइए।”
वे बोले, “यह मेला हर वर्ष माघ माह में लगता है। पूरे महीने यहाँ खूब रौनक रहती है।
माघी पूर्णिमा को इस मेले की शुरुआत होती है और महाशिवरात्रि को समापन। यहाँ भगवान राम का राजीवलोचन मंदिर और कुलेश्वर महादेव मंदिर हैं। यहाँ तीन नदियों-सोंढूर, पैरी और प्यारी सहेली श्वेता,महानदी- का संगम होता है। इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहते हैं। मेले में बहुत सारे खेल-तमाशे आए हैं। तू देखेगी तो नाच उठेगी।” हम लोग जल्दी-जल्दी नहाए, हमने खाना खाया और फिर हम मेला जाने के लिए तैयार हो गए। मामा जी के घर से मेले का स्थान थोड़ी ही दूर पर था। मेले से लाउडस्पीकर की आवाजें दूर-दूर तक सुनाई पड़ रही थीं। गाने भी हो रहे थे। बातें करते हुए हम लोग चल रहे थे। मामा जी पिता जी को राजिम के मंदिरों के बारे में बता रहे थे। मुझे तो उन बातों में कुछ मजा नहीं आ रहा था। मेरे मन में तो ऊँचे-ऊँचे, गोल-गोल झूले घूम रहे थे। खिलौनों की दुकानें, चाट दिमाग पर छा रही थीं। पन्द्रह-बीस मिनट में हम मेले में पहुँच गए।
मेले में खूब भीड़ थी। तरह-तरह की दुकानें सजी थीं। छोटे-बड़े कई तरह के झूले थे। कोई बहुत ऊँचे-ऊँचे थे तो कोई चक्कर में चलनेवाले थे। खिलौनों की दुकानें तरह-तरह के खिलौनों से सजी थीं। जगह-जगह गुब्बारेवाले खड़े थे। खाने-पीने की छोटी-छोटी दुकानें लगी हुई थीं। मामा ने पहले तो मुझे गोलवाले झूले में झुलवाया, फिर ऊँचेवाले झूले में वे खुद भी मेरे साथ बैठकर झूले। ऊँचेवाले झूले में बैठकर बहुत मजा आया। इसके बाद मैंने एक बड़ा-सा गुब्बारा खरीदा।
तभी माँ ने एक दुकान की तरफ मेरा ध्यान दिलाया जहाँ पर एक बहुत ही सुंदर गुड़िया रखी थी। वह गुड़िया मुझे बहुत पसंद आई। मैंने उस गुड़िया के लिए माँ से कहा तो माँ ने मुझे गुड़िया दिला दी। पिता जी ने मुझे एक बड़ा-सा खिलौना दिलाया। एक दुकान पर बहुत सुंदर चूड़ियाँ थीं। मैंने खुद अपने लिए चूड़ियाँ खरीदीं। मेले से निकलते हुए एक दुकान के कोने से लगकर मेरा गुब्बारा फूट गया। मामा हम सबको चाट की एक दुकान पर ले गए। सबने चाट खाई। रात होते-होते हम मामा के घर पहुँच गये। तब और बातें बताऊँगी।
मेले के बारे में बताने लायक बहुत सारी बातें हैं लेकिन अब नींद आने लगी है। जब मिलूँगी । तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में,
तुम्हारी सहेली
सरिता
प्रश्न 1: यह पत्र कहाँ से लिखा गया है?
यह पत्र शंकर नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़) से लिखा गया है।
प्रश्न 2: इस पत्र का मुख्य विषय क्या है?
इस पत्र का मुख्य विषय राजिम के मेले का वर्णन है।
प्रश्न 3: यह पत्र किसने किसको लिखा?
यह पत्र सत्तो ने अपनी सहेली श्वेता को लिखा है।
प्रश्न 4: राजिम का मेला किस माह में भरता है?
राजिम का मेला माघ माह में भरता है।
प्रश्न 5: राजिम किन नदियों के संगम पर बसा है?
राजिम महानदी, सोंढूर और पैरी नदियों के संगम पर बसा है।
प्रश्न 6: किसी भी मेले में बच्चों के आकर्षण की कौन-सी चीज़ें होती हैं?
किसी भी मेले में बच्चों के आकर्षण की चीज़ें हैं:
- तरह-तरह के झूले
- खिलौनों की दुकानें
- गुब्बारे
- खाने-पीने की चीजें (चाट, मिठाई आदि)
प्रश्न 7: त्रिवेणी से क्या तात्पर्य है?
त्रिवेणी से तात्पर्य तीन नदियों के संगम से है। राजिम में सोंढूर, पैरी और महानदी का संगम त्रिवेणी कहलाता है।
प्रश्न 8: राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग क्यों कहा जाता है?
राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ तीन नदियों का संगम है, जो प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के समान है।
प्रश्न 9: तुमने किसी मेले में झूला अवश्य झूला होगा। अपने अनुभव लिखो।
उत्तर (अनुभव):
हाँ, मैंने भी एक मेले में झूला झूला था। वह गोल-गोल घूमने वाला झूला था। जब झूला ऊपर जाता था, तो मुझे डर भी लगता था और मजा भी आता था। हवा के झोंके चेहरे पर लग रहे थे, और मैं बहुत खुश थी। झूले से उतरने के बाद मैंने गुब्बारे खरीदे और चाट खाई। वह अनुभव मुझे आज भी याद है।