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कुकू और भूरी कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 12

कुकू और भूरी कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 12

दो मुर्गियाँ थीं- कूकू और भूरी। दोनों एक पुराने दड़बे में रहती थीं। दोनों को डींग मारने और शान बघारने का बहुत शौक था। आप सोचते होंगे कि कूकू और भूरी ज़्यादातर समय साथ-साथ बिताती थीं इसलिए शायद उनमें अच्छी दोस्ती होगी। परन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। दोनों आपस में बहुत ही कम बातचीत करती थीं।
एक दिन कूकू ने डींग मारी, “मेरे नए अंडे तो दुनिया में सबसे सुंदर हैं, एकदम रेशम की तरह चिकने हैं।”
भूरी भला कहाँ चुप रहनेवाली थी, “नहीं, ऐसा नहीं है। मेरे अंडे सबसे ज्यादा खूबसूरत हैं।
देखो न, वे मोतियों की तरह चमक रहे हैं।”
“मेरे अंडे कोरे कागज़ की तरह सफेद हैं,” कूकू बोली।

“मेरे अंडे एकदम दूध की तरह उजले हैं,” भूरी ने जवाब दिया।
दोनों मुर्गियों के बीच नोंक-झोंक चलती रही।
“देखना, जब मेरे अंडों में से चूजे निकलेंगे तो वे भी मेरी तरह खूबसूरत होंगे,” यह कहकर कूकू दड़बे के फर्श पर कूदी और धूप में इतराकर चलने लगी।
भूरी भला कहाँ चुप रहनेवाली थी। वह भी सूखी घास पर अपने पंख फैलाकर थिरकने
लगी, “मेरे चूजे कितने खूबसूरत होंगे!”
दोनों मुर्गियाँ अपनी खूबसूरती का बखान और गुणगान करने में इतनी व्यस्त थीं कि
उनका दड़बे की खिड़की की ओर ध्यान ही नहीं गया।
खिड़की की दूसरी तरफ एक कुत्ता बैठा था। उसने दोनों मुर्गियों को शेखी मारते हुए
सुना। वह वहीं रुक गया और मौके की तलाश करने लगा।
कुत्ते को जैसे ही मौका मिला वह मुर्गियों के दड़बे में कूद पड़ा। एक जोर का धमाका
हुआ! दोनों मुर्गियों के घोंसले तहस-नहस हो गए और चारों तरफ सूखी घास उड़ने
लगी।
जिस रास्ते कुत्ता आया था वह उसी रास्ते से चुपचाप हवा में गायब हो गया।
काफी देर बाद कूकू और भूरी को होश आया। सब कुछ पहले जैसा ही था। परंतु
अपने घोसलों में पहुँचते ही मुर्गियाँ घबरा गईं।
हुआ,” दोनों मुर्गियाँ एक-दूसरे को दोष देने लगीं।
तभी उन मुर्गियों को पीछे से किसी चीज़ के लुढ़कने की आवाज़ सुनाई दी। कूकू और भूरी ने तुरंत मुड़कर देखा। उन्हें वहाँ एक अंडा पड़ा मिला।
कूकू और भूरी दोनों ज़ोर से चीखीं, “यह अंडा मेरा है!”
उसके बाद दोनों में जमकर लड़ाई हुई। कूकू को कोई शक नहीं था। वह सोचती थी कि
अंडा उसी का है। दूसरी ओर भूरी को भी पक्का विश्वास था कि वह अंडा उसी का है।
“यह सब तुम्हारी गलती के कारण ही अंत में कूँकूँ करते दो कबूतरों ने
उन्हे टोका।
“अगर तुम दोनों ऐसा करोगी, तो
यह इकलौता अंडा भी धीरे-धीरे ठंडा हो
जाएगा। अगर तुम दोनों जल्दी नहीं करोगी
तो यह अंडा भी बाहर पड़े-पड़े मर जाएगा
और फिर झगड़ने के लिए कोई चूजा ही
नहीं बचेगा। तुम दोनों चाहो तो इस चूजे को आपस में मिलकर पाल सकती हो।”
कूकू और भूरी दोनों ने एक-दूसरे को शक की निगाहों से देखा। “एक साथ मिलकर
पालना! असंभव! यह कभी नहीं हो सकता।”
“चलो, मैं अंडे पर पहले बैठती हूँ,” कूकू ने निर्णय लेते हुए कहा, “तुम अंडे को बाद में
सेना।”
“नहीं, पहले मैं,” भूरी ने कहा। “उसके बाद तुम बैठना।”
एक-दूसरे से सहयोग करना तो कूकू और भूरी ने कभी सीखा ही नहीं था। बस आपस
में झगड़ा ही करती रहती थीं।
दोनों मुर्गियाँ दिन-रात एक-दूसरे से इस तरह लड़ते-लड़ते तंग आ गई। उन्हें पता था
कि वे एक-दूसरे के विचारों को बिल्कुल नहीं बदल पाएँगी। अंत में दोनों चुप होकर बैठ गई।
दिन बीतते गए।
कभी-कभी कबूतर मुर्गियों के दड़बे के पास आकर रुकते और अंडे की प्रगति का हालचाल पूछते।
इधर कूकू और भूरी बिना हिले-डुले बैठी रहतीं। वे एक-दूसरे की पड़ोसी हैं, इसे भी
मानने से इंकार करतीं।
इतने दिनों तक कुत्ता केवल एक चीज के बारे में सोचता रहा कि वह दड़बे में उस आखिरी अंडे को क्यों छोड़ आया। उसे बार-बार अंडे की याद सता रही थी। वह दड़बे में वापस जाकर उस अंडे को खाना चाहता था।
“दड़बे में पहुँचकर मैं उस अंडे के साथ-साथ उन दोनों मुर्गियों को भी हज़म करूँगा।” इस मंशा के साथ कुत्ता दड़बे की ओर बढ़ा।
इस बीच दोनों मुर्गियों के बीच में अनबन और बढ़ गई। अगर वे एक-दूसरे से बात करतीं
तो उसका कारण होता शिकायत करना।
“गुनगुनाना बंद करो।”
“अपने पंजे हिलाना बंद करो।”
“थोड़ी दूर खिसको।”
दोनों गुस्से से तमतमा रही थीं।

तभी कहीं से एक मक्खी भिनभिनाती हुई दड़बे में घुस आई। मक्खी भिन-भिन करती और चारों ओर उड़ती। कभी वह कूकू की नाक पर बैठती और कभी भूरी की पीठ को गुदगुदाती। अंत में मक्खी से दोनों मुर्गियाँ परेशान हो गई।
तभी मक्खी कूकू की चोंच के पास उड़ती हुई आई।
भूरी मक्खी को पकड़ने के लिए उड़ी, परंतु वह मक्खी को पकड़ नहीं पाई।
भूरी, कूकू से जाकर धड़ाम से टकराई।
“देखो, इसने फिर से लड़ाई शुरू कर दी,” कूकू चिल्लाई। कूकू तब ज़मीन पर कूदी और
भूरी को पकड़कर खदेड़ने लगी।
कुत्ते को हमला बोलने का यही सही समय लगा।
ध-ड़ा-म करके कुत्ता खिड़की से कूदा।
पहले तो कूकू और भूरी एकदम सहम गईं। फिर वे दोनों हिम्मत बटोरकर कुत्ते का सामना करने के लिए आगे बढ़ीं।
“कुत्ते को रोको,” कूकू चिल्लाई।
“उसे अंडे के पास मत जाने दो,” भूरी गुर्राई।
फिर क्या था। कूकू कुत्ते की पीठ पर कूदी और भूरी सिर पर कूदी। दोनों लड़ाकू मुर्गियों ने कुत्ते को अपनी पैनी चोंचों से गोदा और अपने नुकीले पंजों से नोंचा। कुत्ता बहुत चीखा-चिल्लाया परंतु मुर्गियों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
अंत में कुत्ता किसी तरह खिड़की से कूदकर अपनी जान बचाकर भागा।
लड़ते-लड़ते दोनों मुर्गियाँ थककर एकदम पस्त हो गई थीं। वे भी सुस्ताने के लिए दड़बे
में लेट गई।
“हमारी जीत हुई,” कूकू ने कहा, “हमने कुत्ते की जमकर पिटाई की।”
भूरी ने कहा, “क्या कोई कभी सोच भी सकता था कि हम दोनों इतनी बहादुर निकलेंगी?”
‘यह लड़ाई एक मुर्गी के बस की नहीं थी,” भूरी ने कहा।
जीवन में पहली बार कूकू ने भूरी की बात मानी, “हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम दोनों
एक साथ थे,” कूकू ने कहा।

“चुप! ज़रा सुनो, भूरी ने कहा।
नीचे अंडे में से हल्की-सी आवाज आ रही थी।
“हमारा अंडा!” दोनों पहली बार मिलकर चिल्लाई।
कूकू और भूरी दोनों घोंसले के पास आ गईं और उत्सुकता से अंडे को ताकने लगीं। पहले तो अंडे पर एक हल्की-सी दरार पड़ी। परंतु फिर बहुत देर तक कुछ भी नहीं हुआ। समय बीत ही नहीं रहा था। घंटे, दिनों जैसे लगने लगे। पर अंत में अंडा फूटा और उसके खोल में से एक नन्हा-सा, गीला-सा, एक हड्डीवाला चूजा बाहर निकला।
“कितना सुंदर है!” कूकू के मन में चूजे को देखकर लड्डू फूटने लगे।
“सच में कितना खूबसूरत है!” भूरी ने हामी भरते हुए कहा।
कूकू ने चूजे के पास से मुआयना करते हुए कहा, “देखो भूरी, इस चूजे
की चोंच तो बिल्कुल तुमसे मिलती है।”
“परंतु इसके पैर तो बिल्कुल तुम्हारे पैरों जैसे हैं, कूकू,” भूरी ने कहा। छोटे-से चूजे ने दोनों मुर्गियों की आँखों में प्यार से झाँककर देखा।
“हमारा चूजा दुनिया में सबसे प्यारा है,” कूकू और भूरी दोनों गाने लगीं।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा चूजा हो जिसे इतना प्यार और दुलार मिला हो।
“ऐसा चूजा जिसकी एक नहीं बल्कि दो माँ हों।”
इसका मतलब यह नहीं कि कूकू और भूरी की बाद में कभी लड़ाई नहीं हुई।
वे खूब लड़ती भी थीं परन्तु उनमें गहरी दोस्ती भी थी।

प्रश्नों के उत्तर:

प्रश्न 1:
इस पाठ में एक कुत्ते का भी उल्लेख है। तुम उसको क्या नाम देना चाहोगे?
उत्तर: मैं उस कुत्ते का नाम “धूर्त” रखना चाहूँगा क्योंकि वह चालाकी से मौके की तलाश में था और दड़बे पर हमला करने की योजना बना रहा था।

प्रश्न 2:
दोनों मुर्गियाँ किस प्रकार अपनी-अपनी प्रशंसा कर रही थीं?
उत्तर:

  • कूकू ने अपने अंडों को रेशम की तरह चिकना और कोरे कागज की तरह सफेद बताया।
  • भूरी ने अपने अंडों को मोतियों की तरह चमकदार और दूध जैसा उजला कहा।
    दोनों अपनी-अपनी खूबसूरती और अपने चूजों की सुंदरता का भी बखान कर रही थीं।

प्रश्न 3:
कुत्ते को दड़बे पर आक्रमण करने का कब मौका मिला?
उत्तर:
कुत्ते को तब मौका मिला जब कूकू और भूरी आपस में लड़ाई कर रही थीं और दड़बे की खिड़की पर ध्यान नहीं दे रही थीं।

प्रश्न 4:
कबूतर ने मुर्गियों को क्या सलाह दी और क्यों दी?
उत्तर:
कबूतर ने मुर्गियों को सलाह दी कि वे झगड़ा बंद करें और अंडे को मिलकर पालें। उसने यह भी कहा कि अगर वे समय पर अंडे को नहीं सेएँगी तो वह ठंडा होकर मर जाएगा। यह सलाह अंडे और चूजे को बचाने के लिए दी गई थी।

प्रश्न 5:
दोनों मुर्गियों में अंत में कैसे दोस्ती हो गई?
उत्तर:
कुत्ते के हमले के समय दोनों मुर्गियों ने मिलकर हिम्मत दिखाई और कुत्ते को खदेड़ दिया। इस घटना के बाद उन्हें महसूस हुआ कि मिलकर काम करने से ही सफलता मिलती है। उन्होंने पहली बार एक-दूसरे की बात मानी और अंडे से निकले चूजे को मिलकर प्यार से पाला।

प्रश्न 6:
कुत्ता यदि सभी अंडों को नष्ट कर देता तो क्या होता?
उत्तर:
यदि कुत्ता सभी अंडों को नष्ट कर देता, तो मुर्गियों के पास कोई चूजा नहीं बचता और वे बहुत दुखी हो जातीं। इसके साथ ही वे अपनी नोंक-झोंक के कारण दोषी महसूस करतीं।

प्रश्न 7:
कूकू या भूरी यदि कुत्ते से अकेले मुकाबला करती तो क्या होता?
उत्तर:
अगर कूकू या भूरी अकेले कुत्ते से मुकाबला करती, तो शायद वह हार जाती और कुत्ता अंडे के साथ-साथ मुर्गियों को भी नुकसान पहुँचा सकता था। मिलकर सामना करने से ही वे कुत्ते को हरा सकीं।