मैनपाट की सैर कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 2
हिल-स्टेशन मैनपाट चारों ओर से प्राकृतिक सौंदर्य, जलप्रपातों से भरा-पूरा है। मैनपाट का कोना-कोना दर्शनीय है। पर्यटक यहाँ आकर अतीव सुख और शांति का अनुभव करते हैं। लोगों के शोरगुल, वाहनों की कानो को खटकने वाली ध्वनियों से मुक्त शांत वातावरण युक्त मैनपाट अम्बिकापुर से लगभग 85 किलोमीटर दूर हरी-भरी पहाड़ियों पर स्थित है। चारों ओर से घने वनों से आच्छादित यह स्थान अनेक छोटी-बड़ी नदियों से घिरा है। ये नदियाँ स्थान-स्थान पर जल प्रपात बनाकर अद्भुत मनोरम दृश्य उपस्थित कर देती हैं। समुद्र तल से 1100 मीटर की ऊँचाई पर 28 वर्ग किलोमीटर में आयताकार पहाड़ी पर बसे मैनपाट के आसपास अनेक दर्शनीय स्थल हैं।
इनमें टाइगर प्वाइंट, मछली प्वाइंट, मेहता प्वाइंट, दरोगा दरहा जलप्रपात, देव प्रवाह अपनी प्राकृतिक सुषमा के कारण दर्शनीय हैं। पहले हम मैनपाट के पूर्वी भाग में चलते हैं। यहीं महादेवमुड़ा नदी बहती है। यह नदी वनों के बीच 60 मीटर की ऊँचाई से गिरती हुई एक आकर्षक जलप्रपात बनाती है। इस जल- प्रपात की धारा जब नीचे कुंड में गिरती है तो शान्त वनों के बीच मधुर संगीत-सा उत्पन्न कर देती है। कभी इस प्रपात के आसपास वनराज भ्रमण किया करते थे जिनके कारण इस प्रपात को टाइगर प्वाइंट कहा जाता है। मुख्य मार्ग पर स्थित होने से यहाँ आना सुविधाजनक है। पर्यटकों के ठहरने के लिए यहाँ विश्रामगृह भी है।
अब हम तुम्हें एक अन्य स्थल पर ले चल रहे हैं। यह स्थल मैनपाट से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली। पहाड़ों पर उतर आए बादल ऐसे लगते हैं जैसे आकाश ही पहाड़ों पर उतर आया है। कभी पहले इस जलप्रपात में बड़ी-बड़ी मछलियाँ पाई जाती थीं, इसीलिए इसका नाम मछली प्वाइंट पड़ा है।
इसके सामने की पहाड़ी से एक पतली जलधारा 80 मीटर की ऊँचाई से गिरती हुई ऐसी प्रतीत होती है मानो कोई दूध की धारा पहाड़ी से गिर रही हो। इस कारण इसे मिल्की-वे अर्थात् दूधिया धारा कहते हैं।
प्रकृति के मनोरम दृश्य देखते-देखते हमारी आँखें थकती नहीं। और मैनपाट में ऐसे प्राकृतिक दृश्यों की कोई कमी नहीं। अब हम आपको एक अन्य प्वाइंट की ओर ले चलते हैं। यह प्वाइंट मैनपाट से केवल 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे मेहता प्वाइंट कहते हैं। यहाँ के हरेक प्वाइंट का नामकरण किसी विशेष कारण से किया गया है। सरगुजा और रायगढ़ की सीमा निर्धारित करने वाला यह प्वाइंट एक ऐसे जलक्षेत्र का निर्माण करता है जो एक सागर के समान प्रतीत होता है। वन विभाग ने यहाँ भी पर्यटकों की सुविधा के लिए विश्रामगृह की व्यवस्था कर दी है।
यों तो वनविभाग ने पर्यटकों की सुविधा के लिए अनेक दर्शनीय प्वाइंट पर पहुँचने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण कराया है लेकिन वनक्षेत्र में सभी स्थानों में सड़क निर्माण कराना दुरूह कार्य है। ऐसे कुछ दर्शनीय स्थलों पर तो लोगों को पैदल ही जाना पड़ता है। दरोगा दरहा जलप्रपात देखनेवालों के पैर मजबूत होने चाहिए। यहाँ गहरी खाइयों में होकर जाना पड़ता है। लेकिन अपने लक्ष्य पर पहुँचकर प्रकृति का नज़ारा देखकर दस किलोमीटर पैदल चलने की सारी थकान छूमंतर हो जाती है। तुम यहाँ आराम से घंटे भर बैठकर प्रकृति की शोभा को निहार सकते हो।
मैनपाट के सभी प्राकृतिक स्थलों को एक दिन में देख पाना असंभव है। जिस स्थल पर भी तुम पहुँचोगे, वहाँ से हटने को जी नहीं चाहेगा। तबियत करेगी कि बैठे-बैठे उस मनोरम दृश्य को देखते रहें। तो फिर एक दिन में सभी स्थल कैसे देखे जा सकते हैं? इसलिए पर्यटक कम-से-कम दो दिनों का समय निकालकर यहाँ आते हैं। तुम पहले दिन इन्हीं स्थलों का भ्रमण कर सकते हो।
दूसरे दिन का भ्रमण तुम देवप्रवाह से कर सकते हो। वनक्षेत्र कमलेश्वरपुर में एक प्राकृतिक झील है जो आगे चलकर एक नाले का रूप धारण कर लेती है। यही नाला 80 मीटर की ऊँचाई से गिरता हुआ एक प्रपात बनाता है। यही देवप्रवाह प्रपात है। यहाँ आसपास का वनक्षेत्र वनौषधियों से भरा हुआ है। हमारे लिए जो साधारण वृक्ष हैं, जानकारों के लिए उनमें से कुछ वृक्ष कल्पवृक्ष भी हो सकते हैं।
मैनपाट में सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के कई स्थल हैं। पर्यटक इन स्थानों पर पहुँचकर सूर्योदय और सूर्यास्त का भरपूर आनंद लेते हैं। जलप्रपातों के अतिरिक्त मैनपाट में अनेक प्राकृतिक गुफाएँ भी दर्शनीय हैं। इन गुफाओं के संबंध में हम तुम्हें फिर कभी बताएंगे।
मैनपाट अपनी एक और विशेषता के लिए विख्यात है। तुम जानते हो कि भारत सदा से ही शांतिप्रिय देश रहा है। हमने अपने ऊपर विदेशियों के अनेक आक्रमण झेले हैं लेकिन कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। हमारे धर्म-प्रचारकों ने देश-देश में घूम-घूमकर शान्ति का प्रचार किया है और विश्व की कई विपत्ति में पड़ी जातियों को अपने यहाँ शरण दी है। ऐसे ही विपत्ति-ग्रस्त तिब्बती शरणार्थी जब 1962-63 के चीन-युद्ध के पश्चात् भारत आए तो भारत सरकार ने उन्हें मैनपाट में बसाया। यह स्थान जलवायु की दृष्टि से उनके लिए अनुकूल था। आज मैनपाट भारतीय और तिब्बती दो संस्कृतियों का संगमस्थल है। बौद्ध धर्म अनुयायी इन तिब्बती शरणार्थियों ने भगवान बुद्ध के एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया है जो भवन -निर्माण-कला की दृष्टि से अनोखा है। स्वयं बौद्ध गुरु दलाईलामा ने आकर इस मंदिर का उद्घाटन किया था। तिब्बती शरणार्थी यहाँ खेती, पशु-पालन और वस्त्र-निर्माण का धंधा करते हैं। मैनपाट में तिब्बतियों द्वारा निर्मित दरी, गलीचे (कालीन) भारत के बड़े-बड़े नगरों में विक्रय के लिए भेजे जाते हैं।
प्रकृति का लाड़ला, दो संस्कृतियों का संगम-स्थल, जियो और जीने दो का उद्घोष करने वाला मैनपाट, है न अलौकिक! क्या तुम्हारा मन इसे देखने के लिए ललचाएगा नहीं? तो फिर शिमला, मसूरी, श्रीनगर और पचमढ़ी का सैर -सपाटा करने का विचार छोड़ दो और अगली गार्मियों की छुट्टियों में मैनपाट-यात्रा की योजना बना डालो।
प्रश्न और अभ्यास
प्रश्न 1. मैनपाट कहाँ बसा है ?
प्रश्न 2. मैनपाट के पूर्वी भाग में कौन -सा दर्शनीय स्थल है ?
प्रश्न 3. मेहता प्वाइंट किन-किन जिलों की सीमा निर्धारित करता है ?
प्रश्न 4. मैनपाट किन दो संस्कृतियों का संगम स्थल है ?
प्रश्न 5. मैनपाट में तिब्बतियों द्वारा निर्मित कौन-सी वस्तु दूर-दूर तक मशहूर है ?
प्रश्न 6. तुम्हारे आस-पास घूमने लायक कोई जगह अवश्य होगी। इसके बारे में लिखो।
प्रश्न 7.यदि तुम्हे घूमने जाने का मौका मिले तो तुम कहाँ जाना चाहोगे ? और क्यों ?
प्रश्न 8.नीचे लिखे वाक्यों से क्या क्या आशय है-
क. मैनपाट का कोना-कोना दर्शनीय है।
ख. यहाँ आसपास का वनक्षेत्र वनौषधियों से भरा हुआ है।