हाना
हाना ल हिंदी म लोकोक्ति कहियें। लोकोक्ति के मतलब हे लोक उक्ति, माने लोकमानस द्वारा कोनो घटना ल लेके कहे मैं बात। इही लोकोक्ति ल छत्तीसगढ़ी महाना कहिये हाना म लोक जीवन के अनुभव समाय रहिये। हाना ह ज्ञान के भंडार आय। कोनो समस्या ल सुलझाय बर हाना ह बइ काम के होथे। हमन देखथन के पढ़े लिखे ले जादा गाँव के रहइया अप्पढ़ मनखे के गोठ बात म खूबेच प्रभाव होथे, ओकर कारन आय हाना।
हाना ह सिखावन, अचार बिचार, नीति-नियम के दरपन आय। एकर प्रयोग ले बोलइया के भाशा अउ भाव में चमत्कार के संगे संग सुग्घर प्रभाव पैदा होथे अउ सुनइया ह घलो जल्दी प्रभावित होथे। कइसनो भी हाना होय, ओ ह कोनो न कोनो घटना ले जुड़े रहिथे । जइसे –
मही माँगे ल जाय, ठेकवा लुकाय ।
सियान मन बताये के एक झन माइलोगन ह परोस म मही माँगे ल जावय फेर का करय, बिचारी ह संकोच के मारे ठेकवा ल लुका लय । ये ला घर के सियनहा ह देख इरिस अउ ओकर मुँह ले निकल परिस-मही माँगे ल जाय, ठेकवा लुकाय अइसने एक ठन अउ हाना है
अधजल गगरी, छलकत जाय ।
हम देखथन के जेन गगरी ह आधा भरे रहिये, ओ ला बोह के रेंगवे त ओ ह बहुतेच छलकथे। ये हमर रोज के अनुभव आय अइसने देखे जाये के जेखर ज्ञान ह कम रहिथे ओ ह अब्बड़ बोलथे। जीवन के कतेक सुग्घर अनुभव येमा समाय है। हाना में ज्ञान के भंडार रहिथे। एला बोलइया अउ सुनइया ह समझ सकत है।
हाना हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के सिंगार आय। जेकर ले भाषा के सुघरइ, मिठास अउ प्रभाव बढ़थे। छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य म कतको हाना मुँहअँखरा बगरे हवय, जेन ल हमन बोल-चाल के भाषा में बउरथन। छत्तीसगढ़ी हाना के गजब अकन विशेषता है। जइसे नान्हेपन, लय, तुक के मिलान, सरलता, सहजता अउ मनोरंजन । जइसे
- धीर म खीर ।
- साँच ल का आँच
- उन के दून
ये हाना मन भले नान नान दिखत हवय, फेर, ईकर प्रभाव लोक-जीवन म भारी देखउल देथे। कतकोन हाना तो कविता बरोबर लगर्थे। जइसे
- कलेवा में लाडू, नता में साडू |
- जाँगर चले न जॅगरोटा । खाय वर गहूँ के रोटा ||
हाना ह बड़ सहज अउ सरल होथे येला बोले गोठियाय म कउनो अडचन नइ होवय सरलता ह
एकर विशेषता ये।
- खाय बर जरी, बताय बर बरी ।
- मन म आन, मुँह में आन ।
छत्तीसगढ़ी म हाना ल कोनो कोनो जघा भाँजरा कहे जाथे। हाना ल कहावत अउ लोकोक्ति घलो कुल ‘मिलाके येला हाना कहव के भाँजरा कहव येला कहावत कहव के लोकोक्ति, एकेच बात आय। कहिये।
अर्थ के अधार म हाना ल खाल्हे लिखाय ढंग ले बाँटे जा सकत है
1. ठउर संबंधी हाना-
हर गाँव, शहर, नगर ठउर के अपन विशेषता होथे ओकर अलगे चिन्हारी होथे। उहाँ के रहन-सहन के अधार में ओ ठऊर के गुन-अवगुन होथे। उही गुन- अवगुन के अधार महाना के चलन देखे ल मिलथे। जइसे
छुईखदान के बस्ती, जय गोपाल के सस्ती ।
छुईखदान के राजा ह बैरागी रहिस अउ वो ह कृष्ण भगवान के भगत रहिस। उहाँ के रहइया मन अउ प्रचलित हो जथे।
आज ले आपस में जय गोपाल कहिके जोहारथे। कहे के मतलब, जेन चीज जिंहा जादा होथे ओ ह सस्ती
रात भर गाड़ी जोते, कुकदा के कुकदा अररभाँठा
कुकदा गाँव जिहाँ कोनो गाड़ी वाले ह रातकन गाड़ी फॉदिस गाड़ी ह रात भर भाँठा म घूमत रहिगे एकर अर्थ है के बिना सोचे-समझे मिहनत करे ले फल जड़ मिलय ।
2. खेती संबंधी हाना –
छत्तीसगढ़ में 80 प्रतिशत मनखे गाँव म रहिथे । इहाँ के प्रमुख काम खेती आय । छत्तीसगढ़ कृशि प्रधान क्षेत्र आय। एला धान के कटौरा घलो कहे जाये छत्तीसगढ़ी हाना म खेती-किसानी के गोठ बात ह घलो समाय हे जइसे
महतारी के परसे अउ मघा के बरसे ।
महतारी के भोजन परसे ले जइसे लइका मन अघार्थे, वइसने मघा नक्षत्र के बरसा ले खेत-खार मन अघायें।
कोरे गाँये बेटी अउ नींदे कोड़े खेती।
मतलब है, जइसे मूड़ी कोरे बेटी ह सुग्घर दिखथे वइसने नींदे कोड़े खेती सुग्घर दिखये अउ जादा उपज देथे।
3. पशु-पक्षी संबंधी हाना-
पशु-पक्षी मन मनखे के संगवारी आय, तेकरे सेती ईकर गुन अवगुन ह घलो हाना
के विषय बन गे हे। जइसे
दुधियारिन गाय के लात मीठ ।
जेकर से हम-ला काम रहिथे ओकर गुस्सा अउ मार ह घलो सुहाथे । एक ठन हाना है
सीका के टूटती अउ बिलई के झपटती ।
मतलब हे संजोग से कोई काम बन जाना।
4. प्रकृति संबंधी हाना-
लोक-जीवन प्रकृति ले जुड़े रहिथे अउ प्रकृति ह लोक ले। तेकरे सेती प्रकृति उपर घलो कोरी कोरी हाना है। जइसे
संझा के पानी, बिहनिया के झगरा
कोनो दिन जब संझा बेरा झड़ी शुरू हो जाये त रात भर बंद नइ होवय, ठका वइसने जेन घर म बिहनिया बेरा झगरा शुरू हो जाये त थमे ल नइ धरय ।
हपटे बन के पथरा, फोर घर के सील।
येहाना के मतलब है के दूसर के गुस्सा ल दूसरे उपर उतारना ।
5. अंग संबंधी हाना-
मनखे के अंग संबंधी हाना घलो लोक-जीवन में सुने ल मिलथे। जइसे
मूड के राहत ले, माडी म पागा नइ बँधाय ।
एकर मतलब ये है के सियान के रहत ले लइका के सियानी नइ चलय ।
मूह ले बड़े पागा एकर मतलब है कोनो जिनिस के महातम ल जरूरत ले जादा बताना।
6. घर-परिवार संबंधी हाना-
हाना के विषय विविध है। जेन म घर-परिवार, नता रिश्ता के गोठ घलो समाय रथे । जइसे
- हँडिया के मुँह ल परई म तोपे,
- मनखे के मुँह ल कामा ।
एकर सोज-सोज अर्थ है,हर मनखे बोले बर सुतंत्र है, निंदा करइया ल कोन रोक सकत है। चलनी म दूध दूह, करम ल दोस देय।
एकर मतलब हे अंते-तंते के काम करना अउ अपन करम ल दोस देना ।
7. नीति संबंधी हाना-
जिनगी म नीति-नियम के बड़ महात्तम है, ये नीति-नियम ह लोक-जीवन म देखे बर मिलथे। नीति संबंधी हाना ह जिनगी बर उपदेश के काम करथे । जइसे –
रिस खाय बुध बुध खाय परान ।
माने गुस्सा करे म बुद्धि सिरा जाथे अउ जब बुद्धि सिरा जाथे त मनखे परान ल घलो गँवा डराथे।
बोय सोन जामय नहीं, मोती लुरे न डार, गै समय बहुरय नहीं, खोजे मिले न उधार ।
ये हाना म कतका सुग्घर नीति के गोठ लुकाय हे सोन ल बो देबे त वो जामय नहीं, मोती ह कोनो डारा म फरय नहीं। माने, मनखे ल कुछ पाना हे त ओला मेहनत करना जरूरी है। वइसने जेन समय ह नहक जाथे तेन ह लहुट के नइ आवय । न कोनो मेर खोजे म मिलयन कहूँ उधार मिलय । कहे के मतलब हे के समय बड़ कीमती है, हमला समय के बने उपयोग करना चाही। छत्तीसगढ़ी साहित्य म अतकेच नहीं, हाना के अउ कतकोन किसम है। जइसे जात संबंधी हाना, समाज संबंधी हाना, धन-सिक्का संबंधी हाना, हाँसी ठिठोली के हाना। एला हम ला अपन भाषा-व्यवहार म बऊरना चाही।