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  सेनापति का साहित्यिक परिचय

सेनापति का साहित्यिक परिचय

सेनापति भक्ति काल एवं रीति काल के सन्धियुग के कवि हैं। इनके द्वारा रचित ‘कवित्त रत्नाकर’ के छन्द के आधार पर इतना ही ज्ञात है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा इनके पिता का नाम गंगाधर तथा पितामह का नाम परशुराम दीक्षित था।

सेनापति जी की रचनाएँ

सेनापति के दो मुख्य ग्रंथ हैं- ‘काव्य-कल्पद्रुम’ तथा ‘कवित्त-रत्नाकर’। जिसकी उपमाएँ अनूठी हैं।

सेनापति जी का वर्ण्य विषय

सेनापति राम के विशेष भक्त थे। शिव तथा कृष्ण विषयक कविता लिखते हुए भी रूचि राम की ओर अधिक थी।

सेनापति जी का लेखन कला

सेनापति के काव्य में रीतिकालीन काव्य-परम्परा की झलक अधिकांश छन्दों में स्पष्ट रूप से विद्यमान है। चमत्कार प्रियता तथा नायिका भेद के उदाहरण भी उनकी कृतियों में उपलब्ध हैं।

सेनापति ने अपने काव्य में सभी रसों को अपनाया है। ब्रजभाषा में लिखे पदों में फारसी और संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग किया है। अलंकारों की बात करें तो सेनापति को श्लेष से तो विशेष मोह था।

सेनापति का काव्य अपने सुन्दर यथातथ्य और मनोरम कल्पनापूर्ण षट्ऋतु वर्णन के लिए प्रसिद्ध हैं। 

भाव एवं कल्पना चमत्कार के साथ-साथ वास्तविकता का चित्रण सेनापति की विशेषता है। सबसे प्रधान तत्व सेनापति की भाषा शैली का है जिसमें शब्दावली अत्यंत, संयत, भावोपयुक्त, गतिमय एवं अर्थगर्भ है।

सेनापति जी साहित्य में स्थान

सेनापति भक्ति काल एवं रीति काल के सन्धियुग के कवि हैं।