प्रकृति से ठाकुर स्वच्छंद, मनमौजी, निर्भीक, स्पष्टवादी, स्वाभिमानी, सौंदर्यप्रेमी, भावुक, ‘विरोधियों के प्रति उग्र एवं सहयोगियों के प्रति सहृदय’, उदार और बुद्धि के दूरदर्शी, कुशल, मर्म तक पहुँचनेवाले तथा देशकाल की गति को अच्छी तरह पहचाननेवाले व्यक्ति थे।
ठाकुर जी का साहित्यिक जीवन परिचय
ठाकुर रीतिकालीन रीतियुक्त भाव-धारा के विशिष्ट और प्रेमी कवि थे जिनका जन्म ओरछे में सं० १८२३ और देहावसान सं० १८८० के लगभग माना गया है। इनका पूरा नाम था ठाकुरदास। ये श्रीवास्तव कायस्थ थे।
ठाकुर जी की रचनाएँ
‘ठाकुर शतक’ और ‘ठाकुर ठसक’
ठाकुर जी का वर्ण्य विषय
‘प्रेमविषयक ऐसे सच्चे और टकसाली छंद प्राय: किसी भी कवि की रचना में नहीं पाए जाते। इस महाकवि ने मानुषीय प्रकृति और हृदयंगम भावों एवं चितसागर की तरंगों को बड़ी ही सफलतापूर्वक चित्रित किया है’
मिश्रबंधु
‘भाषा, भाव-व्यंजना, प्रवाह, माधुरी किसी भी विचार से ठाकुर का कोई भी कवित्त या सवैया उठाइए, पढ़ते ही हृदय नाच उठेगा
विश्वनाथप्रसाद मिश्र
ठाकुर जी का लेखन कला
सामान्य व्यवहार की चलती हुई ब्रजभाषा का प्रयोग ही उसने किया है। अकृत्रिम भाषाशैली, सुकुमार भावाभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त सक्षम है। लोकोक्ति, मुहावरे और लोकप्रचलित तद्भव शब्दों का जैसा युक्तियुक्त और सटीक उपयोग इस कवि ने किया है वैसा अन्य किसी ने नहीं।
ठाकुर जी साहित्य में स्थान
रीतिकालीन कवि