हम पंछी उन्मुक्त गगन के – डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ कक्षा 6वीं हिन्दी

पद्यांशों की व्याख्या

1. हम पंछी…..’टूट जायेंगे ॥

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भारती’ के पाठ-10 ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ से लिया गया है। इसके कवि डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं।

प्रसंग-सोने के पिंजरे में कैद पंछी अपनी व्यथा व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या-पंछी कह रहे हैं कि हम स्वतन्त्र विचरण करने वाले पंछी हैं। हम पिंजरे में कैद होकर नहीं रह पायेंगे और न ही बोल पायेंगे। भले ही सोने की जंजीरों से टकराकर प्रसन्नता के कारण हमारे पंख टूट जायेंगे ।

2. हम बहता……….. मैदा से ॥

व्याख्या— पंछी कह रहे हैं कि हम बहता जल पीने वाले भले ही भूख-प्यास से मर जायेंगे, लेकिन उस पिंजरे में सोने की कटोरी में रखी मैदा से तो अच्छा हमारे लिए नीम की कड़वी निबौरी है।

3. स्वर्ण-श्रृंखला……….पर के झूले ॥

व्याख्या-पंछी कह रहे हैं कि सोने की जंजीर से जकड़े हुए हम अपनी गति और उड़ान सब भूलने लगे हैं। इन्हें बस सपनों में देख रहे हैं। वृक्ष के सिरे पर बैठकर झूलना तो अब बस सपनों की बात बन गई है।

4. ऐसे थे अरमान…….अनार के दाने ॥

व्याख्या-पंछी कह रहे हैं कि हमारे अरमान थे कि हम उड़ते हुए नील गगन (आसमान) की सीमा जहाँ समाप्त होती है, वहाँ तक जाते और अपने लाल रंग की किरण-सी चोंच को खोलकर तारों जैसे अनार के दानों को चुगते ।

5. होती सीमा हीन………साँसों की डोरी ॥

व्याख्या-पंछी कह रहे हैं कि इस सीमाहीन क्षितिज (जहाँ धरती – आसमान मिलते हुए दिखते हैं वह स्थान) पर जाने हेतु हमारे पंखों में प्रतियोगिता सी होगी। या तो हम क्षितिज तक पहुँच पाते या फिर रास्ते में ही थक कर रुक जाते ।

6. नीड़ न दो……..विघ्न न डालो।।

व्याख्या-पंछी कह रहे हैं कि चाहे हमें टहनी पर घोंसला न दो, चाहे हमारा सहारा ही छीन लो, लेकिन जब हमें ईश्वर द्वारा पंख मिले हैं तो हमारी बेचैन उड़ान में बाधा मत डालो।

अभ्यास पाठ से

प्रश्न 1. पिंजर बद्ध पंछी के क्या-क्या अरमान थे ?

उत्तर – पिंजर बद्ध पंछी के अरमान थे कि उड़ते हुए नील गगन (आसमान) की सीमा जहाँ समाप्त होती है, वहाँ तक जाते और अपने लाल रंग की किरण-सी चोंच को खोलकर तारों जैसे अनार के दानों को गते चुगते।

प्रश्न 2. हर तरह की सुख-सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बन्द क्यों नही रहना चाहता है?

उत्तर- पंछी स्वतंत्र विचरण करने वाला जीव है। पिंजरे में वह कैदी बन जाता है। जहाँ उसे कुछ भी करने की आजादी नहीं मिलती है। इस कारण पक्षी पिंजरे में बन्द नहीं रहना चाहता है।

प्रश्न 3. पुलकित पंखों का आशय क्या है?

उत्तर- प्रसन्न होकर जो पंख विचरण करते थे उन्हें पुलकित पंख कहा गया है।

प्रश्न 4. स्वर्ण श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले से कवि का क्या आशय है?

उत्तर- पंछी कह रहे हैं कि सोने की जंजीर से जकड़े हुए हम अपनी | गति और उड़ान सब भूलने लगे हैं। इन्हें बस सपनों में देख रहे हैं। वृक्ष के सिरे पर बैठकर झूलना तो अब बस सपनों की बात बन गई है। यही कवि का आशय है।

प्रश्न 5. उन्मुक्त गगन के पंछी से क्या आशय है?

उत्तर- पंछी कह रहे हैं कि हम स्वतंत्र विचरण करने वाले पंछी हैं। हमें पिंजरे में कैद होकर रहना पसंद नहीं है हम स्वतंत्र होकर आकाश में उड़ना चाहते हैं। उन्मुक्त गगन के पंछी से यही आशय है।

प्रश्न 6. कनक तीलियों से कवि का क्या आशय है?

उत्तर-सोने की जंजीरों से टकराकर प्रसन्नता के कारण हमारे पंख टूट जायेंगे। कनक तीलियों से कवि का यही आशय है।

प्रश्न 7. निम्नलिखित पद्यांशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

(क) ऐसे थे अरमान कि उड़ते, नील गगन की सीमा पाने, लाल किरण-सी चोंचे खोल, चुगते तारक अनार के दाने ।

उत्तर-पंछी कह रहे हैं कि हमारे बड़े अरमान थे कि हम नीले आसमान की अन्तिम सीमा को पाने के लिए उड़ान भरते। अपने लाल रंग की किरण के समान चोंच खोलकर तारों जैसे अनार के दोनों को चुगते ।

(ख) नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो। लेकिन पंख दिए हैं तो, आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।

उत्तर- पंछी कह रहे हैं कि हमारे रहने के स्थान को चाहे तो गिरा दो और हमें टहनी पर घोंसले भी बनाने मत दो। लेकिन हमारी व्याकुल उड़ान में बाधा मत डालो क्योंकि जब हमें ईश्वर ने पंख दिये हैं तो हमें उड़ने दो।

Leave a Comment