हमर कतका सुंदर गाँव – श्री प्यारेलाल गुप्त कक्षा 6 वीं हिन्दी पद्यांशों की व्याख्या

1. हमर कतका…….परुस लथ गुइयाँ।
सन्दर्भ- हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भारती’ के पाठ-18 ‘हमर कतका सुंदर गाँव’ से लिया गया है जिसके कवि श्री प्यारेलाल गुप्त जी हैं।
प्रसंग-ग्रामीण परिवेश का वर्णन किया गया है। व्याख्या – गुप्त जी कहते हैं कि हमारा गाँव इतना सुन्दर है, इतना स्वच्छ है जिस तरह लक्ष्मीजी के पाँव हैं। गाँव के कच्चे मकान इतने साफ-सुधरे लिये पुते हुए हैं जिनके सामने बड़ी-बड़ी हवेली (महल) को कोई नहीं देखता। यहाँ की धरती इतनी स्वच्छ है कि उस पर भात (पका हुआ चावल) को सखी के द्वारा परोसा जा सकता है।
2. अँगना मा तुलसी…….अनपूरना के ठाँव ।
व्याख्या-कवि कहते हैं कि हमारे गाँव के प्रत्येक घर के आँगन में तुलसी के चौरा है, गौशाला है, जहाँ गाय-बैल आदि जानवर हैं पास में ही बाड़ी है, जहाँ अनेक प्रकार की साग-सब्जी बोयी जाती हैं। इस तरह हमारा गाँव सभी प्रकार के अन्न से परिपूर्ण स्थान है।
3. बाहिर मा खातू …….. नित खायें।
प्रसंग-ग्रामीण वातावरण का चित्रण किया गया है।
व्याख्या-कवि कहते हैं कि हमारे गाँव के बाहर में कचरा डालने व गोबर इकट्ठा करने के लिए गड्ढे हैं, जो कुछ दिन बाद खाद बन जाता है और इस खाद का उपयोग खेत में फसलों के लिए करते हैं जिससे अन्न अधिक उपजता है। हमारे गाँव में अन्न के अधिक उपजने से खलिहान में कटी हुए फसल को इकट्ठी करके रखते हैं। खेत से खलिहान तक बैलगाड़ी के माध्यम से फसल को लाया जाता है और गन्ने के खेत हैं, पास में शहद, गुड़ बनाये जाते हैं, जहाँ रोज मीठे-मीठे गुड़ बनते हैं, रोज खाते हैं।
4. जहाँ पक्का घाट…..’लगे न छाँव ।
व्याख्या-कवि कहते हैं कि गाँव में तालाब के किनारे पक्का घाट बना हुआ है वहाँ लोग नहाने जाते हैं। उस तालाब का पानी बिल्कुल ही साफ है। उसमें कमल के लाल फूल खिले हुए हैं। पास में ही आम का बगीचा है, जहाँ बेर और मकैया के पेड़ है। सरसों के पीले फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे नयी नवेली दुल्हन के साड़ी हो। इस प्रकार गाँव में बाग-बगीचे धूप-छाँव की कोई चिन्ता नहीं होती है।
5. आपस मा…….कतका सुन्दर गाँव ॥
व्याख्या-कवि कहते हैं कि गाँव के लोग बड़े ही भोले-भाले व सीधे होते हैं जो लड़ाई-झगड़े से अनजान रहकर आपस में मिलकर रहते हैं। उसे मुकदमेबाजी से कोई मतलब नहीं होता। उनमें आपस में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं रहता। सभी लोग दुःख-सुख में एक साथ मिलकर रहते हैं। एक-दूसरे का सुख-दुःख बाँटते हैं, जिस प्रकार एक दिया में दो बत्ती। हमारा गाँव इतना सुन्दर है कि वहाँ कोई भी किसी से कोई बात छिपाकर नहीं रखते। आपस में सब मिल-जुलकर रहते हैं।
अभ्यास
पाठ से
प्रश्न 1. कवि ह गाँव मन ल लछिमी जी के पाँव काबर कहे हवय ?
उत्तर-गाँव के कच्चा मकान लिपाय-पोताय हे जेखर ले बहुत उज्जर दिखत हे ऐखर सामने में महल भी फीका लागत है । इहाँ के भुइयाँ अनेक साफ-सुथरा दिखत हे के ओमा भात ला परोसे जा सकत हे। ऐखरे सेती कवि है गाँव मन ल लक्ष्मी जी के पाँव कहे हावय।
प्रश्न 2. गाँव के घर मन ल देख के हवेली काबर दुखी होये ?
उत्तर- गाँव के घर मन साफ सुथरा लिपाये पोताये रहीये ओला देख के हवेली दुखी हो थे ।
प्रश्न 3. अनपूरना के ठाँव कहाँ हावय ?
उत्तर-जिहाँ साग-भाजी बोयन उहे अनपूरना के ठाँव हावय।
प्रश्न 4. धरती ह कइसे किसम ल अन्न उपजाये ?
उत्तर- गाँव के बाहिर में घुरुवा रहिये जेमा गोबर अउ कचरा ल इकट्ठा करे जाये वोहर फेर खातू बन जाये। उही खातू ल खेत में बगरा दे जाये जेकर असर ले धरती में अन्न उपजये ।
प्रश्न 5. कोठा मा का का जिनिस रखे जाये ?
उत्तर-कोठा मा बइला, गरुवा, बछरू, छेरी, पठरू ये सब ल रखे जाये।
प्रश्न 6. ‘जइसे एक दिया दू बाती’ पंक्ति म कवि ह का बताय हावय ?
उत्तर- “जइसे एक दिया दू बाती” पंक्ति म कवि ह बताय हावय के गाँव के लोगन मन कोनो परकार ले भेदभाव, ऊँच-नीच नइ जानय । जे परकार ले एक दिया मा दू बाती है बिना भेदभाव के एक साथ जलके घल उजियार करथे वइसने गाँव के लोगन मन एक-दूसरे के सुख-दुःख मा एक हो जाये अउ उखर मन मा कोनो परकार ले छल कपट नइ राहय ।
प्रश्न 7. कवि ह नवा बहू के लुगरा ल सरसों के फूल के संग तुलना काबर करे हावय।
उत्तर- गाँव में बिहाव के बखत पींवरा लुगरा के चलन है। जब नवा बहू बिहाव होके अपन ससुराल आये त पीवरा रंग के लुगरा पहिरे थे । सरसों के फूल ह पींवरा रंग के खिले रथे। ऐखरे सेती कवि ह नवा बहू के फूल संग तुलना करे हावय। लुगरा ल सरसों के
प्रश्न 8. अँगना में तुलसी-चौरा लगाय के का कारण होही ?
उत्तर- अँगना में तुलसी चौरा लगाय के धार्मिक महत्व हावय। हर हिन्दू घर में तुलसी चौरा होये ऐखर पूजा करे ले घर मा अन्न, धन एवं सुख शांति मिलथे। तुलसी के प्राकृतिक महत्व घलो हावय तुलसी हवा ल शुद्ध करचे तेकर सेती हर घर अंगना म तुलसी चौदा होये।)