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प्राकृत पैंगलम

प्राकृत पैंगलम: आदिकालीन हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ

प्राकृत पैंगलम एक ऐसा ग्रंथ है, जो आदिकालीन हिंदी साहित्य के स्वरूप को दर्शाता है। इस ग्रंथ का संकलन लक्ष्मीधर ने किया, और इसमें विद्याधर, शार्ड्गधर, जज्जल और बब्बर जैसे महत्वपूर्ण कवियों की रचनाओं का संग्रह किया गया है। यह ग्रंथ न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों को भी उजागर करता है।

1. विद्याधर
विद्याधर काशी के कान्यकुब्ज दरबार में एक प्रतिष्ठित और विद्वान मंत्री थे। वे जयचन्द के विश्वासपात्र मंत्री थे, और उनके साहित्यिक योगदान ने हिंदी साहित्य को महत्वपूर्ण दिशा दी। उनके कार्य आदिकालीन साहित्य की विशिष्टता को सामने लाते हैं।

2. शार्ड्गधर
दूसरे महत्वपूर्ण कवि शार्ड्गधर हैं, जिनकी रचनाएँ शार्ड्गधर पद्धति के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने एक सुभाषित ग्रंथ की रचना की, जिसमें भक्ति और धार्मिक विचारों का समावेश है। शुक्ल जी ने शार्ड्गधर के द्वारा रचित हम्मीर रासो की चर्चा की है, जो उस समय के काव्य जगत में एक महत्त्वपूर्ण काव्य ग्रंथ था।

3. जज्जल
तीसरे कवि जज्जल का नाम उल्लेखनीय है। ‘जज्जल भणइ’ इस पद से राहुल जी ने इसे जज्जल कवि की रचना माना है। उनकी रचनाएँ आदिकालीन काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। जज्जल की काव्य शैली में सटीकता और सजीवता थी, जो उस समय के समाज और संस्कृति की अच्छी छवि प्रस्तुत करती हैं।

4. बब्बर
चौथे महत्त्वपूर्ण कवि बब्बर हैं, जो 11वीं शताब्दी के कवि थे। बब्बर राज कर्ण कलचुरी के दरबारी कवि थे और त्रिपुरी में उनका निवास था। हालांकि उनका कोई विशिष्ट ग्रंथ नहीं मिलता है, फिर भी उनकी कविताएँ उनके समय की राजनीति और संस्कृति को जानने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं।

प्राकृत पैंगलम का महत्त्व
प्राकृत पैंगलम एक प्रामाणिक ग्रंथ के रूप में आदिकाल हिंदी साहित्य के अध्ययन के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह हमें उस समय के साहित्यिक प्रवृत्तियों, सामाजिक संरचनाओं और सांस्कृतिक परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करता है। इसके माध्यम से हम आदिकाल की काव्य परंपराओं, उनके रचनाकारों और उनके योगदानों को सही रूप में समझ सकते हैं।