नीति के दोहे – तुलसी / रहीम / कबीर कक्षा 6वीं हिन्दी

पद्यांशों की व्याख्या

1. तुलसी मीठे बचन ………..बचन कठोर ॥

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भारती’ के पाठ-17 ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि श्री तुलसीदास जी हैं।

प्रसंग-तुलसीदास ने यहाँ पर मीठी वाणी की महत्ता बताई है। व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन से सभी तरफ सुख उत्पन्न होता है। यह सभी को वश में करने वाला एक मंत्र है। कठोर वचन से तो भगवान भी दूर हो जाते हैं।

2. मुखिया मुख ……..सहित बिबेक ॥

प्रसंग – प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी बताते हैं कि मुखिया को मुँह के समान होना चाहिए।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया को मुख के समान होना चाहिए। जैसे हम मुख से खाते हैं लेकिन वह सभी अंगों को समान रूप से चलाता, उनका पोषण करता है। उसी प्रकार मुखिया को घर में सभी सदस्यों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

3. आवत ही हरषै ………….बरसै मेह ॥

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी वहाँ जाने से मना करते हैं, जहाँ स्नेह नहीं है।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि हमें उस स्थान पर नहीं जाना चाहिए, जहाँ हमारे जाने से कोई प्रसन्न नहीं होता हो और उनके हृदय में हमारे लिए स्नेह ही न हो ऐसे स्थान पर यदि सोना भी बरसे, तो भी वहाँ नहीं जाना चाहिए।

4. तुलसी संत …………ये फल देत ॥


प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास ने परोपकारी बनने की बात कही है।

व्याख्या- तुलसीदास जी सन्त महात्मा और आम के पेड़ की समानता बताते हुए कहते हैं कि आम के पेड़ में जिस प्रकार चौर लगकर फल बनते हैं। वह मीठा फल दूसरों के काम आता है और उस फल को हम तोड़ने के लिए जितने पत्थर मारते हैं उतने फल हमें देते हैं। अर्थात् सन्त महात्मा भी आम के पेड़ की तरह परोपकार की भावना रखते हैं।

उसे चाहे कितना भी प्रताड़ित कर लें फिर भी वह कुछ नहीं कहता और हमें ज्ञान व सीख की बातें बताते हैं।

5. तरुवर फल………”सुजान ॥

सन्दर्भ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भारती’ के पाठ-17 ‘नीति के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम है।

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने परोपकार पर बल दिया है।

व्याख्या- प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और न ही तालाब स्वयं अपना पानी पीता है। कवि रहीम कहते हैं कि समझदार व्यक्ति वही है, जो अपनी सम्पत्ति का उपयोग परोपकार के कार्यों में करता है।

6. रहिमन देखि बडेन…………..तरवारि ॥

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने छोटे का महत्व दर्शाया है।

व्याख्या – कवि रहीम कहते हैं कि बड़े को देखकर छोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो काम सुई कर सकती है यह तलवार से होता है अर्थात् जिसकी जहाँ उपयोगिता होती है वह वस्तु उसी स्थान नहीं पर उपयोगी होती है।

7. जो रहीम …..रहत भुजंग ॥

प्रसंग प्रस्तुत दोहे में उत्तम प्रकृति के मनुष्य की विशेषता बतायी गयी है।

व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि जो व्यक्त्ति उत्तम प्रकृति (चरित्र) का होता है वह कुसंगति मिलने पर भी बिगड़ता नहीं है; जैसे-चंदन के वृक्ष पर अजगर के लिपटे रहने पर भी चन्दन विषैला नहीं होता है।

8. रहिमन निज ……..लैहे कोय ॥

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम मन की व्यथा को व्यक्त नहीं करने की बात कह रहे हैं।

व्याख्या-कवि रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा (बात) को मन में ही रखना चाहिए, क्योंकि दूसरे लोग सुनकर तुम्हीं को हँसी का पात्र बना सकते हैं। क्योंकि आपकी व्यथा को दूसरा व्यक्ति कम नहीं कर सकता है।

9. काल करै सो ……….करेगा कब ॥

प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि ने समय की महत्ता का वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि जो कार्य कल करना है, उसे आज ही कर लो और आज का काम तुरन्त कर लो। किसी भी क्षण प्रलय आ सकती है, फिर वह कार्य कब करेगा।

10. माला तौ कर ………..सुमिरन नाहि

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में ईश्वर की आराधना शान्त मन से करने को कहा गया है।

व्याख्या-कवि कहते हैं कि हाथ में माला लेकर फेरते और मुख से ईश्वर स्तुति करते हुए यदि हमारा मन कहीं और है तो इस प्रकार ईश्वर की आराधना नहीं होती है।



11. अति का भला ………..भली न घूप ॥

प्रसंग – प्रस्तुत पद में अति (सीमा से अधिक) के दुष्परिणामों को बताया गया है।

व्याख्या-कवि कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना ठीक नहीं है और न ही ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। ज्यादा वर्षा भी किसी का भला नहीं करती, न ही अत्यधिक गर्मी अच्छी लगती है। कवि कहना चाहता है कि अति (अधिकता) किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती है।

12. दुरलभ मानुष ….. लागे डार ॥

प्रसंग-मनुष्य जन्म की महत्ता बताई गई है।

व्याख्या -कवि कहते हैं कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है, यह शरीर बार-बार नहीं मिलता है। इसलिए इस जन्म में हमें अच्छा कार्य कर लेना चाहिए क्या पता फिर मनुष्य तन मिले ? ना मिले। जैसे- वृक्ष से गिरा हुआ पत्ता फिर से डाली पर नहीं लगता है।

अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1. आम के पेड़ और संत में क्या समानता है ?

उत्तर- जिस प्रकार आम के पेड़ पर मीठे फल दूसरों की भलाई के लिए होते हैं, उसी प्रकार संत महात्मा भी आम के पेड़ की तरह परोपकारी भावना रखते हैं। आम तोड़ने के लिए पेड़ पर जितना पत्थर मारते हैं वह उतने ही फल देता है उसी प्रकार संत महात्मा भी परोपकार की भावना रखते हैं चाहे उन्हें कितना भी प्रताड़ित किया जाए लेकिन वे कहते और हमें ज्ञान व सीख तथा परोपकार की शिक्षा देते हैं। यही समानता है आम के पेड़ और संत में। कुछ नहीं

प्रश्न 2. परोपकार के महत्त्व को रहीम ने किस प्रकार समझाया है ?

उत्तर- परोपकार के महत्व को रहीम ने वृक्ष और तालाब के माध्यम से समझाया है कि जिस प्रकार वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते और तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीते हैं, वे परोपकार ही करते हैं उसी प्रकार मनुष्य को अपनी सम्पत्ति को परोपकार में लगाना चाहिए।

प्रश्न 3. “उत्तम प्रकृति वाले व्यक्ति कुसंगति से प्रभावित नहीं होते. है।” इसे समझाइए ।

उत्तर- उत्तम प्रकृति वाले व्यक्ति पर कुसंगति का प्रभाव नहीं पड़ता है; जैसे-चंदन के वृक्ष पर विषैले साँपों के लिपटे रहने पर भी चंदन पर विष का प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रश्न 4. ‘मनुष्य देह नाशवान है, इस कथन को कबीर ने कैसे सिद्ध किया है ?

उत्तर- जिस प्रकार वृक्ष से गिरा पत्ता वापस शाखा पर जाकर नहीं लगता है, उसी प्रकार मनुष्य एक बार मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर वापस शरीर धारण नहीं करता है।

प्रश्न 5. भले लोग हमेशा दूसरों के लिए ही कार्य करते हैं। रहीम जी ने इस बात को किस तरह समझाया है?

उत्तर- प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और न ही तालाब स्वयं अपना पानी पीता है। कवि रहीम कहते हैं कि समझदार व्यक्ति वही है जो सम्पत्ति को परोपकार के कार्यों में लगाता है। रहीम जी ने इस बात को इस तरह समझाया कि भले लोग हमेशा दूसरों के लिए ही कार्य करते हैं।

प्रश्न 6. मानव के रूप में जन्म को दुर्लभ क्यों बताया गया है ?

उत्तर- संत कबीर दास जी ने मानव जन्म को दुर्लभ बताया है। क्योंकि यह मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता है। जिस प्रकार वृक्ष की शाखा से टूट कर गिरे पत्ते को शाखा से जोड़ने का बार-बार प्रयास करने पर भी नहीं जुड़ता है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता है। अतः मनुष्य को अच्छे कर्म कर इस दुनिया से विदा होना चाहिए। अतः संत कबीर दास जी ने मानव जन्म को दुर्लभ बताया है।

प्रश्न 7. तुलसी ने मीठे वचन को वशीकरण मंत्र क्यों कहा है?

उत्तर-तुलसीदास जी ने मीठे वचन को वशीकरण मंत्र इसलिए कहा है क्योंकि मीठे बोल से सभी प्रसन्न होते हैं। मीठे बोल से ही हम लोगों का मन जीतकर उसे अपने वश में कर सकते हैं।

प्रश्न 8. तुलसी के अनुसार हमें कैसे स्थान पर नही जाना चाहिए ?

उत्तर- तुलसी के अनुसार हमें ऐसे स्थान पर नहीं जाना चाहिए जहाँ पर हमारा सम्मान न होता हो व स्नेह की भावना न हो।

प्रश्न 9. आज का काम कल पर क्यों नहीं टालना चाहिए ?

उत्तर- आज का काम कल पर इसलिए नहीं टालना चाहिए क्योंकि जीवन क्षणभंगुर है, यह कभी भी नष्ट हो सकता है। कल के बारे में कोई नहीं जानता।

प्रश्न 10. निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए-

(क) तुलसी संत सुअंब तरु, फूलि – फलहिं पर देव ।

इतते ये पाहन हनत, उतते ये फल देत ।।

अर्थ-तुलसीदास जी सन्त महात्मा और आम के पेड़ की समानता •बताते हुए कहते हैं कि आम के पेड़ में जिस प्रकार बौर लगकर फल बनते हैं। वह मीठा फल दूसरों के काम आता है और उस फल को हम तोड़ने के लिए जितने पत्थर मारते हैं वे उतने फल हमें देते हैं। अर्थात् सन्त महात्मा भी आम के पेड़ की तरह परोपकर की भावना रखते है चाहे उसे कितना भी प्रताड़ित करने लें फिर भी वह कुछ नहीं कहता और हमें ज्ञान और सीख की बातें बताते हैं।

(ख) जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।

चंदन विष व्यापै नही, लिपटे रहत भुजंग।।

उत्तर-अर्थ-कवि रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम प्रवृत्ति (चरित्र) के होते हैं वह कुसंगति से भी बिगड़ते नहीं है; जैसे-चंदन के वृक्ष पर सर्प के लिपटे रहने पर भी चन्दन का पेड़ विषैला नहीं होता है।

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