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कोई नहीं पराया – श्री गोपालदास नीरज’ कक्षा 7वीं हिन्दी

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

मैं न बंधा हूँ, देश काल की जंग लगी जंजीर में,

मैं न खड़ा हूँ, जात-पांत की ऊँची-नीची भीड़ में,

मेरा धर्म न कुछ स्याही शब्दों का सिर्फ गुलाम है,

मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,

मुझसे तुम न कहो मंदिर-मस्जिद पर सर मैं टेक दूँ,

मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भारती के ‘कोई नहीं पराया’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत कविता के कवि श्री गोपाल दास ‘नीरज’ हैं।

प्रसंग – इसमें कवि सम्पूर्ण संसार को अपना घर मानता है।

व्याख्या -कवि कहते हैं कि यहाँ कोई दूसरा नहीं है, सारा संसार ही मेरा घर है। मैं देश की, धर्म व जाति की जंजीर से नहीं बँधा हूँ। मैं जात-पाँत की ऊँच-नीच की भीड़ में भी नहीं खड़ा हूँ। मेरा धर्म स्याही से लिखे हुए कुछ शब्दों का गुलाम नहीं है। मैं तो बस यही कहता हूँ कि यदि आपस में प्यार है तो कण-कण में (हर जगह) राम है। मुझसे तुम मंदिर या मस्जिद में सिर झुकाने के लिए मत कहना। मेरा आराध्य मनुष्य और हर घर का दरवाजा मंदिर है। यहाँ कोई दूसरा नहीं सारा संसार ही मेरा घर है।


2. कही रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इंसान है,

मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,

अरे नहीं देवत्व मुझे तो भाता है मनुजत्य ही,

और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी,

मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,

मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गो से ज्यादा सुकुमार है।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भारती के ‘कोई नहीं पराया’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि श्री गोपाल दास ‘नीरज’ है।

प्रसंग- इस प्रथांश में कवि ने मानवता का अभिमान और धरती की कोमलता का वर्णन किया है।


व्याख्या-कवि कहते हैं कि कोई भी इंसान कहीं भी और कैसे भी रहता हो यदि उसमें इंसानियत है तो वह मुझे प्रिय है। मैं अपनी मानवता पर गर्व का अनुभव करता हूँ क्योंकि मुझे देवत्व नहीं मानवता ही अच्छी लगती है। मुझे इस संसार में प्रेम को छोड़, कुछ भी स्वीकार नहीं, यहीं तक अमरत्व भी स्वीकार नहीं है। इसलिए तुम मुझे स्वर्ग के सुख की मधुर कहानियाँ मत सुनाओ, प्यार मुहब्बत, भाई-चारा आदि से युक्त मेरी इस धरती का सुख, स्वर्ग-सुख से सौ गुना अधिक मधुर एवं सुखदायी है।

मैं सिखलाता हूँ कि जिओ और जीने दो संसार को,

जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,

हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह पूल भी

चलो इस तरह कुचल न जाये पग से कोई फूल भी,

सुख न तुम्हारा सुख, केवल जग का भी इसमें भाग है,

फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक भारती के ‘कोई नहीं पराया’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि श्री गोपाल दास ‘नीरज’ है।

प्रसंग- इसमें कवि ने मनुष्य को कुछ सीख दी है।

व्याख्या— कवि कहते हैं कि मैं मनुष्य को यह सिखाना चाहता हूँ कि ‘जिओ और जीने दो’, संसार के सभी प्राणियों में जितना प्यार बाँट सकते हो बाटो। इस तरह संसार में कार्य करो कि तुम्हारे साथ दलित व दबे हुए लोग भी कार्य कर सकें। इस तरह चलो कि तुम्हारे पैर से कोई फूल कुचल न जाए। कवि ने अपने सुख में सभी को शामिल करने की बात कही है। फूल सबसे पहले बागिया की शोभा होता है, डाल की शोभा बाद में, उसी तरह मनुष्य पहले संसार की शोभा है, देश व जाति की शोभा बाद में यहाँ कोई दूसरा नहीं सारा संसार ही मेरा घर है।

अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1. कवि को मानवता पर क्यों अभिमान है ?

उत्तर- कवि को मानवता पर अभिमान इसलिए है क्योंकि वे मानवता के पुजारी है, उन्हें देवत्व नहीं मानवता अच्छी लगती है। उन्हें संसार में प्रेम को छोड़कर कुछ भी स्वीकार नहीं है।

प्रश्न 2. जात-पाँत के बन्धनों ने मानवता को क्या हानि पहुँचाई है ?

उत्तर-जात-पाँत के बंधनों ने मानवता को बहुत हानि पहुँचायी है। जात-पाँत की इस संकीर्ण भावना ने लोगों के बीच नफरत की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी है कि आये दिन इस नाम से दंगे होते रहते हैं जिनमें हजारों आदमी मारे जाते है। कवि की है कि यह भावना समाप्त हो।

प्रश्न 3. स्वर्ग सुख की सुकुमार कहानियों को कवि क्यों नहीं सुनना चाहता है ?

उत्तर-क्योंकि कवि प्यार मुहब्बत, भाईचारा आदि से युक्त अपनी इस धरती के सुख को स्वर्ग सुख से सौ गुना अधिक मधुर एवं सुखदायी मानते है इसलिए स्वर्ग सुख की सुकुमार कहानियों को नहीं सुनना चाहते हैं।

प्रश्न 4. कवि संसार को क्या सिखाना चाहता है ?

उत्तर- कवि मानव धर्म को सर्वोपरि मानते हैं। कवि के अनुसार हम सब ईश्वर की संतान है इसलिए भाई-भाई हैं। आये दिन जाति, धर्म और साम्प्रदायिकता के नाम पर होने वाले दंगे और नफरत की दीवारों को तोड़ना सिखाना चाहता है।

प्रश्न 5. ‘जंग लगी जंजीर’ किसे और क्यों कहा गया है ?

उत्तर- कवि ने ‘जंग लगी जंजीर अपने पराये से ग्रसित भावना को कहा है। ऐसा इसलिए कहा क्योंकि अपने-पराये की भावना में फँसा व्यक्ति उसी प्रकार मानवता को नष्ट करता है जिस प्रकार जंग लोहे की जंजीर को नष्ट कर देती है।

प्रश्न 6. धर्म को कवि ने कुछ स्याह शब्दों का गुलाम क्यों कहा है ?

उत्तर—क्योंकि धर्म स्वाह शब्दों में लिखा गया होता है जो पढ़ा जाता है, परन्तु लोग उसे आवरण में नहीं लाते। धर्म के विषय बहुत है पर कोई मानता नहीं इसलिए कवि ने धर्म को स्याह शब्दों का गुलाम कहा है।

पाठ से आगे

प्रश्न 1. कवि देवत्थ और अमरत्व के स्थान पर मनुजत्व को स्वीकारने की बात क्यों करता है ?

उत्तर—कवि देवत्व और अमरत्व के स्थान पर मनुजत्व को स्वीकारने की बात इसलिए करता है क्योंकि उन्हें मानव से प्रेम है और मानव धर्म उनका आराध्य है।

प्रश्न 2. कविताएँ सभी जातियों और धर्म में प्यार और सद्भाव का संदेश देती है, परन्तु हमारे समाज में ऐसा देखने को क्यों नहीं मिलता ? साथियों से बात कर अपनी समझ को लिखिए।

उत्तर- हमारे समाज में जातिवाद, भाई-भतीजावाद तथा ऊँच-नीच, अपना पराये की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है।

प्रश्न 3. कवि के मनोभावों को सार्थक करते हुए अगर हर व्यक्ति संसार को अपना घर मानने लगे तो हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज की दशा/ स्थिति कैसी होगी ? चर्चा कर लिखिए।

उत्तर- अगर हर व्यक्ति संसार को अपना घर मानने लगे तो संसार में जातिवाद, भाईचारावाद, लड़ाई-झगड़ा, अपना पराया कुछ भी ज होता और समाज में भाईचारा, प्रेम और शांतिपूर्ण स्थिति होती।

प्रश्न 4. कवि बनावटी दुनिया को छोड़कर वास्तविक जीवन में मिल- जुल कर रहने पर जोर दे रहा है। यहाँ बनावटी दुनिया और वास्तविक जीवन से आप क्या समझते हैं ? लिखिए।

उत्तर- बनावटी दुनिया आज की चकाचौंध से भरी है जबकि वास्तविक जीवन पहले की तरह आज भी सादा जीवन उच्च विचार के राह पर चलती है। बनावटी दुनिया में अंदर खोखला पन होता है साथ ही स्वार्थ और अहंकार की हावी रहता है। जबकि वास्तविक जीवन में जो जैसा है वैसा ही समाज में दखाई देता है और उनमें मिल-जुल कर रहने। की प्रवृत्ति होती है।

प्रश्न 5. आप विचारकर लिखिए कि मनुष्य-मनुष्य के बीच नफरत. की दीवार को कौन खड़ा करता है और इस संदर्भ में हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए ?

उत्तर- मनुष्य मनुष्य के बीच नफरत की दीवार को जात-पाँत के भेदभाव ने खड़ा किया है। हमें जात-पाँत के भेदभाव को छोड़कर मानवता को प्रोत्साहित करना चाहिए।