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सुभाषितानि कक्षा आठवीं विषय संस्कृत पाठ 4

सुभाषितानि कक्षा आठवीं विषय संस्कृत पाठ 4

1. यथा खनन् खनित्रेण नरोवार्यधिगच्छति।
तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रूषुरधिगच्छति ॥

शब्दार्था: – खनन् = खोदता हुआ। खनित्रेण=कुदाल से। नरः =मनुष्य, वारि= जल, अधिगच्छति= प्राप्त करता है।

सरलार्थ:- जिस प्रकार कुदाल से खोदता हुआ मनुष्य जल प्राप्त करता है, उसी प्रकार गुरु की सेवा में लगा हुआ (मनुष्य) गुरु में विद्यमान विद्या प्राप्त कर लेता है।

2. आचार्यो ब्रह्मणो मूर्तिः पिता मूर्तिः प्रजापतेः ।
माता पृथिव्याः मूर्तिस्तु भ्राता स्वोमूर्तिरात्मनः ।
शब्दार्था:- ब्रह्मणः =ब्रह्म का मूर्तिः शरीर, स्वरूप, प्रजापतेः = ब्रह्मा का, स्वः = अपना, सगा।

सरलार्थ:- गुरु ब्रह्म का स्वरूप है। पिता ब्रह्मा का स्वरूप है। माता पृथ्वी का स्वरूप है और भाई अपना ही स्वरूप है।

3. आदी माता गुरोः पत्नी ब्राह्मणी राजपलिका।
धेनुर्धात्री तथा पृथ्वी सप्तैता मातरः स्मृताः ॥
शब्दार्था:- आदौ =माता सगी माँ, गुरोः =गुरु की, धात्री = धाय माँ, सप्तैता = ये सात, स्मृताः = कही गयी हैं।

सरलार्थ:- अपनी सगी माँ, गुरु की पत्नी, ब्राह्मण की पत्नी, राजा की पत्नी, गाय, धात्री और पृथ्वी ये सात माताएँ कही गयी है।

4. अन्नदाता भयत्राता विद्यादाता तथैव च ।
जनिता चोपनेता च पञ्चैते पितरः स्मृताः ॥

शब्दार्था:- अन्नदाता = अन्न या भोजन देने वाला, भयत्राता = भय से बचाने वाला, जनिता= जन्म देने वाला।

सरलार्थ:- भोजन देने वाला, भय से बचाने वाला, विद्या देने वाला, जन्म देने वाला और यज्ञोपवीत आदि संस्कार करने वाला, ये पाँच पिता कहे गए हैं।

5. सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्तिः पत्नी क्षमापुत्रः षडेते मम बान्धवाः ॥

शब्दार्थाः – बान्धवाः = परिवार, पत्नी = स्त्री।

सरलार्थ:- सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, धर्म भाई है, दवा मित्र है, शान्ति स्त्री है और क्षमा पुत्र है। ये छ: मेरे परिवार हैं।

6. रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धाइव किंशुकाः ॥

शब्दार्थाः – विशालकुल = उत्तम कुल । सम्भवाः = उत्पन्न। निर्गन्धा =सुगन्धहीन, इव =के समान ,किंशुकाः =टेसू के फूल ।

सरलार्थ:- जो व्यक्ति विद्या से रहित हैं, यदि वे रूप और यौवन से सम्पन्न हों तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हों तो भी सुगन्धहीन टेसू के फूल की तरह शोभित नहीं होते।

7. नमन्ति फलिनो वृक्षाः नमन्ति गुणिनो जनाः ।
शुष्कवृक्षाश्च मूर्खाश्च न नमन्ति कदाचन् ॥

शब्दार्था:- नमन्ति = झुकते हैं, मूर्खाः =मूर्ख लोग, कदाचन् = कभी नहीं।

सरलार्थ:- फलदार वृक्ष झुक जाते हैं। गुणवान व्यक्ति झुक जाते हैं सूखे वृक्ष और मूर्ख लोग कभी नहीं झुकते हैं।

8. को नायाति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः ।
मृदङ्गोऽपि मुख लेपेन करोति मधुरध्वनिः ॥

शब्दार्था:- पिण्डेन = भोजन से, पूरितः = भर देना।

सरलार्थ:- इस संसार में कौन (मुख में) भोजन देने से वश में नहीं आ जाता है, क्योंकि मृदङ्ग के मुख में लेप करने से वह भी मधुर ध्वनि करता है ।

9.

पयसा कमलं कमलेन पयः,
पयसा कमलेन विभाति सरः ।
मणिना वलयं वलयेन मणिः,
मणिना वलयेन विभाति करः ॥
शशिना च निशा निशया च शशी,
शाशिना निशया च विभाति नभः ।
कविना च विभुः , विभुना च कविः,
कविना विभुना च विभाति सभा ॥

शब्दार्था:- विभाति = सुशोभित होता है। पयसा = जल से, वलयम् = कंगन । विभुः =स्वामी, राजा।

सरलार्थ:- कमल से जल की और जल से कमल की शोभा होती है। इस प्रकार कमल और जल एक-दूसरे की शोभा बढ़ाते हैं। मणि से कंगन और कंगन से मणि की शोभा होती है। इस प्रकार मणिमय कंगन से हाथ सुशोभित होता है। चंद्रमा से रात और रात से चंद्रमा सुशोभित होता है। इस प्रकार चंद्रमा और रात से आकाश सुशोभित होता है। कवि के द्वारा राजा और राजा द्वारा कवि सुशोभित होता है। इस प्रकार राजा और कवि के द्वारा सभा सुशोभित होती है।

10. नरके गमनं श्रेष्ठं दावाग्नो दहनं वरम् ।
वरं प्रपतनं चाब्धौ न वरं परशासनम् ॥

शब्दार्थाः- प्रपतनं= डूबना, परशासनम् =परतंत्रता ।

सरलार्थ:- नरक में जाना श्रेष्ठ है, जंगल की आग में जलना श्रेष्ठ हैं, समुद्र के अगाध जल में डूब जाना भी उत्तम है, किन्तु परतन्त्र रहना उत्तम नहीं है। –

अभ्यास प्रश्नाः

1. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए-

(क) कः गुरुगतां विद्याम् अधिगच्छति ?

(कौन गुरु की विद्या को प्राप्त कर सकता है ?)

उत्तर- शुश्रूषः गुरुगतां विद्याम् अधिगच्छति।

(गुरु की सेवा करने वाला गुरु की विद्या को प्राप्त कर सकता है।)

(ख) माता कस्याः मूर्ति ?

(माता किसकी मूर्ति होती है ?)

उत्तर–माता पृथिव्याः मूर्तिः भवति ।

(माता पृथ्वी की मूर्ति होती है।)

(ग) निर्गन्धा किंशुकाः इव के न शोभन्ते ?

(गंध रहित पुष्प के समान कौन शोभित नहीं होता है ?)

उत्तर—विद्याहीना: निर्गन्धाः किंशुकाः इव न शोभन्ते

(विद्याहीन गंध रहित देश के पुष्प के समान शोभित नहीं होते ।)

(घ) मृदड़्गो मुखलेपेन किं करोति ?

(मृदङ्गः मुख में लेप करने पर क्या करते हैं ?)

उत्तर- मृदङ्गः मुखलेपेन मधुरध्वनिः करोति ।

(मृदङ्ग मुख में लेप करने पर मधुर ध्वनि करते हैं।)

(ङ) सरः केन विभाति ?

(सरोवर किससे सुशोभित होता है ?)

उत्तर-सरः कमलेन पयसा च विभाति।

(सरोवर कमल और जल से सुशोभित होता है।)

2. उचित संबंध जोड़िए-

  • 1. खनन खनित्रेण -न वरं – वार्यधिगच्छति
  • 2. सप्तैता-गुणिनो जनाः – मातरं
  • 3. पितरः-विद्याहीना – पञ्चैते
  • 4. न शोभन्ते -मातरः – विद्याहीना
  • 5. परशासनम्-वार्यधिगच्छति – न वरं
  • 6. नमन्ति -विभाति नभः – गुणिनो जनाः
  • 7. शशिना निशया च – पञ्चैते – विभाति नभः

3. संस्कृत में अनुवाद कीजिए-

(अ) आचार्य ब्रह्म का रूप है।

अनुवाद- – आचार्यः ब्रह्मणः मूर्ति अस्ति ।

(ब) विद्याहीन व्यक्ति शोभित नहीं होता।

अनुवाद – विद्याहीनः न शोभते ।

(स) सूखे वृक्ष और मूर्ख लोग कभी नहीं झुकते ।

अनुवाद-शुष्कवृक्षाः मूर्खाश्च कदापि न नमन्ति ।

(द) मृदङ्ग के मुख में लेप करने से वह भी मधुर ध्वनि करता है।

अनुवाद – मृदङ्गः अपि मुखलेपेन मधुरध्वनिः करोति ।

(इ) मणि और कङ्गन से हाथ शोभा देता है।

अनुवाद- मणिना वलयेन च करः विभाति ।

4. (क) संधि कीजिए और सन्धि का नाम लिखिए-

वारि + अधिगच्छति = वार्यधिगच्छति

शुश्रूषुः + अधिगच्छति = शुश्रूषरधिगच्छति

मूर्तिः + आत्मनः = मूर्तिरात्मनः ।

(ख) सन्धि विच्छेद कीजिए-

सप्तैता- सप्त + ऐता: (स्वर संधि)

चोपनेता- च + उपनेता (स्वर संधि)

चाब्धौ- च + अब्धौ (स्वर संधि)

5. निम्नलिखित धातुओं के रूप निर्देशानुसार लिखिए-

शुभ् (शोभ्) लोट् लकार-उत्तम पुरुष

नम लट्लकार-अन्य पुरुष

कृ (करना) लड्लकार- प्रथम पुरुष

एकवचनद्विवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषशोभानि शोभावशोभाम
अन्य पुरुषनमतिनमतःनमन्ति
प्रथम पुरुषअकरोत्अकुरुताम्अकुर्वन्