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श्रवणकुमारस्य कथा कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 14

श्रवणकुमारस्य कथा कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 14

पितृभक्त : श्रवणकुमारः एकः बालकः आसीत् । सः सदा माता पित्रौः सेवां करोति स्म। तस्य पितरौ नेत्र हीनों आस्ताम् । एकदातस्य पितरौ अवदताम्-वत्स! आवां तीर्थयात्रां कर्तुम् इच्छावः । श्रवण कुमारः पित्रौः आज्ञां परिपालनार्थं एकस्यां बहनिकायां पितरौ स्थापयामास। सः तौ स्कंधे धृत्वा तीर्थयात्रायै प्राचलत्। मार्गेतस्य पितरौ पिपासितौ अभवताम्।

श्रवणकुमारः पिपासितयोः पित्रो सुधानान्त्यर्थं एकस्य वृक्षस्य छायायां तौ संस्थाप्य जल आनेतुं सरयूम् अगच्छत। सः जल तुम्बिकां नद्याः जले निमज्जिताम् निकरोत्। जलस्य भरणावसरे तुम्बिकायाः ‘गड़गड़’ इति ध्वनः अभवत् । तदा आखेटार्का समागतः राजा दशरथः तं ध्वनिं अश्रृणोत् अचिन्तयच्च । नूनंकश्चित् गजकलभः जलं पिबति । सः शब्दभेदी बाणं प्राक्षिपत् । बाणः श्रवणस्य हृदयं अछिनत् ।

शब्दार्थाः आसीत् = था, पितरौ = माता-पिता, आवां = हम दोनों, बहनिकायां = कावर में, स्थापयामास = बैठाया, संस्थाप्य= बैठाकर ,आनेतुं = लेने के लिए, तुम्बिकां = तुम्बी को, निमज्जिताम् = स्वच्छ किया, गजकलभः= हाथी का बच्चा । –

अनुवाद -श्रवणकुमार, एक पितृभक्त बालक था। वह सदैव माता-पिता की सेवा करता था। उनके माता-पिता नेत्रहीन थे। एक बार उनके माता-पिता ने उनसे कहा-पुत्र! हम दोनों को तीर्थयात्रा की इच्छा हो रही है। श्रवणकुमार पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए एक वहनिका (कावर) में माता-पिता को बिठाया। वह उन दोनों का अपने कंधे में उठाकर तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़ा। रास्ते में उनके माता-पिता को प्यास लगी।

श्रवणकुमार प्यासे माता-पिता को एक वृक्ष की छाया में बैठाकर प्यास बुझाने के लिए जल हेतु सरयू को गया। वह पानी की तुम्बी को नदी की जल से स्वच्छ किया। जल भरते समय तुम्बी से गड़गड़ की आवाज हुई। तब शिकार के लिए आए राजा दशरथ ने उस ध्वनि (आवाज) को सुनकर सोचा निश्चय ही कोई हाथी का बच्चा पानी पी रहा है। उसने शब्द भेदी बाण छोड़ दिया। बाण ने श्रवण के हृदय को छेद डाला (विंधा डाला ) ।

बाणेन आहतः श्रवणकुमारः चीत्कार शब्द अकरोत् । ते श्रुत्वा दशरथः तं प्रति अधावत् सः तत्र बाणविद्धं श्रवणं दृष्टवा शोकाकुलः अभवत्। बाणविद्धः श्रवणकुमारः दशरथं अवदत्- मम् अंधौ पितरौ पिपासौ कुलौ वृक्षस्य अधः तिष्ठतः । त्वं शीघ्र गत्वा तौ जलं पायय। एवं कथयन् सः प्राणान् अत्यज्यत् ।

शोकाकुलः दशरथ: जल तुम्बिकां नीत्वा श्रवणस्य मातापित्रोः समीपं अगच्छत। तौ अपृच्छताम वत्स! विलम्बं कथं ज्ञातः ? आवां पिपासापीड़ितौ त्वम् उत्तरं देहि । दशरथः सर्वा घटनां न्यवेदयत् ।

तत् श्रुत्वा तौ वृद्धौ तम् अशपताम् । यथा आवां पुत्र वियोगे प्राणान् त्यजावः तथैव त्वमपि पुत्र-वियोगे प्राणान् त्यजिष्यसि । एवं विलपन्तौ दिव गतौ। महाराजो दशरथः अतीव उदासीनो अभवत् । सः श्रवणकुमारस्य तयोः पित्रोश्च दाह संस्कार कृत्वा प्रत्यावर्तत् ।

शब्दार्थाः – श्रुत्वा = सुनकर, बाणविद्धं = बाण से घायल, कुलौ = व्याकुल, अंध: = नीचे, पायय = पिलाओ, अत्यजत् = छोड़ दिये, नौवा =लेकर, अशपताम् = श्राप दिये, विलपन्ती = विलाप करते हुए, प्रत्यावर्तत् = लौट गया।

अनुवाद-बाण से आहत श्रवण कुमार चीत्कार (कारुणिक ध्वनि) किया। उसे सुनकर दशरथ उस ओर दौड़ा। वहाँ वह बा से बींधे श्रवण कुमार को देखकर अतिदुःखी हुआ। बाण से बींधे हुए श्रवण कुमार ने दशरथ से कहा-मेरे अन्धे माता-पिता प्यास से व्याकुल हो, एक पेड़ के नीचे बैठे हैं। तुम जल्दी जाकर उन्हें पानी पिला दो। ऐसा कहकर उसने प्राण त्याग दिया।

शोक से व्याकुल दशरथ पानी की तुम्बी को लेकर श्रवण के माता-पिता के पास गया। वे दोनों पूछे – पुत्र विलम्ब क्यों हो गया? हम दोनों प्यास से व्याकुल हैं-तुम उत्तर दो। दशरथ ने सारी घटना निवेदित किया (बताया)।

उसे सुनकर दोनों वृद्ध उसे (राजा दशरथ को) श्राप दिए। जिस तरह हम दोनों पुत्र वियोग में प्राण त्याग रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में प्राण त्यागोगे। इस प्रकार विलाप करते हुए दोनों मर गए। महाराज दशरथ अत्यधिक उदास हो गए। वह श्रवण कुमार के साथ उनके माता-पिता का दाह संस्कार कर लौट गया।