राष्ट्रीयः सञ्चयः कक्षा 8 संस्कृत पाठ 10
शब्दार्था: – लम्बते = लटकना । तर्हि = तो। जानासि =जानते हो। मधुकोशः = मधुमक्खियों का छत्ता। मधुमक्षिकाः =मधुमक्खियाँ । आहृत्य = लाकर। दशन्ति= डस लेती हैं।
अनुवाद- ख्याति – हे गुरु! इस वृक्ष पर क्या लटक रहा है ?
शिक्षक – हे ख्याति ! क्या तुम ये नहीं जानते ? यह मधुमक्खियों का छत्ता है।
प्रत्यूषः- यह मधु मक्खियों का छाता कैसे बनता है ?
शिक्षक – प्रत्यूष ! मधुमक्खियाँ धीरे-धीरे फूलों के रस को लाकर एकत्रित करती हैं। यदि कोई भी मधु लेने आता है तो मधुमक्खियाँ उन्हें काटती हैं।
शब्दार्थाः– कथम् = कैसे। निपातेन = गिरने से। पूर्यते = भरता है। घटः = घड़ा। ज्ञातम् = समझ गया। सञ्चयेन = सञ्चय से।
अनुवाद- शिवा – हे गुरु ! धीरे-धीरे पुष्पों के रस से इतना बड़ा मधुमक्खियों का छाता कैसे बन जाता है।
शिक्षक- शिवा ! (क्या तुमको) नहीं मालूम ? यह प्रसिद्ध है कि बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
श्यामा- हाँ ! मालूम है। मैंने भी एक-एक रुपया जमा करके सौ रुपये जमा किये हैं।
शिक्षक- तुम इन रुपयों का क्या करोगे ? श्यामा- हे गुरु जी ! मैं भूकंप पीड़ित लोगों की सेवा के लिए यह धन दे दूंगी।
शिक्षक – बस! तुमने दो कार्य अच्छे किये। पहला अपने खर्चे से बचे हुए धन का संग्रह और दूसरा उस संचित धन का भूकंप पीड़ित जनों की सहायता के लिए दान । (कक्षा के अन्य लोगों को संबोधित करते हुए।)
शब्दार्थ : – पश्यन्तु = देखो, कोषालय = बैंक, पत्रालय = डाकघर ।
अनुवाद- शिक्षक – छात्रों! श्यामा को देखो। इसने अपने जेब खर्च के रुपयों का न केवल संग्रह किया अपितु भूकंप पीड़ितों के लिए भी देकर उस धन का सदुपयोग भी किया ।
पुष्कर- गुरुजी ! धन का संग्रह तो कोषालय (बैंक) और डाकघर के माध्यम से भी होता है। कृपया आप हमें इस विषय में बतायें।
शिक्षक हाँ! छात्रों देश के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास के लिए धन आवश्यक है।
ख्याति – गुरुजी ! धन प्राप्ति के कौन-कौन से साधन होते हैं ?
शिक्षक- 5- धन प्राप्ति के साधनों में कर ग्रहण, औद्योगिक उत्पादन का निर्यात इत्यादि हैं। कोषालय, पत्रालय आदि के द्वारा नागरिक राष्ट्रीय सञ्चय योजना आदि के अन्तर्गत धन संग्रह करते हैं।
शिवा – राष्ट्रीय सञ्चय योजना क्या होती है ?
शिक्षक – सरकार ने नगरों में, गाँवों में कोषालयों की डाकघरों की शाखाएँ स्थापित की है। उनमें बालक बालिकाएँ युवक आदि धन सञ्चय करते हैं। इनमें डाकघर की सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
श्यामा- कैसे ?
शिक्षक – डाकघर के द्वारा संचालित होने वाली अनेक योजनाएँ होती हैं।
पुष्कर- ये कौन-कौन सी होती हैं ?
शब्दार्था:- श्रृणुत = सुनो। प्रसाराय = प्रसार के लिए। विधेयः = करना चाहिए। क्षणशः = क्षण-क्षण से। कणशः = कण-कण से। तर्हि = तो । श्रृणतु = सुनो। स्वकीयं धनं = स्वयं का धन ।
अनुवाद- शिक्षक सन्चयपुरस्कार योजना, संरक्षित-सञ्चय योजना, भविष्यनिधियोजना आदि।
श्यामा – अरे पत्रालय के द्वारा भी अनेक योजनाएँ संचालित होती हैं।
शिक्षक- हाँ क्यों ? छात्रों के लाभ के लिए पत्रालय के माध्यम से विद्यालयों में सञ्चिका योजना की भी व्यवस्था है।
प्रत्यूष- हे गुरु जी ! सञ्चायिका योजना के विषय में भी कुछ कहिये ।
शिक्षक – हाँ ! अवश्य सुनो ! सञ्चायिका योजना में सञ्चित करने की सुविधा है। विद्यालयों में सञ्चालित योजना में पुरस्कार के लिए व्यवस्था होती है।
ख्याति – हे गुरुजी ! यदि ऐसा है तो, हम भी अपना धन डाक घरों में संग्रह करेंगे।
शिक्षक- अवश्य करो। इन सभी योजनाओं के विषय में विवरण पत्रालयों में प्राप्त हो सकता है। राष्ट्रीय संचय योजना व्यक्ति समाज, देश के विकास के लिए सहायक है।
भारत जैसे विकासशील देशों में (इन) योजनाओं की बहुत उपयोगिता होती है। इसलिए हमें सञ्चय योजनाओं के प्रसार के लिए प्रयत्न करना चाहिए। कहा भी है- ‘एक एक कण से धन को और एक एक क्षण में विद्या को ग्रहण करना चाहिए।’
अभ्यास प्रश्नाः
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए-
(क) वृक्षे किं लम्बते ?
(वृक्ष में क्या लटक रहा है ?)
उत्तर- वृक्षे मधुकोशः लम्बते । (वृक्ष में मधुमक्खियों का छत्ता लटक रहा है।)
(ख) मधुमक्षिकाः किं कुर्वन्ति ?
(मधुमक्खियों क्या करती है ?)
उत्तर- मधुमक्षिकाः शनै: शनै: पुष्परसम् आहृत्य एकत्रितं कुर्वन्ति।
(मधुमक्खियाँ धीरे-धीरे फूलों का रस लाकर एकत्रित करती
हैं ।)
(ग) घटः कथं पूरितो भवति ?
(घट कैसे पूरा होता है ?)
उत्तर- जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
(जल बिन्दुओं के क्रमशः गिरने से घट पूरा भर जाता है।)
(घ) श्यामा किं सञ्चितवती ?
(श्यामा ने क्या सञ्चित किया ?)
उत्तर- श्यामा शतरुप्यकाणि सञ्चितवती।
(श्यामा ने सौ रुपये संचित किये।)
(ङ) श्यामा सञ्चितद्रव्यस्य उपयोगं कुत्र करिष्यति ?
(श्यामा सञ्चित किये धन उपयोग कहाँ करेगी ?)
उत्तर–श्यामा सञ्चित धनस्य प्रयोगं पीड़ित जनानां सेवार्थम् करिष्यति। (श्यामा एकत्रित किये हुए धन का उपयोग दुःखी जन की सेवा के लिए करेगी।)
2. निम्नलिखित शब्दों का संधि विच्छेद कर प्रकार बताइये
- तत्रैव= तत्र + एव (स्वर संधि)
- उल्लेखनीयाः =उत् + लेखनीयाः (व्यंजन संधि)
- इत्यादयः =इति + आदयः (यण स्वर संधि)
- एकैकेन एक + एकेन (स्वर संधि)
- बालिकाश्च= बालिकाः + च (स्वर संधि )
3. निम्नलिखित शब्दों का विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए-
1. पुष्परसम्- पुष्पस्य रसं (तत्पुरुष समास)
2. स्वव्ययार्थम् – स्वस्थ व्ययार्थम् (तत्पुरुष समास )
3. सञ्चिधनस्य- सञ्चितस्य धनस्य (तत्पुरुष समास )
4. मधुकोषः- मधुनः कोषः (तत्पुरुष समास )
4. निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
(क) तुम सब धन का सञ्चय करो।
अनुवाद- यूयम् धनसञ्चयं कुरुत ।
(ख) पानी की एक-एक बूँद से घड़ा भर जाता है।
अनुवाद-जल बिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
(ग) मैं पीड़ितों की सहायता करूँगा।
अनुवाद- पीड़ित जनानां सहाय्यं करिष्यामि ।
(घ) हम सबको सञ्चय योजना का प्रसार करना चाहिए।
अनुवाद – अस्माभिः सञ्चय योजनानां प्रसाराय प्रयत्नो
(ङ), देश के विकास के लिये धन आवश्यक है ।
अनुवाद-देशस्य विकासार्थं धनं आवश्यकम् अस्ति ।
5. निम्नलिखित वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
(क) तत्रैव मक्षिकाः स्थित्वा मधु रक्षन्ति ।
अनुवाद- माक्खियाँ वहीं रहकर शहद की रक्षा करती हैं।
(ख) यस्य वार्षिकलाभो भवति ।
अनुवाद – जिसका वार्षिक लाभ होता है।
(ग) जलबिन्दु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
अनुवाद – बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
(घ) पत्रालयमाध्यमेन अनेकाः सञ्चययोजनाः सञ्चालिताः सन्ति ।
अनुवाद – डाकघर के माध्यम से अनेक सञ्चय योजना सञ्चालित हैं।
(ङ) वयम् अपि धनं सञ्चितं करिष्यामः ।
अनुवाद- हम भी धन का सञ्चय करेंगे।