प्रताप नारायण मिश्र (24 सितंबर, 1856 – 6 जुलाई, 1894) भारतेन्दु मण्डल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे। भारतेंदु पर उनकी अनन्य श्रद्धा थी, वह अपने आप को उनका शिष्य कहते तथा देवता की भाँति उनका स्मरण करते थे। भारतेंदु जैसी रचनाशैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण मिश्र जी “प्रति-भारतेंदु” और “द्वितीय हरिश्चंद्र” कहे जाने लगे थे।0
रचनाएँ
प्रतापनारायण मिश्र भारतेंदु के विचारों और आदर्शों के महान प्रचारक और व्याख्याता थे। वह प्रेम को परमधर्म मानते थे। समाजसुधार को दृष्टि में रखकर उन्होंने सैकड़ों लेख लिखे हैं। बालकृष्ण भट्ट की तरह वह आधुनिक हिंदी निबंधों को परम्परा को पुष्ट कर हिंदी साहित्य के सभी अंगों की पूर्णता के लिये रचनारत रहे। एक सफल व्यंग्यकार और हास्यपूर्ण गद्य-पद्य-रचनाकार के रूप में हिंदी साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है।
मिश्र जी की मुख्य कृतियाँ
मिश्र जी की मुख्य कृतियाँ निम्नांकित हैं :
(क) नाटक: गो संकट, भारत दुर्दशा, कलिकौतुक, कलिप्रभाव, हठी हम्मीर। जुआरी-खुआरी (प्रहसन)। संगीत शाकुंतल (कालिदास के ‘अभिज्ञानशाकुंतम्’ का अनुवाद)।
(ख) निबंध संग्रह निबंध नवनीत, प्रताप पीयूष, प्रताप समीक्षा
(ग) अनूदित गद्य कृतियाँ: राजसिंह, अमरसिंह, इन्दिरा, कथामाला , शिशु विज्ञान,राधारानी, युगलांगुरीय, सेनवंश का इतिहास, सूबे बंगाल का भूगोल, वर्णपरिचय,चरिताष्टक, पंचामृत, नीतिरत्नमाला,बात
(घ) कविता : प्रेम पुष्पावली, मन की लहर, कानपुर महात्म्य, ब्रैडला स्वागत, दंगल खंड, तृप्यन्ताम्, लोकोक्तिशतक, दीवो बरहमन (उर्दू)।